क्या भाजपा और जदयू के बीच सीट बंटवारे का यह नया फॉर्मूला बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव लाएगा?

सारांश
Key Takeaways
- भाजपा और जदयू का बराबर सीट बंटवारा नई राजनीतिक दिशा दर्शाता है।
- एनडीए के सहयोगी दलों को 41 सीटें आवंटित की गई हैं।
- यह फॉर्मूला राजनीतिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास है।
- राज्य में भाजपा का प्रभुत्व बढ़ रहा है।
- 2015 से यह पहला मौका है जब दोनों दल बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।
पटना, 13 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए ने सीट बंटवारे का नया फॉर्मूला तैयार किया है। इस फॉर्मूले के अनुसार, भाजपा और जदयू इस बार 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। वहीं, एनडीए के अन्य सहयोगी दलों को 41 सीटें आवंटित की गई हैं।
सहयोगी दलों में लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) को 6-6 सीटें दी गई हैं। इस बार भाजपा और जदयू दोनों बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं।
इंफो इन डाटा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में बताया, "2025 के बिहार चुनावों में, भाजपा और जदयू प्रत्येक 101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जबकि सहयोगी दल 41 सीटों पर चुनाव करेंगे। यह पहली बार है जब भाजपा और जदयू दोनों बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जो राज्य में भाजपा के बढ़ते प्रभुत्व को दर्शाता है।"
यदि हम पिछले सीट बंटवारे पर गौर करें तो 2005 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 139 सीटों और भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में जदयू को 88 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 55 सीटें मिली थीं।
इसी तरह, 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 141 और भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इस बार जदयू ने 115 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा को 91 सीटें मिलीं।
2015 के चुनाव में भाजपा और जदयू के रास्ते अलग हो गए थे। जदयू ने महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में भाजपा ने 157 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन केवल 53 सीटों पर जीत हासिल की।
2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू 115 सीटों पर, भाजपा 110 सीटों पर और अन्य सहयोगी दल 18 सीटों पर चुनाव लड़े। भाजपा ने 74 सीटों पर और जदयू ने 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
हालांकि, 2025 में भाजपा और जदयू के बीच 101-101 सीटों का बराबर बंटवारा हुआ है। यह बदलाव स्पष्ट करता है कि भाजपा अब बिहार की राजनीति में जूनियर पार्टनर नहीं रही है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह बराबरी का फॉर्मूला दोनों दलों के बीच समान साझेदारी का संदेश देगा।