क्या 'चुपके चुपके' के सेट पर शतरंज खेलते रहे ऋषिकेश मुखर्जी, अमिताभ और धर्मेंद्र रह गए दंग?

सारांश
Key Takeaways
- ऋषिकेश मुखर्जी का सिनेमा सादगी और संवेदनशीलता का प्रतीक है।
- उनकी फिल्में जीवन की गहरी सच्चाइयों को उजागर करती हैं।
- वह बड़े सितारों के साथ छोटे किरदारों को भी समान महत्व देते थे।
- उनकी फिल्मों में एक गहरा संदेश छिपा होता है।
- ऋषिकेश मुखर्जी का फिल्म निर्माण एक बौद्धिक प्रक्रिया है।
मुंबई, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब हम भारतीय सिनेमा के उन दिग्गज फिल्मकारों की बात करते हैं, जिन्होंने न केवल कहानियों को पर्दे पर जीवंत किया, बल्कि उन्हें लोगों के दिलों में भी बसा दिया, तो ऋषिकेश मुखर्जी का नाम सबसे पहले आता है। 30 सितंबर 1922 को कोलकाता में जन्मे इस सिनेमा के जादूगर ने अपनी फिल्मों में सादगी और संवेदनशीलता को आधार बनाया, जो केवल मनोरंजन का साधन नहीं थीं, बल्कि जीवन की गहरी सच्चाइयों को भी उजागर करती थीं।
‘आनंद’, ‘गोलमाल’, ‘मिली’, ‘चुपके चुपके’ जैसी कालजयी फिल्में इस बात का प्रमाण हैं कि सिनेमा केवल चमक-दमक का खेल नहीं है, बल्कि हंसी, आंसुओं और मानवीय रिश्तों का एक नाजुक ताना-बाना भी हो सकता है।
ऋषिकेश का सिनेमा मध्यमवर्गीय भारतीय जीवन का एक सच्चा आईना था। उनकी फिल्में उस आम आदमी की कहानी कहती थीं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में छोटी-छोटी खुशियों और चुनौतियों का सामना करता है। चाहे वह ‘आनंद’ में जीवन और मृत्यु के बीच की मार्मिकता हो या ‘गोलमाल’ की हल्की-फुल्की हास्य दुनिया, हर फिल्म में एक गहरा संदेश छिपा होता था, जो दर्शकों को हंसाता, रुलाता, और सोचने पर मजबूर करता था।
ऋषिकेश मुखर्जी का सफर न्यू थिएटर्स और बॉम्बे टॉकीज में एक कुशल संपादक के रूप में शुरू हुआ, जहां उन्होंने सिनेमा की बारीकियों को सीखा। बाद में, निर्देशन की दुनिया में कदम रखते हुए, उन्होंने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन जैसे सितारों को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। ‘आनंद’ में राजेश खन्ना की जीवटता और ‘अभिमान’ में अमिताभ की गहरी संवेदनशीलता उनकी अद्वितीय निर्देशन का परिणाम थी। उनकी खासियत यह थी कि वे बड़े सितारों के साथ छोटे किरदारों को भी समान महत्व देते थे, जिससे उनकी फिल्में एक समग्र अनुभव बन जाती थीं।
ऋषिकेश मुखर्जी को पद्म भूषण और दादासाहब फाल्के जैसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए हैं। उनकी जीवनी 'द वर्ल्ड ऑफ ऋषिकेश मुखर्जी' में उनकी फिल्मों का एक दिलचस्प किस्सा है, जो उनके निर्देशन की प्रतिभा को उजागर करता है। यह किस्सा उनकी कल्ट कॉमेडी फिल्म 'चुपके चुपके' की शूटिंग से जुड़ा है। इस फिल्म में धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, शर्मिला टैगोर और ओम प्रकाश जैसे कलाकार शामिल थे।
एक दिन, शूटिंग के दौरान सेट पर एक अजीब माहौल बना हुआ था। निर्देशक की कुर्सी पर बैठे ऋषिकेश मुखर्जी ने सीन पर ध्यान देने के बजाय, शतरंज खेलना शुरू कर दिया। वह अपने साथी के साथ अगली चाल की रणनीति बनाने में इतने व्यस्त थे कि अभिनेताओं को कोई विशेष निर्देश नहीं दिया।
इस दृश्य को देखकर उस समय के दो सबसे बड़े सुपरस्टार, धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन, चिंतित हो गए। उन्हें लगा कि बिना किसी स्पष्ट मार्गदर्शन के सीन बिगड़ सकता है। दोनों ने हिम्मत करके ऋषिकेश मुखर्जी से पूछा कि बिना निर्देश के शूटिंग कैसे की जा सकती है और क्या उन्हें सीन में कोई बदलाव करना चाहिए?
ऋषिकेश मुखर्जी ने पहले अपनी चाल चली, फिर हंसते हुए तेज आवाज में कहा, "अगर तुम्हें कहानी समझ में आ गई होती, तो तुम अभिनेता नहीं, निर्देशक होते! अब जाओ और वही करो जो लिखा है।"
उनका यह जवाब सुनकर सेट पर मौजूद सभी लोग चौंक गए, लेकिन यह उनके काम करने के तरीके का सार था। उनका विश्वास था कि जब स्क्रिप्ट इतनी मजबूत हो कि अभिनेताओं को पता हो कि उन्हें क्या करना है, तो निर्देशक का काम केवल उस प्रक्रिया पर विश्वास करना रह जाता है।
यह इस बात का प्रमाण है कि ऋषिकेश मुखर्जी अपनी हर फिल्म को शतरंज की बिसात की तरह देखते थे, जहां हर किरदार की चाल पहले से तय होती थी। उनकी यही स्पष्टता और सादगी उनकी फिल्मों की सबसे बड़ी ताकत थी।