क्या कस्तूरी आपूर्ति बंद होने से नेपाल में अशांति हो रही है?

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क्या कस्तूरी आपूर्ति बंद होने से नेपाल में अशांति हो रही है?

सारांश

पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सेवकों का कहना है कि नेपाल से कस्तूरी की आपूर्ति बंद होने से मंदिर के अनुष्ठान प्रभावित हो रहे हैं। क्या यह नेपाल में अशांति का कारण बन रहा है? जानिए इस धार्मिक मुद्दे की गहराई में।

Key Takeaways

  • कस्तूरी का धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष महत्व है।
  • कस्तूरी की आपूर्ति बंद होने से अनुष्ठान प्रभावित हो रहे हैं।
  • नेपाल और पुरी के बीच का आध्यात्मिक रिश्ता कमजोर हो रहा है।
  • मंदिर प्रशासन को कस्तूरी की आपूर्ति फिर से शुरू करने की आवश्यकता है।
  • भविष्य में कस्तूरी की आपूर्ति की समस्या को हल करने के कदम उठाने चाहिए।

पुरी, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। ओडिशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के कुछ सेवकों ने नेपाल में चल रही अशांति को मंदिर के लिए कस्तूरी की आपूर्ति बंद होने से जोड़ा है।

उनका कहना है कि यह कस्तूरी मंदिर के अनुष्ठानों के लिए आवश्यक है, जो पहले नेपाल से आती थी। सेवकों के अनुसार, नेपाल से कस्तूरी न मिलने से मंदिर की परंपराएं और धार्मिक अनुष्ठान प्रभावित हो रहे हैं।

सेवकों ने बताया कि प्राकृतिक कस्तूरी का उपयोग मंदिर के दैनिक और विशेष अनुष्ठानों में होता है। विशेष रूप से ‘बनक लागी’ नामक गुप्त अनुष्ठान में इसका उपयोग होता है, जिसमें देवताओं को सजाया जाता है। इसके अलावा, यह कस्तूरी नीम की लकड़ी से बनी मूर्तियों को कीड़ों से बचाने और भगवान जगन्नाथ के चेहरे की सुंदरता बढ़ाने में भी सहायक है।

चुनारा सेवक डॉ. शरत मोहंती ने कहा, "कस्तूरी कैलाश क्षेत्र में मानसरोवर झील के पास पाए जाने वाले कस्तूरी मृग से मिलती है। पहले नेपाल के राजा इसे नियमित रूप से पुरी भेजते थे, क्योंकि उनके और जगन्नाथ मंदिर के बीच गहरा आध्यात्मिक रिश्ता था।"

उन्होंने बताया कि नेपाल के राजाओं को पुरी आने पर रत्न सिंहासन पर भगवान जगन्नाथ की पूजा करने का विशेष अधिकार मिलता था। सेवकों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में वन्यजीव संरक्षण कानूनों के कारण नेपाल ने कस्तूरी की आपूर्ति बंद कर दी है। इससे मंदिर के अनुष्ठान प्रभावित हुए हैं।

डॉ. मोहंती ने याद दिलाया कि पहले जब कस्तूरी की आपूर्ति रुकी थी, तब नेपाल में भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं आई थीं। ये घटनाएं आपस में जुड़ी हैं।

चुनारा सेवकों ने मंदिर प्रशासन और भारत सरकार से अपील की है कि वे कस्तूरी की आपूर्ति फिर से शुरू करने के लिए कदम उठाएं। उन्होंने नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर का उदाहरण दिया, जो भारत के केदारनाथ का आध्यात्मिक जुड़ाव माना जाता है। यह दोनों मंदिरों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ते को दर्शाता है।

सेवकों का मानना है कि कस्तूरी की कमी से केवल अनुष्ठान ही प्रभावित नहीं होंगे, बल्कि नेपाल और पुरी के बीच का प्राचीन आध्यात्मिक बंधन भी कमजोर होगा।

वहीं, ‘बनक लागी’ अनुष्ठान से जुड़े संजय कुमार दत्ता महापात्रा ने कहा कि कस्तूरी के बिना अनुष्ठान अधूरे हैं। मंदिर प्रशासन बार-बार अनुरोध के बावजूद कहता है कि नेपाली राजा ने कस्तूरी भेजना बंद कर दिया है। इसी तरह, मुक्ति मंडप के पंडित संतोष कुमार दास ने कहा कि नेपाल के राजा सूर्यवंश और पुरी के गजपति राजा चंद्रवंश से हैं। जगन्नाथ परंपरा दोनों राजवंशों को जोड़ती है, और कस्तूरी इस पवित्र विरासत का हिस्सा रही है।

सेवकों का कहना है कि कस्तूरी के बिना दैनिक पूजा प्रभावित हो रही है और नेपाल-पुरी का रिश्ता भी कमजोर हो रहा है। वे चाहते हैं कि सरकार इस समस्या का समाधान करे ताकि मंदिर की परंपराएं बनी रहें।

Point of View

यह ध्यान रखना आवश्यक है कि धार्मिक परंपराएं और सांस्कृतिक रिश्ते हमारे समाज की नींव हैं। नेपाल से कस्तूरी की आपूर्ति में कमी न केवल धार्मिक अनुष्ठानों पर असर डाल रही है, बल्कि यह दो देशों के बीच के गहरे संबंधों को भी प्रभावित कर रही है। हमें इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए।
NationPress
12/09/2025

Frequently Asked Questions

कस्तूरी क्या है?
कस्तूरी एक सुगंधित पदार्थ है जो कस्तूरी मृग से प्राप्त होता है और धार्मिक अनुष्ठानों में इसका विशेष महत्व है।
नेपाल से कस्तूरी की आपूर्ति क्यों बंद हुई?
वन्यजीव संरक्षण कानूनों के कारण नेपाल ने कस्तूरी की आपूर्ति बंद कर दी है।
जगन्नाथ मंदिर में कस्तूरी का उपयोग कैसे होता है?
कस्तूरी का उपयोग मंदिर के दैनिक और विशेष अनुष्ठानों में किया जाता है, विशेष रूप से 'बनक लागी' अनुष्ठान में।
क्या कस्तूरी की कमी से मंदिर की परंपराएं प्रभावित हो रही हैं?
हाँ, सेवकों का कहना है कि कस्तूरी की कमी से अनुष्ठान और परंपराएं प्रभावित हो रही हैं।
क्या नेपाल और पुरी के बीच का रिश्ता कमजोर हो रहा है?
सेवकों का मानना है कि कस्तूरी की कमी से नेपाल और पुरी के बीच का प्राचीन आध्यात्मिक बंधन कमजोर हो रहा है।