क्या विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएई के उप-प्रधानमंत्री से पश्चिम एशिया में तनाव पर चर्चा की?

सारांश
Key Takeaways
- पश्चिम एशिया में तनावपूर्ण स्थिति
- इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता सैन्य संघर्ष
- भारत का कूटनीतिक हस्तक्षेप आवश्यक
- वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव
- पूर्ण युद्ध की आशंका
नई दिल्ली, 16 जून (राष्ट्र प्रेस)। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को पश्चिम एशिया की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यूएई के उप प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नहयान से संवाद किया। विदेश मंत्री ने इस वार्ता की जानकारी अपने आधिकारिक सोशल मीडिया 'एक्स' हैंडल पर साझा की।
अपने पोस्ट में उन्होंने लिखा, “मैंने पश्चिम एशिया की मौजूदा स्थिति और कूटनीति की भूमिका पर यूएई के उप प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नहयान से फोन पर चर्चा की।”
इस समय पश्चिम एशिया में स्थिति बेहद तनावपूर्ण और अस्थिर है, जो मुख्य रूप से इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते सैन्य संघर्ष के कारण है। यह क्षेत्र पहले से ही लेबनान, गाजा, और यमन में चल रहे संघर्षों से प्रभावित था, लेकिन हाल ही में इजरायल-ईरान तनाव ने स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है।
12 जून को इजरायल ने “ऑपरेशन राइजिंग लायन” के तहत ईरान पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए। इन हमलों में तेहरान, इस्फहान और खोर में सैन्य ठिकानों, हवाई रक्षा प्रणालियों और कथित न्यूक्लियर प्लांट्स को निशाना बनाया गया।
इजरायल ने दावा किया कि इन हमलों का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था, जिसे वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा मानता है।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की मई 2025 की रिपोर्ट में ईरान पर 60 फीसद से अधिक संवर्धित यूरेनियम जमा करने और परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के उल्लंघन का आरोप लगाया गया, जिसने इजरायल को हमले की औपचारिक “वैधता” प्रदान की।
इन हमलों में ईरान के शीर्ष सैन्य अधिकारी, जैसे मेजर जनरल हुसैन बघेरी और रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर हुसैन सलामी भी मारे गए। इसके जवाब में, ईरान ने “ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस III” की शुरुआत की, जिसमें इजरायल पर 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन दागे गए। इन हमलों ने तेल अवीव और हाइफा में गंभीर नुकसान पहुंचाया।
यह तनाव 2024 में शुरू हुआ था, जब इजरायल ने दमिश्क में ईरानी दूतावास पर हमला किया, जिसमें कई ईरानी राजनयिक मारे गए थे। इसके बाद से दोनों देशों के बीच संघर्ष तेज हो गया। इन हमलों का प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा, जिससे तेल की कीमतों में 6-7 प्रतिशत की वृद्धि हुई और शेयर बाजार में गिरावट देखी गई।
मौजूदा स्थिति में इस क्षेत्र में पूर्ण युद्ध की आशंका बढ़ गई है, जिसके परिणामस्वरूप भारत, यूएई और अन्य देश कूटनीतिक हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।