क्या दीवाली स्पेशल: छत्तीसगढ़ के वन में रखी गई थी रामायण की नींव और भाई रावण से बदला लेने की कहानी?

सारांश
Key Takeaways
- दंडकारण्य वन का प्राचीन मान्यताओं में महत्वपूर्ण स्थान है।
- रामायण की घटनाएं यहां घटित हुईं।
- दिवाली का पर्व यहां हर साल मनाया जाता है।
- शूर्पणखा की कहानी बदले की प्रेरणा देती है।
- यह स्थल सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। छत्तीसगढ़ में स्थित दंडकारण्य वन नक्सलियों का गढ़ माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह वन कभी प्राचीन मान्यताओं के अनुसार राक्षसों और भयानक जीवों का निवास स्थान था? इस क्षेत्र का रामायण से गहरा संबंध है और दिवाली के अवसर पर यहां के माओवादी इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं।
दंडकारण्य वन का संबंध भगवान राम और राक्षसी शूर्पणखा से है। यही वह स्थान है, जहां रामायण में रावण वध की कहानी रची गई। किंवदंतियों के अनुसार, इसी वन में भगवान राम ने मां सीता और लक्ष्मण के साथ 12 वर्षों का वनवास बिताया।
इस वन में शूर्पणखा अपने भाई खर से मिलने आई और पहली बार में ही भगवान राम पर मोहित हो गईं। भगवान राम, जो विवाहित और मर्यादा पुरुषोत्तम थे, ने शूर्पणखा को भगवान लक्ष्मण से बात करने का सुझाव दिया।
शूर्पणखा ने लक्ष्मण को अपने आकर्षण से लुभाने की कोशिश की, लेकिन गुस्से में आकर भगवान लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काट दी। उसी वन में शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से बदला लेने की योजना बनाई।
कहा जाता है कि शूर्पणखा का विवाह कालका के पुत्र दानवराज विद्युविह्वा से हुआ था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। रावण को यह पसंद नहीं था कि उसका बहनोई भगवान विष्णु की पूजा करता है, इसलिए उसने विद्युविह्वा का वध कर दिया। बदला लेने की कसम खाकर शूर्पणखा ने रावण को मां सीता की सुंदरता का वर्णन किया, जिससे रावण उनकी अपहरण की योजना बनाने लगा। इस प्रकार, यह कहना बुरा नहीं होगा कि दंडकारण्य वन में भी रामायण की नींव रखी गई।
आज भी हर वर्ष दंडकारण्य में उत्साहपूर्वक दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। वहां नरकासुर वध की कथा प्रचलित है और धनतेरस, छोटी दिवाली और मुख्य दिवाली के दिन विशेष धूमधाम से मनाए जाते हैं।