क्या गिनी-बिसाऊ में चुनावी नतीजों से पहले तख्तापलट हुआ?

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क्या गिनी-बिसाऊ में चुनावी नतीजों से पहले तख्तापलट हुआ?

सारांश

गिनी-बिसाऊ में चुनावी नतीजों से एक दिन पहले सैन्य तख्तापलट ने एक बार फिर लोकतंत्र की मजबूती पर सवाल खड़ा कर दिया है। जानिए इस घटनाक्रम के पीछे की सच्चाई और इसके प्रभावों के बारे में।

Key Takeaways

  • गिनी-बिसाऊ में तख्तापलट ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित किया।
  • संयुक्त राष्ट्र ने इसे 'नार्को स्टेट' का लेबल दिया।
  • गिनी-बिसाऊ में राजनीतिक अस्थिरता और मादक पदार्थों की तस्करी एक गंभीर समस्या है।
  • सेना का नियंत्रण लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है।
  • अफ्रीका में कई देशों में लोकतंत्र की कमजोरी एक संरचनात्मक चुनौती है।

नई दिल्ली, 27 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्र गिनी-बिसाऊ में आज राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम घोषित होने थे। लेकिन, इससे एक दिन पहले, बुधवार को उच्च सैन्य अधिकारियों ने तख्तापलट करते हुए 'पूर्ण नियंत्रण' का ऐलान किया।

सेना के शीर्ष अधिकारियों ने (27 नवंबर को परिणाम घोषित किए जाने से कुछ घंटे पहले) बताया कि वे गिनी-बिसाऊ की चुनावी प्रक्रिया को रोक रहे हैं और देश के बॉर्डर को बंद कर रहे हैं। यह बयान राजधानी बिसाऊ के सैन्य मुख्यालय में पढ़ा गया और सरकारी टीवी पर प्रसारित किया गया। उन्होंने कहा कि “व्यवस्था बहाल करने के लिए उच्च सैन्य कमान” का गठन किया गया है, जो अगली सूचना तक देश पर शासन करेगी।

बुधवार को चुनाव आयोग के मुख्यालय, प्रेसिडेंशियल पैलेस और गृह मंत्रालय के पास गोलियों की आवाज सुनी गई, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि इसके लिए कौन जिम्मेदार था।

1974 में पुर्तगाल से स्वतंत्रता मिलने के बाद से गिनी-बिसाऊ में सेना का नियंत्रण रहा है। तख्तापलट और तख्तापलट के प्रयासों की एक श्रृंखला इस देश में होती रही है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 22 लाख जनसंख्या वाले इस देश में 2024 में औसत सालाना आय केवल 963 अमेरिकी डॉलर (85,997.44 रुपए) थी।

यह एक ऐसा पैटर्न है जिसमें लोकतंत्र दिखाई देती है, लेकिन उसकी जड़ें इतनी कमजोर होती हैं कि सेना कभी भी राजनीतिक ढांचे को बदल सकती है। गिनी-बिसाऊ की स्वतंत्रता के बाद से बार-बार होने वाले सैन्य हस्तक्षेप यह दर्शाते हैं कि संस्थागत ढांचे, न्यायपालिका, राजनीतिक दलों और नागरिक प्रशासन में वह मजबूती नहीं आई जो सेना को पूरी तरह नियंत्रित करने से रोक सके।

अफ्रीका के कई देशों में यह समस्या सिर्फ वर्तमान की नहीं है—यह एक संरचनात्मक चुनौती है। लोकतंत्र का विस्तार हुआ है, चुनाव भी नियमित हुए हैं, लेकिन सत्ता का वास्तविक संतुलन कई स्थानों पर नहीं बदला है। सैन्य प्रतिष्ठान अक्सर कमजोर अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार, संगठित अपराध, ड्रग तस्करी, राजनीतिक गुटबाजी और सामाजिक असुरक्षा के बीच खुद को 'स्थायित्व' का प्रतीक बताकर हस्तक्षेप करता है। गिनी-बिसाऊ में भी ऐसा ही हुआ। यह एक ऐसा देश है जहाँ पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और मादक पदार्थों की तस्करी ने राज्य को कमजोर कर रखा है, और वहाँ सेना का तख्तापलट लोकतंत्र के लिए एक गंभीर झटका है।

गिनी-बिसाऊ का मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अफ्रीका में जारी व्यापक प्रवृत्ति को उजागर करता है जिसमें कुछ देशों में लोकतांत्रिक ढांचे की कमजोरी और समाज-राज्य की नाजुकता सेना के लिए राजनीतिक हस्तक्षेप को सरल बनाती है।

संयुक्त राष्ट्र ने 2008 में गिनी-बिसाऊ को 'नार्को स्टेट' का लेबल दिया था क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर कोकीन के व्यापार का केंद्र है। सेनेगल और गिनी के बीच स्थित इस देश के समुद्र तट पर कई नदी डेल्टा और बिजागोस आइलैंड के 88 द्वीप हैं, जिनके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि ये कोलंबियाई ड्रग कार्टेल के लिए प्राकृतिक और विभिन्न ड्रॉप-ऑफ पॉइंट हैं।

Point of View

NationPress
27/11/2025

Frequently Asked Questions

गिनी-बिसाऊ में तख्तापलट का मुख्य कारण क्या था?
तख्तापलट का मुख्य कारण चुनावी प्रक्रिया में सेना का हस्तक्षेप और राजनीतिक अस्थिरता है।
गिनी-बिसाऊ में लोकतंत्र की स्थिति क्या है?
गिनी-बिसाऊ में लोकतंत्र की स्थिति कमजोर है, जो बार-बार सैन्य हस्तक्षेप का शिकार होती रही है।
क्या गिनी-बिसाऊ को नार्को स्टेट कहा जाता है?
हाँ, संयुक्त राष्ट्र ने 2008 में गिनी-बिसाऊ को 'नार्को स्टेट' का लेबल दिया था।
गिनी-बिसाऊ की जनसंख्या कितनी है?
गिनी-बिसाऊ की जनसंख्या लगभग 22 लाख है।
गिनी-बिसाऊ में औसत आय क्या है?
2024 में गिनी-बिसाऊ में औसत आय केवल 963 अमेरिकी डॉलर है।
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