क्या विदेशी निवेशक रुपए के उतार-चढ़ाव में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं?

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क्या विदेशी निवेशक रुपए के उतार-चढ़ाव में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं?

सारांश

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारतीय रुपए के दैनिक उतार-चढ़ाव में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि डॉलर के मुकाबले रुपए की स्थिति में बदलाव आ रहा है। जानिए इस बदलाव के पीछे की वजहें और संभावित समझौते का असर क्या होगा।

Key Takeaways

  • विदेशी निवेशक रुपए के उतार-चढ़ाव में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
  • आरबीआई की सक्रियता भी डॉलर के मुकाबले रुपए को प्रभावित करती है।
  • दिसंबर में विदेशी निवेशकों ने अधिक बिकवाली की।
  • भारत और अमेरिका के बीच संभावित समझौता भविष्य में रुपए की दिशा तय कर सकता है।
  • खुदरा महंगाई का अनुमान नियंत्रित रहने का संकेत है।

नई दिल्ली, 17 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए का 91 का आंकड़ा पार होने के बाद, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारतीय रुपए के दैनिक उतार-चढ़ाव में एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। यह तथ्य बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया।

बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी निवेशकों की खरीद-बिक्री, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा डॉलर की खरीद-फरोख्त, और फॉरवर्ड मार्केट में होने वाले परिवर्तनों का सीधा असर डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू पर पड़ता है।

हालांकि, बैंक ने यह भी उल्लेख किया कि कभी-कभी आरबीआई डॉलर की खरीद-बिक्री कर हस्तक्षेप करता है, जिससे आंकड़ों और वास्तविक प्रभाव के बीच थोड़ा अंतर आ जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर में 11 ट्रेडिंग दिनों में से 9 दिनों में विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार में अधिक बिकवाली की। बैंक का कहना है कि जब तक भारत और अमेरिका के बीच कोई समझौता नहीं होता, रुपया उतार-चढ़ाव में रह सकता है। यह समझौता मार्च 2026 तक हो सकता है।

इसके अलावा, बैंक ने स्पष्ट किया कि यह प्रभाव सेंटीमेंट आधारित है, न कि सीधे अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ।

रोजमर्रा के चालू खाते से संबंधित लेन-देन, जैसे आईटी कंपनियों की कमाई या विदेश में काम करने वालों द्वारा भेजा गया पैसा और पूंजी से जुड़े निवेश भी बाजार को प्रभावित करते हैं। लेकिन इनका हिसाब हर दिन नहीं लगाया जाता, इसलिए इन्हें रुपए की दैनिक चाल से सीधे जोड़ना मुश्किल होता है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत का बाहरी खाता अभी स्थिर स्थिति में है और चालू खाता नियंत्रण में है। ऐसे में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का पैसा रुपया की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बैंक का कहना है कि भारत और अमेरिका के बीच संभावित समझौते की उम्मीद बाजार के फैसलों को प्रभावित कर रही है।

बैंक ऑफ बड़ौदा की एक अन्य हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2026 की तीसरी तिमाही में भारत की खुदरा महंगाई नियंत्रण में रहने की संभावना है। अनुमान है कि सीपीआई महंगाई दर 0.4 प्रतिशत के आसपास रह सकती है, जो आरबीआई के अनुमान 0.6 प्रतिशत से थोड़ी कम है।

बैंक ने कहा कि खाने-पीने की चीजों की कीमतों में नरमी और अन्य चीजों की कीमतों में स्थिरता से लोगों को राहत मिली है। हालांकि, हाल के दिनों में कुछ सब्जियों की कीमतों में थोड़ी बढ़ोतरी जरूर देखने को मिली है।

Point of View

यह स्थिति देश के आर्थिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। विदेशी निवेशकों की गतिविधियाँ और उनके प्रभाव को समझना आवश्यक है। यह केवल मौद्रिक नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे समग्र आर्थिक स्वास्थ्य का संकेतक है।
NationPress
17/12/2025

Frequently Asked Questions

विदेशी निवेशक भारतीय रुपए को क्यों प्रभावित कर रहे हैं?
विदेशी निवेशकों की खरीद-बिक्री और आरबीआई की गतिविधियाँ डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू को प्रभावित करती हैं।
क्या रुपए में और गिरावट आ सकती है?
जब तक भारत और अमेरिका के बीच कोई समझौता नहीं होता, तब तक रुपए में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है।
बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
रिपोर्ट में बताया गया है कि दिसंबर में विदेशी निवेशकों ने अधिक बिकवाली की है और खुदरा महंगाई का अनुमान भी दिया गया है।
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