क्या संजीव कुमार ने 'शोले' में राधा के लिए दर्द महसूस किया?

सारांश
Key Takeaways
- संजीव कुमार का असली नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था।
- उन्होंने 'शोले' में ठाकुर बलदेव सिंह का किरदार निभाया।
- उनका जन्म 9 जुलाई 1938 को हुआ था।
- संजीव कुमार को दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले।
- उन्होंने 6 नवंबर 1985 को इस दुनिया को अलविदा कहा।
मुंबई, 8 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जिनकी अभिनय को महसूस किया जाता है, उनके चेहरे के भावों में ही किरदार की कहानी छुपी होती है। ऐसे ही एक अद्वितीय कलाकार थे संजीव कुमार। उन्होंने हर किरदार में जान फूंकने का हुनर दिखाया। कौन भूल सकता है 'शोले' के ठाकुर बलदेव सिंह को! संजीव कुमार ने इस किरदार को इस प्रकार से प्रस्तुत किया कि आज भी वह लोगों के दिलों में जीवित हैं।
इस किरदार से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है। इसे 'शोले' के लेखक जावेद अख्तर ने अनुपमा चोपड़ा की किताब 'शोले: द मेकिंग ऑफ क्लासिक' में साझा किया। फिल्म की शूटिंग का अंतिम दिन था और आखिरी सीन का फिल्मांकन हो रहा था। इस सीन में, जय (अमिताभ बच्चन) की मृत्यु से ठाकुर की बहू राधा (जया बच्चन) पूरी तरह टूट चुकी होती है। संजीव कुमार ने इस दृश्य में इतनी गहराई से दर्द को महसूस किया कि वह राधा को गले लगाने के लिए बढ़ते हैं। इस दौरान डायरेक्टर रमेश सिप्पी उन्हें रोकते हैं और याद दिलाते हैं कि आप राधा को गले नहीं लगा सकते, क्योंकि फिल्म में आपके हाथ नहीं हैं। यह किस्सा उनकी भूमिका निभाने की गहराई को दर्शाता है कि वह अपने किरदार को कितनी शिद्दत से जीते थे।
संजीव कुमार का असली नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था। उनका जन्म 9 जुलाई 1938 को गुजरात के एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था। मुंबई आने के बाद उन्होंने अभिनय स्कूल में दाखिला लिया और रंगमंच से अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने थिएटर और ड्रामों में काम किया, जहां उनकी कला को बहुत सराहा गया। उन्होंने 1960 में फिल्म 'हम हिंदुस्तानी' से अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन बतौर मुख्य अभिनेता उनकी पहली फिल्म 'निशान' थी। उनका बात करने का अंदाज, हाव-भाव और किरदार में डूब जाने की क्षमता ने उन्हें अन्य कलाकारों से अलग बना दिया।
1970 और 1980 के दशक में संजीव कुमार हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों में माने जाते थे। उन्होंने 'आंधी', 'मौसम', 'नमकीन', 'अंगूर', 'सत्यकाम', 'कोशिश', 'नौकर', 'आशीर्वाद', 'पति-पत्नी और वो' जैसी कई यादगार फिल्मों में काम किया। उनकी हर भूमिका में अलग चमक थी। कभी वह खिलखिलाते, कभी रुलाते, कभी खिजियाते और कभी दुलारते दिखते थे। उनके अभिनय के लोग दीवाने थे। उन्हें दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया।
संजीव कुमार स्क्रीन पर आत्मविश्वास से भरे हुए दिखते थे, लेकिन उनकी निजी जिंदगी कुछ अलग थी। वह अंधविश्वासी भी थे। अक्सर अपने दोस्तों से कहते थे कि वह 50 साल तक नहीं जी पाएंगे। इसके पीछे तर्क देते कि उनके परिवार में ऐसा होता आया है। घर के पुरुष सदस्यों की मृत्यु 50 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है। सबके प्यारे हरि भाई का यह डर सच साबित हुआ। 6 नवंबर 1985 को महज 47 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
संजीव कुमार के अभिनय का सफर भले ही छोटा था, लेकिन इतना प्रभावशाली था कि आज भी वह लोगों के दिलों में बसे हुए हैं।