क्या घास नहीं, बल्कि औषधि है 'चिरचिटा'? जानें इसके अद्भुत फायदे

सारांश
Key Takeaways
- चिरचिटा को औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है।
- इसका उपयोग घावों और सूजन के उपचार में किया जाता है।
- चिरचिटा को दातून के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
- इसकी पत्तियों का रस घावों पर लगाने से लाभ होता है।
- सेवन से पहले हमेशा चिकित्सक से सलाह लें।
नई दिल्ली, 26 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। बंजर भूमि और खेतों में सहजता से उगने वाला पौधा चिरचिटा आयुर्वेदिक गुणों से परिपूर्ण है। जानकारी की कमी के कारण लोग इसे घास समझकर उखाड़ देते हैं, लेकिन यह पौधा असल में औषधीय गुणों से समृद्ध है। इसके पत्ते और बीज कई रोगों के उपचार के लिए उपयोग किए जाते हैं।
चिरचिटा को कुछ लोग 'अपामार्ग' या 'लटजीरा' के नाम से भी जानते हैं। यह प्रायः सड़क किनारे, खाली ज़मीनों और खेतों में खरपतवार के रूप में उगता है। इसकी ऊँचाई लगभग १-३ फीट तक होती है। इसकी पत्तियाँ अंडाकार या गोल होती हैं। इसकी सबसे विशेष पहचान इसके फूल और बीज हैं, जो एक लंबी, पतली डंडी पर ऊपर की ओर लगते हैं। ये बीज कांटेदार होते हैं और अक्सर कपड़ों या जानवरों के बालों से चिपक जाते हैं, इसलिए इसे चिरचिटा या चिटचिटा भी कहा जाता है।
सुश्रुत संहिता में चिरचिटा (अपामार्ग) का उपयोग विशेष रूप से घावों, सूजन और रक्तस्राव को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसमें इस पौधे को एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधे के रूप में वर्णित किया गया है, जिसके पत्तों, जड़ों, बीजों और तने का उपयोग विभिन्न प्रकार के उपचारों में किया जाता है। यह मूत्र संबंधी समस्याओं, त्वचा रोगों और पाचन संबंधी समस्याओं के उपचार में भी सहायक माना गया है।
चिरचिटा की पत्तियों या जड़ों का लेप जोड़ों के दर्द, गठिया और सूजन को कम करने के लिए उपयोगी है। यह रक्त संचार को बेहतर बनाने में भी सहायक है। कई लोग इसे दातून के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं; माना जाता है कि यह दांतों के दर्द, मसूड़ों की कमजोरी और मुंह की दुर्गंध को दूर करने में मदद करता है।
चरक संहिता में चिरचिटा का उल्लेख फोड़े, चोट और घावों के उपचार में किया गया है। किसी भी प्रकार के घाव पर इसकी पत्तियों का रस लगाने से लाभ मिलता है। हालांकि, इसके सेवन से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेना बहुत आवश्यक है।