क्या नेपाल संकट में जेन जी के विरोध प्रदर्शन की नई बारीकियां हैं?

सारांश
Key Takeaways
- सोशल मीडिया का प्रभावी उपयोग युवा पीढ़ी को सशक्त बनाता है।
- जेनरेशन जेड अपनी आवाज उठाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का सहारा ले रहा है।
- प्रदर्शनकारियों का नैरेटिव सेट करने में सोशल मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- सरकारें सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाकर संवाद को प्रभावित करने की कोशिश करती हैं।
- राजनीतिक संदेशों को बाधित नहीं किया जा सकता।
काठमांडू, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। पिछले चार वर्षों में नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में हुई उथल-पुथल के दौरान सोशल मीडिया का उपयोग एक मेगाफोन के रूप में किया जाना चर्चा का विषय बन गया है। यह सामाजिक विभाजन को उजागर करता है और साथ ही जवाबदेही की मांग भी करता है।
पुणेएमआईटी आर्ट, डिजाइन एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के इंटरनेशनल स्कूल ऑफ ब्रॉडकास्टिंग एंड जर्नलिज्म के निदेशक डॉ. संबित पाल ने बताया, "जेनरेशन जेड 'डिजिटल नेटिव' हैं, जो इंटरनेट और सोशल मीडिया के साथ बड़े हुए हैं और इसलिए इस प्लेटफॉर्म की बारीकियों से भली-भांति अवगत हैं।"
नेपाल में युवा प्रदर्शनकारियों ने जेन जी या जनरेशन जेड शब्द का उपयोग किया है। यह शब्द 1997 और 2012 के बीच पैदा हुए लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है।
उन्होंने आगे कहा, "सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने उन्हें मेनस्ट्रीम मीडिया को दरकिनार कर, अपने नैरेटिव सेट करने और शासन संबंधी मुद्दों पर मिलकर राय व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया है।"
अध्ययनों से पता चलता है कि सोशल मीडिया अभियान मतदाताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं, भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को बढ़ावा दे सकते हैं, और जब पारंपरिक मीडिया सीमित दायरे में काम करती है, तो नागरिक संवाद को बनाए रख सकते हैं।
मीडिया स्किल्स लैब के संस्थापक-निदेशक जॉयदीप दास गुप्ता ने कहा, "अरब विद्रोह से लेकर दक्षिण एशियाई देशों के आंदोलनों तक, प्रदर्शनकारियों ने इंटरनेट का उपयोग किया है, जो संचार का एक शक्तिशाली माध्यम है, जिसमें न्यूनतम खर्च में अधिकतम पहुंच है।"
मीडिया स्किल्स लैब एक शैक्षिक-शोध संस्थान है जो मीडिया साक्षरता, फैक्ट-चैक, एआई साक्षरता, डेटा जर्नलिज्म और सोल्यूशन जर्नलिज्म पर केंद्रित है।
फोर्ब्स कम्युनिकेशंस काउंसिल की एक पोस्ट के अनुसार, "सभी सोशल मीडिया चैनल एक जैसे नहीं बनाए जाते। प्रत्येक प्लेटफॉर्म के अपने विशिष्ट यूजर समूह होते हैं, जिनकी सामग्री के साथ बातचीत करने की अपनी विशिष्टताएं होती हैं।"
लेख 13 प्रैक्टिस पर प्रकाश डालती हैं, जिनमें व्यवसाय की प्रकृति को पहचानना, कोर टारगेट ऑडियंस पर फोकस करना, ग्राहक जनसांख्यिकी, प्रतिस्पर्धियों पर शोध आदि शामिल हैं।
ज्यादातर बातें चीनी रणनीतिकार और दार्शनिक सुन त्जु की शिक्षाओं जैसी लग सकती हैं, जिन्होंने अपने दुश्मन को जानने के महत्व पर जोर दिया था।
दास गुप्ता ने बताया, "इंटरनेट के लोकतंत्रीकरण के साथ, पहुंच आसान हो गई है। संदेश का प्रसार तुरंत होता है और आंदोलन गति पकड़ लेता है।"
जब विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो सरकारें आमतौर पर संदेशों के प्रसार को रोकने के लिए सोशल मीडिया हैंडल या इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा देती हैं।
2022 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान, श्रीलंका ने आपातकाल की घोषणा करके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पहुंच को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर कर्फ्यू लगा दिया था।
तत्कालीन बांग्लादेश सरकार ने भी लगभग इसी तरह की प्रतिक्रिया दी थी, जबकि नेपाल में, राजधानी काठमांडू की सड़कों पर हिंसा भड़कने के साथ प्रतिबंध हटा लिया गया था।
हालांकि, जैसा कि घटनाओं से पता चलता है, अधिकारी आपातकालीन समय को छोड़कर वेब सामग्री पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते। ये प्लेटफॉर्म निजी स्वामित्व वाले हैं, और इंटरनेट पर पुलिस की निगरानी का सुझाव भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा डालने के आरोपों को जन्म देता है।
लेकिन ऐसे हैंडल के एल्गोरिदम यह तय कर सकते हैं कि लोग क्या देखें और क्या नहीं।
ऐसे एल्गोरिदम वाले कानूनों का उपयोग करके, बाल शोषण, हिंसा और झूठी कहानियों के प्रसार पर लगाम लगाने के लिए एक 'स्टैच्यूरी बिल्डिंग कोड' बनाने की सिफारिश की गई है, जिसमें डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए अनिवार्य सुरक्षा और गुणवत्ता संबंधी जरूरतें शामिल हैं।
लेकिन विशेषज्ञों का यह भी मत है कि राजनीतिक और सामाजिक संदेशों को बाध्य नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए।