क्या भारत का राजकोषीय घाटा अप्रैल-सितंबर में पूरे वर्ष के लक्ष्य का 36.5 प्रतिशत है?
 
                                सारांश
Key Takeaways
- राजकोषीय घाटा अप्रैल-सितंबर में 5.73 लाख करोड़ रुपए रहा।
- यह पूरे वर्ष के लक्ष्य का 36.5 प्रतिशत है।
- केंद्र सरकार ने 2.69 लाख करोड़ रुपए का लाभांश प्राप्त किया।
- अर्थव्यवस्था की मजबूती के संकेत मिल रहे हैं।
- सरकारी खर्च 23 लाख करोड़ रुपए रहा।
नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत का राजकोषीय घाटा वर्तमान वित्त वर्ष के पहले छह महीनों (अप्रैल-सितंबर अवधि) में 5.73 लाख करोड़ रुपए रहा है, जो कि पूरे वर्ष के लिए बजट में निर्धारित लक्ष्य का 36.5 प्रतिशत है। यह जानकारी शुक्रवार को सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में प्रस्तुत की गई।
आंकड़ों के अनुसार, राजकोषीय घाटा अब नियंत्रण में है और इससे अर्थव्यवस्था की स्थिर वृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
अप्रैल से सितंबर के बीच कुल प्राप्तियां 17.30 लाख करोड़ रुपए रही हैं, जबकि कुल व्यय 23.03 लाख करोड़ रुपए रहा। यह 2025-26 के बजट में निर्धारित लक्ष्य का क्रमशः 49.5 प्रतिशत और 45.5 प्रतिशत था।
राजस्व प्राप्तियां 16.95 लाख करोड़ रुपए रही हैं, जिसमें कर राजस्व 12.29 लाख करोड़ रुपए और गैर-कर राजस्व 4.66 लाख करोड़ रुपए शामिल हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा केंद्र सरकार को 2.69 लाख करोड़ रुपए का लाभांश मिलन से गैर-कर राजस्व में वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष के 2.11 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। इससे केंद्र सरकार को अपने राजकोषीय घाटे को और कम करने में सहायता मिलेगी।
कुल सरकारी खर्च अप्रैल-सितंबर में 23 लाख करोड़ रुपए रहा है, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 21.1 लाख करोड़ रुपए था।
यह राजमार्गों, बंदरगाहों और रेलवे क्षेत्रों में बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर सरकार के बढ़ते खर्च को दर्शाता है, जो भू-राजनीतिक घटनाक्रमों और अमेरिकी टैरिफ उथल-पुथल के बीच आर्थिक विकास को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2025 के बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.9 प्रतिशत रखा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 5.6 प्रतिशत था।
कम होता राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है। इससे सरकार की उधारी में कमी आती है, जिससे बैंकिंग क्षेत्र में कॉर्पोरेट और उपभोक्ताओं को ऋण देने के लिए अधिक धनराशि उपलब्ध होती है, जिससे आर्थिक विकास में तेजी आती है।
 
                     
                                             
                                             
                                             
                                            