क्या यूके में दीपोत्सव अब केवल त्योहार नहीं, बल्कि रोशनी का उत्सव बन गया है?
सारांश
Key Takeaways
- लीसेस्टर में दिवाली का उत्सव पूरे यूरोप का सबसे बड़ा है।
- ब्रिटिश समाज में दिवाली की लोकप्रियता बढ़ रही है।
- दिवाली अब केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि रोशनी का उत्सव बन गई है।
- ब्रिटिश पड़ोसी भी दिवाली की गतिविधियों में शामिल होते हैं।
- यह पर्व भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देता है।
लंदन/लीसेस्टर, 20 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में हम जहां दीपोत्सव एक निश्चित तिथि पर मनाते हैं, वहीं यूके में यह त्योहार कई महीनों पहले से ही अपनी चमक बिखेरने लगता है। यूके में एक ऐसा शहर है, जिसे वहां के भारतीय लोग प्यार से ‘दिवाली की राजधानी’ कहते हैं। वह शहर है लीसेस्टर।
दरअसल, एशियाई समुदाय की पहल पर ब्रिटेन में दिवाली मनाने की सार्वजनिक शुरुआत सबसे पहले लीसेस्टर से ही हुई थी। 1980 के दशक में भारतीय प्रवासियों के छोटे समूहों ने दीपों से सजे गोल्डन माइल पर पहली बार इस पर्व का आयोजन किया था। आज यह पूरे यूरोप का सबसे बड़ा दिवाली उत्सव बन चुका है, जहां हर साल लगभग 40,000 से अधिक लोग शामिल होते हैं। इस शहर के चौक-चौराहे महीनों पहले से सजने लगते हैं।
इस बार भी गोल्डन माइल दीयों और सजावटी रोशनी से जगमगा उठा है। हर बार की तरह, इस बार भी पूरा महकमा तैनात है। पिछले दो हफ्तों से तैयारी चल रही है। स्थानीय परिषद के अनुसार, लीसेस्टर की दिवाली अब “ब्रिटिश बहुसांस्कृतिकता की एक खूबसूरत मिसाल” बन चुकी है।
रोशनी की इसी चमक को लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर और उत्तरी इंग्लैंड के वेकफील्ड तथा हैलिफैक्स में भी देखा गया।
ट्राफलगर स्क्वायर दिवाली के समय में एक अलग ही रूप धारण कर लेता है। इस साल “लाइट अप लंदन” थीम पर आयोजित कार्यक्रम में हजारों लोगों ने भाग लिया। मंच पर भरतनाट्यम, गरबा और भांगड़ा प्रस्तुतियों ने माहौल को जीवंत बना दिया।
लंदन के मेयर सादिक खान ने दिवाली की शुभकामनाएं देते हुए कहा, “दिवाली हमें याद दिलाती है कि रोशनी हमेशा अंधकार पर विजय प्राप्त करती है, और अच्छाई अंततः जीतती है। यह त्योहार लंदन की विविधता और सौहार्द का उत्सव है।”
वेकफील्ड के निवासी ऋषिकांत कहते हैं, “यहां भी दिवाली का माहौल बिल्कुल भारत जैसा होता है। परिवार, दोस्त और पूरा समुदाय मिलकर आते हैं। हम पूजा करते हैं, बच्चों के साथ दीप जलाते हैं, और सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और अगली पीढ़ी को भारतीय परंपराओं से परिचित कराता है।”
लेस्टरशायर काउंटी के अजय कुमार बताते हैं, “हम हर साल अपने क्षेत्र के परिवारों के साथ मिलकर सामुदायिक दिवाली मनाते हैं। बच्चे पारंपरिक कपड़े पहनते हैं, घर सजाए जाते हैं, और पूजा के बाद सभी मिलकर पटाखे जलाते हैं। हमारे ब्रिटिश पड़ोसी भी इसमें शामिल होते हैं—वे ‘हैप्पी दिवाली’ कहते हुए मिठाइयां और दीये लेते हैं। यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि संस्कृति लोगों को जोड़ती है।”
हैलिफैक्स के निशांत कुमार कहते हैं, “हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा है कि ब्रिटिश लोग भी दिवाली की भावना को समझने लगे हैं। वे अब इसे केवल ‘भारतीय त्योहार’ नहीं, बल्कि ‘रोशनी का उत्सव’ मानने लगे हैं। स्कूलों और स्थानीय परिषदों में भी अब दिवाली के बारे में सत्र आयोजित किए जाते हैं। यह एक खूबसूरत सांस्कृतिक परिवर्तन है।”