क्या भागवत झा आज़ाद का नाम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है?

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क्या भागवत झा आज़ाद का नाम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है?

सारांश

भागवत झा आज़ाद का नाम एक क्रांतिकारी के रूप में इतिहास में दर्ज है। जानें उनके संघर्ष, राजनीति और साहित्य में उनके योगदान के बारे में।

Key Takeaways

  • भागवत झा आज़ाद का संघर्ष स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा था।
  • वे बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
  • उनकी किताब 'मृत्युंजयी' सामाजिक जागरूकता का एक माध्यम है।
  • उनकी राजनीतिक नीति में भ्रष्टाचार के खिलाफ दृढ़ता थी।
  • आज भी उनकी कहानी प्रेरणा का स्रोत है।

नई दिल्ली, 27 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। 1942 का समय था, जब ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन पूरे देश में एक लहर की तरह फैल चुका था। जोश से भरे युवा क्रांतिकारी आज़ादी के लिए किसी भी कीमत चुकाने को तैयार थे। इसी संदर्भ में बिहार का एक युवा, भागवत झा आज़ाद, उस आंदोलन की राह पर निकला। उनके नाम में ‘आजाद’ जुड़ने की कहानी भी इसी संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

28 नवंबर 1922 को बिहार के गोड्डा जिले के महगामा इलाके के कसबा गांव में जन्मे भागवत झा जब टीएनबी कॉलेज के छात्र थे, उसी दौरान भागलपुर के सुल्तानगंज में कुछ युवाओं ने ब्रिटिश सरकार की एक ट्रेन लूटने की योजना बनाई। असलहों से लदी एक ट्रेन दिल्ली से कोलकाता जा रही थी। योजना को सफल बनाने के लिए युवाओं का समूह मैदान में कूद पड़ा, लेकिन ब्रिटिश पुलिस को इसकी जानकारी मिल गई।

पुलिस की गोलीबारी में भागवत झा समेत कई छात्र घायल हो गए। जांघ में गोली लगने के बाद वे गिर पड़े। यह अफवाह फैल गई कि वे मर चुके हैं, लेकिन जब पुलिस घायलों को गिरफ्तार कर अस्पताल भेजने की तैयारी कर रही थी, तभी भागवत को होश आ गया। कुछ साथियों की मदद से वे वहां से भाग निकले। उनके कई साथी गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन वे ‘आजाद’ हो गए। यहीं से उनके नाम के साथ ‘आजाद’ शब्द जुड़ गया, जो उनके जीवन की सबसे बड़ी पहचान बन गया।

स्वतंत्रता संग्राम के इस महत्वपूर्ण क्षण से प्रेरित होकर, भागवत झा आज़ाद ने राजनीति में भी अपनी पहचान बनाई। हालांकि, उन्होंने कभी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा नहीं रखी, लेकिन राजनीति ने उन्हें एक उत्कृष्ट नेता के रूप में स्वीकार किया। भागवत झा भागलपुर से छह बार सांसद रहे और केंद्रीय मंत्री भी बने। 1988 से 1989 तक, वे अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री रहे, जहां उन्होंने अपनी ईमानदारी और साफ छवि से सबका दिल जीत लिया। उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी स्पष्ट और दृढ़ नीति ने उन्हें बिहार में एक आदर्श नेता के रूप में स्थापित किया। उनके समय में सत्ता का नशा नहीं था, बल्कि जनता की भलाई थी।

उन्होंने न केवल राज्य की राजनीति में, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी छाप छोड़ी। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए। वे सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने से कभी पीछे नहीं हटे। उनके परिश्रम और नेतृत्व ने उन्हें आम जनता के बीच एक सशक्त नेता बना दिया।

हालांकि, भागवत झा आज़ाद की कुर्सी एक अपहरण कांड के कारण चली गई। 17 दिसंबर 1988 को भागलपुर में एक सनसनीखेज घटना घटित हुई। एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष प्रवीण सिंह ने एक स्थानीय डॉक्टर की बेटी का अपहरण कर लिया। कहा गया कि प्रवीण सिंह ने लड़की को बंदूक के बल पर जबरन भगाया। इसके बाद भागलपुर के बंगाली और बाकी समाज के लोग इस घटना के खिलाफ उग्र हो गए। इसका एक कारण प्रवीण सिंह का मुख्यमंत्री भागवत झा के साथ करीबी होना था।

प्रवीण उस लड़की को लेकर गोड्डा जिले में मुख्यमंत्री के खास ओंकारनाथ राम के घर पहुंच गया था। इधर, भागलपुर में तीन दिन तक हड़ताल और विरोध प्रदर्शन होते रहे। लड़की भले ही परिवार को वापस सौंप दी गई थी, लेकिन इसका गहरा असर भागवत झा पर पड़ा। यह एक ऐसा घटनाक्रम था, जिसने भागवत झा की राजनीति को समेटकर रख दिया और धीरे-धीरे वे सियासत से गुम हो गए।

राजनीति के अलावा, भागवत झा ‘आजाद’ साहित्यिक दृष्टि से भी बहुत समृद्ध थे। उनकी लिखी हुई किताब ‘मृत्युंजयी’ जन संघर्ष, जीवन के मूल्य और आत्मनिर्भरता पर केंद्रित थी। उन्होंने अपने विचारों और अनुभवों को शब्दों के रूप में कलम से कागजों पर उतारा, जिससे समाज के लोगों में जागरूकता और प्रेरणा का संचार हुआ। यह किताब न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के संघर्ष और जीवन में आस्था की एक मिसाल है।

Point of View

NationPress
27/11/2025

Frequently Asked Questions

भागवत झा आज़ाद कौन थे?
भागवत झा आज़ाद एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी और भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनका नाम 'आजाद' क्यों है?
उनका नाम 'आजाद' उस समय जुड़ा जब उन्होंने ब्रिटिश पुलिस से भागकर अपनी स्वतंत्रता को प्राप्त किया।
वे कब और कहाँ पैदा हुए थे?
वे 28 नवंबर 1922 को बिहार के गोड्डा जिले के महगामा इलाके में पैदा हुए थे।
उन्होंने किस पद पर कार्य किया?
उन्होंने 1988 से 1989 तक अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
उनकी प्रसिद्ध किताब का नाम क्या है?
उनकी प्रसिद्ध किताब 'मृत्युंजयी' है, जो जन संघर्ष और आत्मनिर्भरता पर केंद्रित है।
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