क्या 15 अगस्त को देश को मिला 'पिन कोड' ने चिट्ठियों की दुनिया में क्रांति लाई?

सारांश
Key Takeaways
- पिन कोड ने चिट्ठियों के वितरण में सुधार किया।
- यह ई-कॉमर्स और सरकारी सेवाओं के लिए आवश्यक है।
- छह अंकों का कोड सही जगह पर सामग्री पहुंचाने में मदद करता है।
- इसकी शुरुआत 15 अगस्त 1972 को हुई थी।
- श्रीराम भीकाजी वेलंकर इस प्रणाली के प्रवर्तक हैं।
नई दिल्ली, 14 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। 15 अगस्त 1972 को न केवल तिरंगे ने आसमान में अपनी शान बिखेरी, बल्कि भारतीय डाक व्यवस्था में भी एक नया अध्याय शुरू हुआ- पोस्टल इंडेक्स नंबर, जिसे हम पिन कोड के नाम से जानते हैं। 70 के दशक में चिट्ठियां हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं, लेकिन सही पते पर इनका पहुंचना कभी-कभी किस्मत का खेल बन जाता था। इसका मुख्य कारण था कई शहरों और गांवों के नामों का समान होना। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए एक सटीक कोडिंग सिस्टम की आवश्यकता महसूस की गई, और यहीं से पिन कोड का जन्म हुआ।
इस क्रांतिकारी पहल के पीछे थे श्रीराम भीकाजी वेलंकर, जो उस समय के केंद्रीय संचार मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव और डाक एवं तार बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य थे। उन्हें 'फादर ऑफ द पोस्टल इंडेक्स कोड सिस्टम' कहा जाता है। वेलंकर ने एक सरल लेकिन प्रभावी तरीका सुझाया। इसके बाद देश को जोन में विभाजित किया गया और प्रत्येक जोन को पहले दो अंकों से पहचाना गया। ये पहले दो अंक जोन को दर्शाते हैं, तीसरा अंक उप-क्षेत्र को और अंतिम तीन अंक डाकघर की पहचान को बताते हैं। केवल छह अंकों का यह कोड एक चिट्ठी को सही स्थान पर पहुंचाने का सबसे भरोसेमंद तरीका बन गया।
हालांकि वर्तमान में चिट्ठियों की जगह व्हाट्सऐप और ईमेल ने ले ली है, लेकिन पिन कोड की आवश्यकता आज भी बनी हुई है, बल्कि यह पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। अमेज़न से लेकर फ्लिपकार्ट तक हर ऑनलाइन ऑर्डर का सफर पिन कोड से शुरू होता है। कूरियर और डिलीवरी सेवाओं में भी पिन कोड के बिना आपका पार्सल किसी और शहर में पहुंच सकता है। सरकारी योजनाओं और बैंकिंग सेवाओं में भी सही पिन कोड आवश्यक है, ताकि लाभार्थी तक सुविधाएं सही समय पर पहुंच सकें।
कल्पना कीजिए, 70 के दशक में एक सैनिक को भेजी गई चिट्ठी, बिना पिन कोड के, किसी और की झोली में पहुंच जाती या कोई शादी का निमंत्रण हफ्तों की देरी से मिलता या किसी और को मिल जाता। पिन कोड ने इन सभी समस्याओं का समाधान किया। आज, 53 साल बाद भी, जब कोई पैकेज आपके दरवाजे पर आता है, उसके सफर की शुरुआत उस छोटे से छह अंकों वाले कोड से होती है, जो 15 अगस्त 1972 को हमारे जीवन में आया था।
पिन कोड केवल एक नंबर नहीं, बल्कि एक विश्वास है जो समय पर आपकी चिट्ठी और सामान पहुंचने की गारंटी देता है। यह उस दौर की याद दिलाता है जब चिट्ठियां दिलों को जोड़ती थीं और आज यह ई-कॉमर्स और सरकारी सेवाओं को सही पते तक पहुंचाने में उतना ही महत्वपूर्ण है।
15 अगस्त को जहां हम आजादी का जश्न मनाते हैं, वहीं यह भी याद रखना चाहिए कि इसी दिन हमें मिला था एक ऐसा तोहफा, जिसने देश के हर पते को एक अद्वितीय पहचान दी।