क्या भारत की बांग्लादेश में फिल्मकार सत्यजीत रे के पुश्तैनी घर को बचाने की पहल हो रही है?

सारांश
Key Takeaways
- सत्यजीत रे का पुश्तैनी घर एक ऐतिहासिक इमारत है।
- इस घर को गिराने का प्रयास किया जा रहा है।
- भारत सरकार ने हस्तक्षेप किया है।
- स्थानीय लोगों का विरोध बढ़ता जा रहा है।
- यह घर बांग्लादेश और भारत के बीच सांस्कृतिक संबंध दर्शाता है।
ढाका, 16 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। बांग्लादेश में फिल्मकार सत्यजीत रे से संबंधित 200 साल पुराना पुश्तैनी घर गिराने की कड़ी आलोचना हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय प्रशासन को कार्य अस्थायी रूप से रोकना पड़ा है।
हरिकिशोर रॉय रोड पर स्थित यह ऐतिहासिक एक मंजिला इमारत सत्यजीत रे के दादा उपेंद्रकिशोर रे से संबंधित है और इसे मयमनसिंह जिला बाल अकादमी द्वारा गिराने का प्रयास किया जा रहा था। नई इमारत के निर्माण के लिए पुरानी इमारत को तोड़ा जा रहा है। इस पर हेरिटेज एक्टिविटी, पुरातत्व विभाग और भारत सरकार ने नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।
स्थानीय पत्रकारों ने बताया कि सरकार अब यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि यह घर सत्यजीत रे के परिवार का नहीं है, जबकि इतिहास कुछ और ही दर्शाता है। यह घर मूलरूप से मैमनसिंह के मुक्तागचा जमींदारी के संस्थापक श्रीकृष्ण आचार्य के वंशज, जमींदार शशिकांत आचार्य के कर्मियों के लिए बनाया गया था, जिसका सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है।
मैमनसिंह के कटियाडी के एक प्रसिद्ध जमींदार हरिकिशोर रे, जो बंगाली बाल साहित्य के अग्रदूत उपेंद्रकिशोर रे चौधरी, उनके बेटे सुकुमार रे और पोते सत्यजीत रे के पूर्वज थे। हरिकिशोर ने उपेंद्र किशोर को 5 साल की उम्र में गोद लिया था। उन्होंने मैमनसिंह में शिक्षा प्राप्त की और 1880 में मैमनसिंह जिला स्कूल से छात्रवृत्ति के साथ प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की।
जिले के बाल मामलों के अधिकारी मोहम्मद मेहदी जमान के अनुसार, इस संरचना को कई वर्ष पहले परित्यक्त घोषित किया गया था और 2010 के बाद यह अनुपयोगी हो गई थी। हमें एक किराए के भवन से काम करना पड़ता है, जिसके लिए हमें मासिक 47,000 टका (बांग्लादेशी रुपए) का भुगतान करना होता है, जो सरकार पर एक भारी वित्तीय बोझ है। मरम्मत की कोशिश विफल हो गई और इमारत को असुरक्षित माना गया।
उन्होंने कहा कि मेसर्स मयूर बिल्डर्स द्वारा किए गए विध्वंस का उद्देश्य संरचना को एक अर्ध स्थायी सुविधा में बदलना था, जिसमें बाद में पांच मंजिला इमारत बनाने की योजना थी।
हालांकि, इस निर्णय की तीखी आलोचना हुई है। फील्ड ऑफिसर सबीना यास्मीन के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग ने औपचारिक रूप से चिल्ड्रन्स अकादमी से विवरण का अनुरोध किया है, जिसमें घर के ऐतिहासिक मूल्य पर प्रकाश डाला गया है।
यास्मीन ने कहा, "इसे अभी तक पुरातात्विक स्थल के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है और सोशल मीडिया पर आलोचना की बाढ़ आ गई है, इंटरनेट यूजर, साहित्यकार और विरासत प्रेमी रे परिवार की विरासत से जुड़े इस स्थल को ढहाने के फैसले की कड़ी निंदा कर रहे हैं।"
भारत सरकार ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया है और बांग्लादेश को एक पत्र भेजकर विध्वंस रोकने एवं जीर्णोद्धार के लिए समर्थन की पेशकश की है। मीडिया रिपोर्ट्स में आंशिक विध्वंस की खबर आने के बाद यह मुद्दा तूल पकड़ा है, जिसमें आधा सामने का हिस्सा पहले ही ढहा दिया गया था और मलबा बिखरा हुआ था। जब मंगलवार को स्थल का दौरा किया गया तो कोई भी मजदूर नहीं दिखा, जो बढ़ते विरोध के बीच कार्य में रुकावट का संकेत देता है।
जिला प्रशासन ने इस घर को सीधे सत्यजीत रे से जोड़ने वाले दावों से खुद को अलग कर लिया है और दावा किया है कि यह घर जमींदार शशिकांत का था। हालांकि, स्थानीय लोग इससे असहमत हैं।
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इस विध्वंस को बांग्लादेश और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंधों को मिटाने की एक 'सुनियोजित योजना' का हिस्सा बताया और इसकी तुलना बंगबंधु के आवास जैसे विरासत स्थलों पर हुए पिछले विवादों से की।
एडिशनल डिप्टी कमिश्नर रेजा मोहम्मद गुलाम मासूम प्रोधान ने कहा कि प्रशासन ने दस्तावेजों की समीक्षा और आगे की कार्रवाई तय करने के लिए चिल्ड्रन्स अकादमी को बुलाया है। हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि तोड़फोड़ की मंजूरी कैसे मिली और क्या किया जा सकता है?