क्या दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए अनुभव-थारू संस्कृति योजना को लागू किया जाएगा?
सारांश
Key Takeaways
- ईको टूरिज्म का विकास दुधवा और कतर्नियाघाट में किया जाएगा।
- थारू संस्कृति का संरक्षण और प्रचार किया जाएगा।
- स्थानीय व्यंजन जैसे थारू थाली को बढ़ावा मिलेगा।
- पर्यावरण-अनुकूल तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
- स्थानीय समुदाय के विकास के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होंगे।
लखनऊ, 22 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश इको टूरिज्म विकास बोर्ड की हालिया बैठक में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर विचार किया गया। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान और कतर्नियाघाट वन्यजीव अभ्यारण्य जैसे क्षेत्रों को ईको टूरिज्म का केंद्र बनाने के उद्देश्य से थारू जनजाति की सांस्कृतिक विरासत, स्थानीय व्यंजनों और वन्यजीव सफारी को बढ़ावा देने वाली योजनाओं का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। साथ ही, पर्यटकों को विशेष अनुभव देने के लिए 'अनुभव-थारू संस्कृति' योजना के तहत शिल्पग्राम के विकास और थारू-थाली का विशेष प्रचार करने का भी प्रस्ताव रखा गया है।
इन पहलों से न केवल पर्यटकों को एक अनोखा अनुभव प्राप्त होगा, बल्कि स्थानीय समुदायों के आर्थिक उत्थान और समावेशी विकास को भी नई दिशा मिलेगी।
उत्तर प्रदेश, नेपाल सीमा क्षेत्र में स्थित कतर्नियाघाट वन्यजीव अभ्यारण्य में गेरुआ नदी पर बोट या नदी सफारी का विस्तार करने का प्रस्ताव रखा गया है। वर्तमान में वन विभाग द्वारा गेरुआ नदी में दो बोटों का संचालन किया जा रहा है। नदी सफारी के लिए बढ़ती हुई मांग को देखते हुए, इको टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड ने दो अतिरिक्त बोटों के संचालन की योजना बनाई है। इससे वन्यजीव अभ्यारण्य में नदी सफारी की क्षमता दोगुनी हो जाएगी और पर्यटकों को अधिक सुविधा मिलेगी। बोर्ड ने वन विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर इन बोटों को पर्यावरण-अनुकूल तकनीक से लैस करने पर जोर दिया है, ताकि नदी तट पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
यूपी इको टूरिज्म विकास बोर्ड ने दुधवा राष्ट्रीय उद्यान और कतर्नियाघाट के तराई क्षेत्र में रहने वाली थारू जनजाति की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत करने वाली 'अनुभव-थारू संस्कृति' योजना का प्रस्ताव भी पेश किया है। यह योजना न केवल इन अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले पर्यटकों को एक विशेष अनुभव प्रदान करेगी, बल्कि थारू समुदाय के सामाजिक-आर्थिक उत्थान और समावेशी विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसी क्रम में बोर्ड थारू थाली को सक्रिय रूप से प्रचारित कर रहा है। यह थाली, थारू जनजाति के पारंपरिक व्यंजनों से युक्त है, जो स्थानीय जड़ी-बूटियों, अनाज और मसालों से तैयार की जाती है। क्षेत्र के होटलों और रिसॉर्ट्स संचालकों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने मेन्यू में थारू थाली को अनिवार्य रूप से शामिल करें। साथ ही, टूरिज्म बोर्ड ने ट्रेनिंग प्रोग्राम्स की भी योजना बनाई है, जहां थारू समुदाय के युवाओं और महिलाओं को खान-पान और आतिथ्य कला सिखाई जाएगी। इससे न केवल प्रदेश में जनजातीय सांस्कृतिक संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा बल्कि समुदाय के लोगों को आय और रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।
समीक्षा बैठक में एक अन्य प्रस्ताव चंदन चौकी शिल्पग्राम के विकास के लिए भी पेश किया गया है। जनजातीय विकास विभाग द्वारा निर्मित यह शिल्पग्राम पूरी तरह तैयार है, लेकिन वर्तमान में बंद पड़ा है। दुधवा क्षेत्र में स्थित यह केंद्र थारू और अन्य जनजातीय संस्कृति के कौशल और कला के प्रदर्शन स्थल के रूप में पुनः विकसित करने का प्रस्ताव रखा गया है। यहां हस्तशिल्प प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी।
बोर्ड ने सुझाव दिया कि जनजातीय विकास विभाग की सहमति से पर्यटन विभाग, इकोटूरिज्म बोर्ड या पर्यटन निगम इसे निजी निवेश के माध्यम से संचालित करेगा। इससे पर्यटकों की सुविधाएं बढ़ेंगी और ईको-टूरिज्म को नया आयाम मिलेगा। इन योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से सीएम योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश को ईको-टूरिज्म का हब बनाने की कार्ययोजना को बल मिलेगा, साथ ही राजस्व वृद्धि, जैव विविधता संरक्षण और थारू जनजाति के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।