क्या कोविड वैक्सीन और अचानक मौत के बीच कोई संबंध है? : आईसीएमआर-एम्स अध्ययन

सारांश
Key Takeaways
- कोविड-19 टीके सुरक्षित हैं।
- अचानक मौतों के कारण जीवनशैली और स्वास्थ्य समस्याएं हैं।
- अध्ययन में दिल के दौरे को बड़ा कारण बताया गया है।
- कोई भी दावे वैज्ञानिक आधार पर गलत हैं।
- अफवाहें टीकों के प्रति हिचकिचाहट बढ़ा सकती हैं।
नई दिल्ली, 2 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा किए गए व्यापक अध्ययनों ने यह स्पष्ट किया है कि कोविड-19 टीकों और अचानक होने वाली मौतों के बीच कोई संबंध नहीं है। इन अध्ययनों में जीवनशैली और पूर्व से मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं को अचानक मौतों का प्रमुख कारण बताया गया है।
आईसीएमआर और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ने 18 से 45 वर्ष के युवा वयस्कों में अचानक होने वाली अस्पष्टीकृत मौतों के कारणों का पता लगाने के लिए दो अध्ययन किए। पहला अध्ययन आईसीएमआर के राष्ट्रीय महामारी विज्ञान संस्थान द्वारा मई से अगस्त 2023 के बीच 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 47 अस्पतालों में किया गया।
इसमें अक्टूबर 2021 से मार्च 2023 के बीच स्वस्थ दिखने वाले लोगों की अचानक मृत्यु के मामलों की जांच की गई। दूसरा अध्ययन वास्तविक समय में मौतों के कारणों का विश्लेषण करता है। इन अध्ययनों से स्पष्ट हुआ कि कोविड-19 टीके पूरी तरह सुरक्षित हैं और इनके गंभीर दुष्प्रभाव बहुत कम होते हैं।
अचानक मौतों के पीछे आनुवंशिक कारण, खराब जीवनशैली, पहले से मौजूद बीमारियां और कोविड के बाद की जटिलताएं मुख्य कारक माने जा रहे हैं। अध्ययनों में पाया गया कि इस आयु वर्ग में दिल का दौरा (मायोकार्डियल इंफार्क्शन) अचानक मौत का सबसे बड़ा कारण है।
पिछले वर्षों की तुलना में मौतों के कारणों में कोई विशेष बदलाव नहीं देखा गया। कई मामलों में आनुवंशिक बदलाव (म्यूटेशन) को भी मौत का संभावित कारण माना गया है। अंतिम परिणाम जल्द साझा किए जाएंगे। वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि कोविड टीकों को अचानक मौतों से जोड़ने वाले दावे गलत और भ्रामक हैं।
ऐसे दावों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बिना सबूत के अफवाहें फैलाने से टीकों पर लोगों का विश्वास कम हो सकता है, जिसने महामारी के दौरान लाखों लोगों की जान बचाई।
वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसी अफवाहें वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट बढ़ा सकती हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। भारत सरकार ने नागरिकों की सुरक्षा के लिए साक्ष्य-आधारित अनुसंधान पर जोर दिया है।