क्या ईरान ने परमाणु कार्यक्रम पर दबाव को खारिज किया? ई-3 देशों की कार्रवाई को बताया भड़काऊ

सारांश
Key Takeaways
- ईरान ने राजनीतिक दबाव को अस्वीकार किया है।
- ई-3 देशों की कार्रवाई को भड़काऊ बताया गया।
- ईरान कूटनीति और तकनीकी सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है।
- स्नैपबैक तंत्र के तहत प्रतिबंध लागू हो सकते हैं।
- 2015 के परमाणु समझौते की स्थिति अस्थिर है।
तेहरान, 20 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम के संबंध में विभिन्न देशों की चिंताओं के बीच स्पष्ट किया है कि वह किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप और अनुचित दबाव को सहन नहीं करेगा। ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराघची ने चेतावनी दी कि ऐसे कदम केवल तनाव को बढ़ा सकते हैं।
अराघची ने कहा कि ईरान कूटनीति और तकनीकी सहयोग के प्रति प्रतिबद्ध है। सरकारी समाचार एजेंसी इरना के अनुसार, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी के साथ टेलीफोन पर बातचीत में यह जानकारी साझा की। यह वार्ता उस समय हुई जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 2015 के परमाणु समझौते के तहत प्रतिबंधों में छूट बढ़ाने वाले प्रस्ताव को पारित करने में असफल रहा।
वहीँ, अराघची ने आईएईए बोर्ड की बैठक में 'राजनीतिक कार्रवाई' की निंदा की और कहा कि ईरान का निगरानी संस्था के साथ सहयोग अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप है। ईरान के विदेश मंत्रालय ने यूरोपीय देशों के कदम को अवैध और भड़काऊ करार दिया। उन्होंने ई-3 देशों पर कूटनीति को कमजोर करने का आरोप भी लगाया।
फ्रांस, जर्मनी, और ब्रिटेन (ई3) ने पिछले महीने 2015 की संयुक्त व्यापक कार्य योजना के तहत 'स्नैपबैक' तंत्र को सक्रिय किया। इसके अनुसार, यदि 2015 के परमाणु समझौते का उल्लंघन होता है, तो ईरान पर 30 दिनों के भीतर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध फिर से लागू हो सकते हैं।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी के अनुसार, ये प्रतिबंध इस महीने के अंत में प्रभावी हो सकते हैं।
ई-3 देशों का कहना है कि ईरान निरीक्षकों को पूरी पहुंच देने में असफल रहा है। इसके अलावा, आरोप लगाया गया है कि ईरान ने परमाणु सामग्री पर स्पष्टता नहीं दी और संयुक्त राज्य अमेरिका व अन्य पक्षों के साथ वार्ता में लौटने के लिए ठोस प्रस्ताव पेश करने की समय सीमा को अनदेखा किया।
इस साल की शुरुआत में ईरान ने वाशिंगटन के साथ परमाणु वार्ता के कई दौर किए, लेकिन जून में ईरानी परमाणु ठिकानों पर इजरायल के हमलों के बाद वार्ता और आईएईए के साथ सहयोग दोनों को रोक दिया गया।
2015 में ईरान और छह विश्व शक्तियों ने जेसीपीओए नामक एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 2018 में, जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस समझौते से बाहर निकलने का निर्णय लिया, तो यह कमजोर पड़ने लगा। इसके जवाब में, ईरान ने भी धीरे-धीरे इस समझौते के नियमों का पालन करना कम कर दिया।