क्या है अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस और इस साल की थीम?
सारांश
Key Takeaways
- अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस हर साल 18 दिसंबर को मनाया जाता है।
- इस साल की थीम 'मेरी महान कहानी: संस्कृति और विकास' है।
- प्रवासी श्रमिक नवाचार में योगदान करते हैं।
- भारत का प्रवासी समुदाय विश्व का सबसे बड़ा है।
- रेमिटेंस भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
नई दिल्ली, 17 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हर वर्ष 18 दिसंबर को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस विश्वभर के लाखों प्रवासियों के योगदान, चुनौतियों और अधिकारों को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 4 दिसंबर 2000 को इसे आधिकारिक रूप से मान्यता दी थी, जब प्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी थी।
यह दिन प्रवासन से जुड़ी कठिनाइयों पर ध्यान केंद्रित करता है: संघर्ष, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक दबाव, और सुरक्षा की तलाश में लोग अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर होते हैं, अक्सर खतरनाक यात्राओं का सामना करते हैं। इस दिन का उद्देश्य उनके योगदान का उत्सव मनाना है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2025 की थीम 'मेरी महान कहानी: संस्कृति और विकास' की घोषणा की है। यह थीम मानव गतिशीलता के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करती है, यह दर्शाती है कि प्रवासन कैसे विकास को बढ़ावा देता है, समाज को समृद्ध बनाता है, संस्कृतियों को जोड़ता है और समुदायों को अनुकूलता और सहयोग की शक्ति प्रदान करता है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन के अनुसार, प्रवासी श्रम बाजारों में कमी को पूरा करते हैं, नवाचार में सहयोग करते हैं और रेमिटेंस के माध्यम से अपने परिवारों और देश को सशक्त बनाते हैं।
प्रवासन स्वैच्छिक (बेहतर अवसरों के लिए) या अनैच्छिक (युद्ध, प्राकृतिक आपदा) हो सकता है। शरणार्थी सुरक्षा की तलाश में जाते हैं, जबकि आर्थिक प्रवासी रोजगार की खोज में। गिरमिटिया प्रथा जैसे ऐतिहासिक अनुबंध श्रम भी प्रवासन का एक रूप थे।
भारत के संदर्भ में, प्रवासी समुदाय का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। विश्व का सबसे बड़ा डायसपोरा भारत का है, जिसमें अनुमानित 2 करोड़ से अधिक प्रवासी शामिल हैं। इन्हें तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है: अनिवासी भारतीय (एनआरआई), पीपल ऑफ इंडियन ओरिजिन (पीआईओ), और स्टेटलेस पर्सन्स ऑफ इंडियन ओरिजिन (एसपीआईओ)।
भारतीय प्रवासन का इतिहास प्राचीन व्यापार से लेकर उपनिवेशिक गिरमिटिया प्रथा तक फैला है, जिसने अनेक देशों में भारतीय समुदायों की स्थापना की। आज खाड़ी देशों में 40 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी हैं। रेमिटेंस भारत की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, विदेशों में काम करने वाले भारतीय प्रवासी समुदाय द्वारा भेजी गई धनराशि (रेमिटेंस) विदेशी मुद्रा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। भारत सरकार ने 1990 के दशक से प्रवासी भारतीयों की भूमिका को प्राथमिकता दी है, क्योंकि यह धन देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाता है, विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाता है, और विकास में योगदान करता है।
वर्ष 2008 में भारत ने 52 अरब अमेरिकी डॉलर की रेमिटेंस प्राप्त की थी, जो उस समय दुनिया में सर्वाधिक थी। वहीं, 2024 में यह राशि बढ़कर 129 अरब डॉलर हो गई है, जिससे भारत लगातार शीर्ष स्थान पर बना हुआ है।