क्या वर्ल्ड आईवीएफ डे 2025 टूटते सपनों को संजीवनी दे सकता है? जानें विशेषज्ञ की राय

सारांश
Key Takeaways
- आईवीएफ तकनीक ने लाखों दंपतियों को संतान सुख प्रदान किया है।
- इस तकनीक का उपयोग तब किया जाता है जब अन्य प्रयास विफल हो जाते हैं।
- इनफर्टिलिटी के कई कारण हैं, जिनमें जीवनशैली और उम्र शामिल हैं।
- आईवीएफ की सफलता दर को बढ़ाने के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाना आवश्यक है।
- मानसिक और सामाजिक संतुलन भी इनफर्टिलिटी को रोकने में मदद कर सकता है।
नई दिल्ली, 25 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। आज, 25 जुलाई को वैश्विक स्तर पर वर्ल्ड आईवीएफ डे का आयोजन किया जा रहा है। यह दिन उन दंपतियों के लिए उम्मीद की किरण है, जो संतान सुख की खोज में प्रयासरत हैं। इस विशेष दिन को मनाने का कारण है कि 25 जुलाई 1978 को पहला आईवीएफ बेबी जन्मा था। तब से यह अद्भुत तकनीक लाखों जीवनों को खुशियों से भर चुकी है।
इस अवसर पर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मीरा पाठक ने आईवीएफ तकनीक, इसके कारणों और इसकी बढ़ती प्रासंगिकता पर विस्तार से जानकारी दी।
डॉ. पाठक ने बताया कि 1978 में पहले आईवीएफ बेबी के जन्म के बाद, यह तकनीक उन दंपतियों के लिए एक वरदान बन गई है, जो स्वाभाविक गर्भधारण में असफल रहते हैं। भारत में हर साल लगभग 2 से 2.5 लाख आईवीएफ साइकल्स होती हैं और 1.5 लाख से अधिक बच्चे इसी प्रक्रिया से जन्म लेते हैं। आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें महिला के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को शरीर के बाहर लैब में निषेचित किया जाता है, जिसके बाद भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।
डॉ. पाठक ने कहा कि इनफर्टिलिटी की समस्या तेजी से बढ़ रही है, जिसके कई प्रमुख कारण हैं। सबसे पहले, सामाजिक कारण: आजकल युवा पहले करियर को प्राथमिकता देते हैं और शादी और परिवार नियोजन में देर करते हैं, जिससे महिलाओं की उम्र 33 के पार पहुंच जाती है, जहां स्वाभाविक प्रजनन क्षमता में गिरावट शुरू हो जाती है। दूसरा बड़ा कारण है पर्यावरण प्रदूषण, जिसमें ऐसे कई रासायनिक पदार्थ शामिल हैं जो हमारे हार्मोनल सिस्टम को प्रभावित करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि जीवनशैली भी इनफर्टिलिटी का एक महत्वपूर्ण कारण है। अत्यधिक तनाव, नींद की कमी, धूम्रपान, शराब का सेवन, वेपिंग, और फास्ट फूड जैसी आदतें फर्टिलिटी को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। पुरुषों में इनफर्टिलिटी के कारणों में चोट, तपेदिक, कीटनाशक, हीट एक्सपोजर और लैपटॉप को गोद में रखने की आदतें शामिल हैं।
डॉ. मीरा ने बताया कि इनफर्टिलिटी के मामलों में 30-40 फीसदी महिलाएं, समान संख्या में पुरुष, और 10-15 फीसदी मामलों में दोनों पार्टनर जिम्मेदार होते हैं। महिला संबंधित समस्याओं में पीसीओडी, थायरॉइड डिसऑर्डर, और ट्यूब ब्लॉकेज शामिल हैं।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि आईवीएफ से पहले कई कदम उठाए जाते हैं, जैसे दवाओं से ओव्यूलेशन को बढ़ावा देना। जब ये उपाय सफल नहीं होते, तब आईवीएफ को अंतिम विकल्प के रूप में अपनाया जाता है। डॉ. पाठक के अनुसार, आईवीएफ की सफलता दर 50-80 फीसदी तक हो सकती है यदि दंपति स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं, समय पर जांच करवाएं और धूम्रपान व शराब जैसे नशों से दूर रहें।
उन्होंने यह भी कहा कि केवल चिकित्सा तकनीक से ही नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और शारीरिक रूप से संतुलित जीवनशैली अपनाकर भी इनफर्टिलिटी की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है।