क्या देश को 'विभाजन की विभीषिका' के बारे में बताना जरूरी है? : संजय सेठ

सारांश
Key Takeaways
- विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का महत्व समझें।
- इतिहास को जानना आवश्यक है।
- भाजपा कार्यकर्ताओं का जागरूकता अभियान।
- सुरक्षा और संपन्नता का महत्व।
- कश्मीरी लोगों के साथ हुए अत्याचारों पर ध्यान दें।
नई दिल्ली, 16 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। देश में 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के रूप में मनाया जाता है। एनसीईआरटी ने इस दिन के अवसर पर कक्षा 6-8 के लिए विशेष पाठ्य सामग्री तैयार की है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद संजय सेठ ने कहा कि देश को इसके इतिहास से अवगत कराने की आवश्यकता है।
संजय सेठ ने राष्ट्र प्रेस को बताया, "क्या हम देश को इसके इतिहास के बारे में नहीं बताएंगे? अब तक इतिहास में बाबर, हुमायूँ और औरंगजेब के बारे में चर्चा की गई है। विभाजन के समय लाखों लोग मारे गए, कई को अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा, जबकि महिलाओं को दुराचार का सामना करना पड़ा। हमें इसके बारे में जानने का अधिकार है।"
उन्होंने आगे कहा, "आने वाली पीढ़ी को यह जानना चाहिए कि विभाजन की विभीषिका क्या होती है। जब किसी परिवार पर कोई दुखद घटना घटित होती है, तो उस परिवार के लिए कितनी पीड़ा होती है। जब लाखों लोगों के साथ ऐसा होता है, तो क्या देश को इसके बारे में जानने का अधिकार नहीं है? इसी कारण भाजपा के सभी कार्यकर्ता विभाजन की विभीषिका के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं। यह एनसीईआरटी की किताबों में शामिल होना एक अच्छी बात है।"
भाजपा नेता मदन राठौड़ ने कहा, "महात्मा गांधी बंटवारे के खिलाफ थे, लेकिन उस समय जिन्ना और नेहरू आंदोलन में शामिल थे। पंडित नेहरू और जिन्ना दोनों प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, जिसके कारण देश का विभाजन हुआ। पाकिस्तान में जिन्ना गए, जबकि नेहरू भारत में रहे। उस समय कश्मीरी लोगों के साथ अत्याचार हुए, उनके घर छीन लिए गए। हम चाहते हैं कि लोग जानें कि 'राष्ट्र प्रथम' की भावना से देश की एकता के लिए काम करना आवश्यक है।"
उन्होंने यह भी कहा, "प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि अगर सुरक्षा और संपन्नता में से किसी एक को चुनना हो, तो सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। यदि सुरक्षित वातावरण नहीं है, तो हमारी संपन्नता का लाभ अन्य वर्ग उठाएंगे। इसलिए सुरक्षा आवश्यक है। हमारी सेना को आधुनिक हथियारों से सुसज्जित किया गया है, जिससे पाकिस्तान को कुछ घंटों में घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़ा।"