क्या बुध प्रदोष पर महादेव और गणपति की पूजा से जीवन में खुशहाली आएगी?

सारांश
Key Takeaways
- प्रदोष व्रत का महत्व जानें।
- महादेव और गणपति की पूजा विधि।
- सुख और समृद्धि के लिए आवश्यक उपाय।
- दान का महत्व समझें।
- शुभ मुहूर्त और पूजा का समय।
नई दिल्ली, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का आयोजन किया जाता है। यदि यह दिन बुधवार को आता है, तो इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। दृक पंचांग के अनुसार, 20 अगस्त को भाद्रपद माह का पहला बुध प्रदोष व्रत मनाया जाएगा।
त्रयोदशी तिथि दोपहर 1:58 से शुरू होकर 21 अगस्त को दोपहर 12:44 तक रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6:56 से रात 9:07 तक है। इस दिन राहुकाल दोपहर 12:24 से 2:02 तक रहेगा, जिसमें पूजा नहीं करनी चाहिए।
यह प्रदोष व्रत महादेव के लिए विशेष प्रिय है। साथ ही, बुधवार के दिन होने के कारण इसका संबंध भगवान शिव के पुत्र गणपति से भी जुड़ता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन की पूजा से सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है, और सभी पाप समाप्त होकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। यह दांपत्य जीवन की समस्याओं को भी हल करने में मदद करता है।
पौराणिक ग्रंथों में प्रदोष व्रत की पूजा विधि सरलता से वर्णित है। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर गंगाजल का छिड़काव करें और आटा, हल्दी, रोली, चावल, और फूलों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। कुश के आसन पर बैठकर भगवान शिव और गणपति की पूजा करें। शिवजी को दूध, जल, दही, शहद, घी से स्नान कराएं और बेलपत्र, माला-फूल, इत्र, जनेऊ, अबीर-बुक्का, जौं, गेहूं, काला तिल, शक्कर आदि अर्पित करें। इसके बाद धूप और दीप जलाकर प्रार्थना करें। गणपति को भी पंचामृत से स्नान कराएं और फिर सिंदूर-घी का लेप करें। तिलक करने के बाद दूर्वा, मोदक और सुपारी-पान, और माला-फूल चढ़ाएं।
पूजा-पाठ के बाद 'ओम गं गणपते नमः' और 'ओम नमः शिवाय' मंत्रों का जप करें।
प्रदोष काल (शाम 6:56 से 9:07) में पूजा और कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। संध्या के समय पूजन करने के बाद बुध प्रदोष व्रत कथा भी सुनें। इसके बाद आरती करें और घर के सभी सदस्यों को प्रसाद देकर भगवान से सुख-समृद्धि की कामना करें। साथ ही ब्राह्मण और जरूरतमंद को अन्न दान करें। दूसरे दिन पारण करना चाहिए।