क्या अमेरिका पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून पर कार्रवाई करेगा?
सारांश
Key Takeaways
- यूएससीआईआरएफ ने पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून में सुधार की अपील की है।
- यह कानून धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए खतरा है।
- पाकिस्तान में भीड़ की हिंसा बढ़ रही है।
- आयोग ने अमेरिका से ठोस कदम उठाने का आग्रह किया है।
- ईशनिंदा कानून के तहत कई निर्दोष लोगों को सज़ा मिल रही है।
वाशिंगटन, 3 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। ‘यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम’ (यूएससीआईआरएफ) ने ट्रंप प्रशासन से अपील की है कि वह पाकिस्तान के साथ मिलकर उसके ईशनिंदा (ब्लैस्पेमी) कानून में सुधार करने या इसे समाप्त करने की दिशा में कदम उठाए। आयोग ने चेतावनी दी है कि यह कानून पाकिस्तान में भीड़ की हिंसा, बेगुनाह लोगों की गिरफ्तारी और ईसाइयों, अहमदिया मुसलमानों तथा अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बढ़ते खतरों का मुख्य कारण है।
यह अपील तब की गई जब पाकिस्तान सरकार ने हाल ही में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) नामक कट्टरपंथी संगठन पर प्रतिबंध लगाया है। यह संगठन अक्सर ईशनिंदा कानून के नाम पर हिंसक भीड़ जुटाने की कोशिश करता है।
यूएससीआईआरएफ ने कहा कि टीएलपी ने कई मौकों पर भीड़ को भड़काकर धार्मिक अल्पसंख्यकों को डराने और उन पर हमला करने की कोशिश की है। कई बार उसने ईशनिंदा कानून का उल्लंघन करने वालों को मौत की सज़ा देने की मांग भी की है।
आयोग के अनुसार, ऐसी गतिविधियाँ पाकिस्तान के गैर-मुस्लिम समुदायों और अहमदियों के लिए लंबे समय से खतरा बनी हुई हैं। अहमदियों को कानूनी रूप से खुद को मुसलमान बताने की अनुमति नहीं है। आयोग का मानना है कि ऐसे माहौल में बिना किसी प्रमाण के लगाए गए आरोप दंगे भड़का सकते हैं या किसी की जान ले सकते हैं।
यूएससीआईआरएफ के उपाध्यक्ष आसिफ महमूद ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान तभी संभव है, जब दोषियों को सज़ा मिले। उन्होंने कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा को राजनीतिक या सामाजिक कामकाज का वैध तरीका नहीं माना जा सकता। जो लोग राजनीतिक गतिविधियों के नाम पर हिंसा भड़काते हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
आयोग ने यह भी बताया कि ईशनिंदा के मामलों में कानूनी सज़ाओं के अलावा सामाजिक नुकसान भी गंभीर होते हैं। पाकिस्तान में कई लोग निजी झगड़े निपटाने के लिए ईशनिंदा के झूठे आरोप लगा देते हैं। ऐसे मामलों के कारण अक्सर बिना मुकदमे के भीड़ द्वारा हत्या या हिंसा होती है, जिसका सबसे अधिक असर धार्मिक अल्पसंख्यकों पर पड़ता है।
कमीशन ने वाशिंगटन से इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम एक्ट के तहत इस्लामाबाद के साथ सुधारात्मक कदम उठाने के लिए आवश्यक समझौते पर विचार करने का आग्रह किया, ताकि सुधार के ठोस कदम उठाए जा सकें। जैसे कि ईशनिंदा के आरोप में जेल में बंद लोगों को रिहा करना, भीड़ की हिंसा पर रोक लगाना और अंत में ईशनिंदा कानून को समाप्त करने की दिशा में बढ़ना।
आयोग के सदस्य एम. सोलोविचक ने कहा कि वर्तमान में, ईशनिंदा के आरोपों में जेल में बंद लोगों को अक्सर मौत की सज़ा या एकांत कारावास में लंबी सज़ा होती है। उन्होंने अमेरिकी प्रशासन से आग्रह किया कि वह पाकिस्तान सरकार के साथ मिलकर इन लोगों की रिहाई की कोशिश करे और भीड़ हिंसा में शामिल लोगों को सज़ा दिलवाए।
यूएससीआईआरएफ की 2025 की वार्षिक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अमेरिका पाकिस्तान को फिर से “सिस्टमैटिक, लगातार और गंभीर” धार्मिक-आजादी के उल्लंघन के लिए खास चिंता वाले देश के रूप में सूचीबद्ध करे। यह सूची किसी देश पर कूटनीतिक या आर्थिक दबाव बढ़ा सकती है।
आयोग ने यह भी बताया कि सितंबर में जारी एक विस्तृत रिपोर्ट में पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों और उनके लिए लगातार बिगड़ते माहौल की जानकारी दी गई है। इन समुदायों को पहले से ही भेदभाव और राजनीतिक उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून, खासकर धारा 295-सी में मौत की सज़ा का प्रावधान है। दुनिया भर में मानवाधिकार संगठन इसकी आलोचना करते रहे हैं। पाकिस्तान ने भले ही अब तक इस प्रक्रिया को लागू नहीं किया है, लेकिन कई लोग मौत की सज़ा का इंतजार कर रहे हैं। कई मामलों में भीड़ ने अदालत तक बात पहुंचने से पहले ही आरोपित लोगों पर हमला कर दिया या उन्हें मार दिया।