क्या पहली फिल्म की साइनिंग अमाउंट ने धर्मेंद्र की उम्मीदों को तोड़ा?

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क्या पहली फिल्म की साइनिंग अमाउंट ने धर्मेंद्र की उम्मीदों को तोड़ा?

सारांश

धर्मेंद्र की फिल्म इंडस्ट्री में पहली साइनिंग मनी की कहानी। पंजाब के छोटे शहर से लेकर बॉलीवुड तक के सफर की अनकही बातें। क्या 51 रुपए ने उनके सपनों को तोड़ दिया?

Key Takeaways

  • संघर्ष और मेहनत ही सफलता की कुंजी हैं।
  • धर्मेंद्र का सफर हमें प्रेरणा देता है।
  • पहली साइनिंग मनी का अनुभव कभी भुलाया नहीं जा सकता
  • फिल्म इंडस्ट्री में संघर्षशीलता जरूरी है।
  • धर्मेंद्र की फिल्में भारतीय सिनेमा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

नई दिल्ली, 24 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड के ‘ही-मैन’ धर्मेंद्र की ज़िंदगी हमेशा से संघर्ष और मेहनत से भरी रही है। पंजाब के एक छोटे शहर से निकलकर, जब उन्होंने बड़े सपनों के साथ फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा, तो कभी सोचा नहीं था कि उनका सफर इतना लंबा और चमकदार होगा।

धर्मेंद्र की फिल्मी दुनिया में एंट्री एक नेशनल टैलेंट हंट के माध्यम से हुई। यह प्रतियोगिता उनके लिए किस्मत बदलने वाली साबित हुई। फिल्म इंडस्ट्री में आने के लिए धर्मेंद्र काफी उत्साहित थे। वह अपने पहले प्रोड्यूसर से मिलने पहुंचे और साइनिंग मनी का इंतजार कर रहे थे।

उन्होंने सोचा था कि उन्हें बड़े पैमाने पर भुगतान मिलेगा, लेकिन हुआ कुछ और ही।

पहले साइनिंग मनी के इंतजार में उन्हें सिर्फ 51 रुपए ही मिले। धर्मेंद्र ने मई 1977 में उर्दू फिल्म मैगजीन ‘रूबी’ में छपे ‘मेरा बचपन और जवानी’ नाम के एक आर्टिकल में बताया कि उनके पहले प्रोड्यूसर टी.एम. बिहारी और उनके सहयोगी ठक्कर ने अपनी जेबें खाली करके 51 रुपए उन्हें दिए थे। बिहारी ने 17 रुपए और ठक्कर ने बाकी का भुगतान किया था।

उन्होंने बताया कि वह 500 रुपए की उम्मीद में उत्साहित बैठे थे, लेकिन उनकी पहली फीस इतनी मामूली रही। यह घटना उनके शुरुआती संघर्षों की सबसे प्यारी यादों में से एक बन गई।

धर्मेंद्र ने जब फिल्म ‘शोला और शबनम’ साइन की थी, तब उनके डेब्यू के तौर पर फिल्म ‘दिल भी तेरा, हम भी तेरे’ रिलीज हुई थी। यह फिल्म अर्जुन हिंगोरानी ने निर्देशित की थी और इसमें बलराज सहनी और कुमकुम भी थे। हिंगोरानी की यह पहली हिंदी फिल्म थी, जबकि इससे पहले उन्होंने भारत की पहली सिंधी फिल्म ‘अबाना’ बनाई थी।

आर्टिकल में धर्मेंद्र ने अपने शुरुआती दिनों के लिए हिंगोरानी का धन्यवाद किया था। उनके पास न तो घर था और न ही खाने के लिए पैसे। इस स्थिति में हिंगोरानी ने धर्मेंद्र को अपने घर में रहने की अनुमति दी और खाने का भी इंतजाम किया। रेस्टोरेंट में हिंगोरानी ने धर्मेंद्र के लिए खास व्यवस्था करवाई थी, जिसमें वह रोजाना दो स्लाइस ब्रेड, बटर और एक कप चाय फ्री में ले सकते थे। उन्होंने इस सहायता को अपने जीवन का अनमोल सहयोग बताया था।

धर्मेंद्र और हिंगोरानी का रिश्ता पहली फिल्म तक सीमित नहीं रहा। हिंगोरानी की फिल्मों में एक खास बात यह थी कि ज्यादातर फिल्मों के नाम तीन शब्दों के होते थे और हर शब्द का पहला अक्षर ‘के’ होता था। इनमें धर्मेंद्र हमेशा मुख्य भूमिका में दिखाई दिए। उदाहरण के तौर पर, ‘कब? क्यों? और कहां?’ (1970), ‘कहानी किस्मत की’ (1973), ‘खेल खिलाड़ी का’ (1977), ‘कातिलों के कातिल’ (1981), ‘करिश्मा कुदरत का’ (1985), ‘कौन करे कुर्बानी’ (1991), और ‘कैसे कहूं कि… प्यार है’ (2003); हालांकि, फिल्म ‘सल्तनत’ (1986) इस नियम से अलग थी।

हिंगोरानी की इन फिल्मों में धर्मेंद्र के साथ अन्य बड़े अभिनेताओं जैसे ऋषि कपूर, मिथुन चक्रवर्ती और गोविंदा ने भी अभिनय किया। बाद में हिंगोरानी की कुछ फिल्मों में धर्मेंद्र के बेटे सनी देओल ने भी उनके साथ अभिनय किया।

Point of View

बल्कि यह भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में संघर्षशील कलाकारों के लिए एक प्रेरणा भी है। हर कलाकार के पीछे एक कहानी होती है, और धर्मेंद्र की कहानी इस बात का प्रमाण है कि मेहनत और धैर्य से हर सपना पूरा किया जा सकता है।
NationPress
25/11/2025

Frequently Asked Questions

धर्मेंद्र की पहली फिल्म का नाम क्या था?
धर्मेंद्र की पहली फिल्म का नाम 'दिल भी तेरा, हम भी तेरे' था।
धर्मेंद्र को पहली साइनिंग मनी में कितने रुपए मिले?
धर्मेंद्र को पहली साइनिंग मनी में केवल 51 रुपए मिले।
धर्मेंद्र ने किस प्रतियोगिता के माध्यम से फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया?
धर्मेंद्र ने एक नेशनल टैलेंट हंट के माध्यम से फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया।
धर्मेंद्र की पहली फिल्म कब रिलीज हुई थी?
धर्मेंद्र की पहली फिल्म 'दिल भी तेरा, हम भी तेरे' 1960 में रिलीज हुई थी।
धर्मेंद्र के पहले प्रोड्यूसर कौन थे?
धर्मेंद्र के पहले प्रोड्यूसर टी.एम. बिहारी थे।
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