क्या बंटवारे की पीड़ा से नारी संघर्ष तक... भीष्म साहनी की कहानियों में समाज की सच्चाई छिपी है?

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क्या बंटवारे की पीड़ा से नारी संघर्ष तक... भीष्म साहनी की कहानियों में समाज की सच्चाई छिपी है?

सारांश

भीष्म साहनी की कहानियों में बंटवारे की पीड़ा और नारी संघर्ष की अनकही दास्तानें हैं। उनकी लेखनी में समाज की सच्चाई, मानवीय संवेदनाएं और सामाजिक चेतना को गहराई से दर्शाया गया है। उनका योगदान आज भी साहित्य में महत्वपूर्ण है।

Key Takeaways

  • भीष्म साहनी का लेखन सामाजिक यथार्थ को दर्शाता है।
  • उनकी रचनाएं मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता देती हैं।
  • उन्होंने विभाजन की त्रासदी को गहराई से चित्रित किया।
  • सामाजिक मुद्दों पर उनकी संवेदनशीलता अद्वितीय है।
  • उनकी रचनाएं आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।

नई दिल्ली, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भीष्म साहनी हिंदी साहित्य के उन चुनिंदा रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से समाज की गहरी सच्चाइयों को उजागर किया। उनकी रचनाओं में न केवल सामाजिक चेतना और मानवीय संवेदनाएं दिखती हैं, बल्कि सहजता, मानवतावादी दृष्टिकोण और सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत करने की अद्वितीय कला उन्हें हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है।

भीष्म साहनी का व्यक्तित्व सादगी, सहानुभूति और मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण था। वे सामाजिक मुद्दों, विशेषकर भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी और सांप्रदायिकता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील थे। अपने बड़े भाई और प्रसिद्ध अभिनेता बलराज साहनी के साथ उनका एक गहरा और प्रेरणादायक रिश्ता था। दोनों ने भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के माध्यम से सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकारों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम हरबंस लाल साहनी और माता का नाम लक्ष्मी देवी था। वे प्रसिद्ध हिंदी फिल्म अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे।

साहनी ने भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले व्यापार किया और विभाजन के बाद भारत आए, जहां उन्होंने पत्रकारिता से अपने करियर की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने फिल्म ‘मोहन जोशी हाजिर हो’ में भी अभिनय किया। उन्होंने टॉलस्टॉय, ऑस्ट्रोवस्की जैसे रूसी लेखकों की लगभग दो दर्जन किताबों का हिंदी में अनुवाद किया, जिनमें टॉलस्टॉय का उपन्यास ‘पुनरुत्थान’ भी शामिल है।

साहनी ने 1965 से 1967 तक हिंदी पत्रिका 'नई कहानियां' का संपादन किया। उन्होंने ‘तमस’ (1974), ‘बसंती’, ‘झरोखे’, और ‘कड़ियां’ जैसे उपन्यास भी लिखे। विभाजन की त्रासदी पर आधारित ‘तमस’ (1974) के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। भीष्म साहनी का उपन्यास ‘तमस’ विभाजन की त्रासदी को दर्शाता है, जिस पर 1986 में एक टीवी सीरीज भी बनी।

इसके अतिरिक्त, उन्होंने सामाजिक बंधनों और नारी जीवन की चुनौतियों को दर्शाते उपन्यास ‘बसंती’ से भी लेखनी की छाप छोड़ी। साहनी ने ‘हानूश’, ‘माधवी’, ‘कबीरा खड़ा बाजार में’, ‘मुआवजे’ और ‘आलमगीर’ जैसे नाटक भी लिखे। उनकी लेखनी में वामपंथी विचारधारा के साथ-साथ मानवतावादी दृष्टिकोण का अनूठा समन्वय दिखाई देता है।

साहनी की लेखनी सामाजिक यथार्थ और मानवीय मूल्यों पर आधारित थी। उनकी रचनाएं प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाती हैं, जिसमें समाज की विसंगतियों, गरीबी और शोषण को उजागर किया गया है। उन्होंने मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी और विचारधारा को अपनी रचनाओं पर हावी नहीं होने दिया। उन्हें पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और कई अन्य सम्मानों से भी नवाजा गया।

11 जुलाई 2003 को भीष्म साहनी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी रचनाओं में सामाजिक चेतना के साथ-साथ मानवीय संवेदनाएं भी दिखाई देती हैं, जो आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।

Point of View

बल्कि यह सामाजिक मुद्दों पर विचार करने के लिए भी प्रेरित करता है। उनके द्वारा उठाए गए विषय आज भी प्रासंगिक हैं और समाज में बदलाव लाने की आवश्यकता को दर्शाते हैं।
NationPress
07/08/2025

Frequently Asked Questions

भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाएं कौन सी हैं?
भीष्म साहनी की प्रमुख रचनाओं में 'तमस', 'बसंती', और 'झरोखे' शामिल हैं।
भीष्म साहनी को कौन से पुरस्कार मिले?
उन्हें पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और कई अन्य सम्मानों से नवाजा गया।
भीष्म साहनी का जन्म कब हुआ?
भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी में हुआ।
भीष्म साहनी के भाई कौन थे?
उनके बड़े भाई बलराज साहनी एक प्रसिद्ध हिंदी फिल्म अभिनेता थे।
भीष्म साहनी की कहानियों का मुख्य विषय क्या है?
उनकी कहानियों का मुख्य विषय सामाजिक यथार्थ, मानवीय संवेदनाएं और नारी जीवन की चुनौतियां हैं।