क्या जीएसटी सुधारों से बिजली वितरण कंपनियों को मिलेगा लाभ?

सारांश
Key Takeaways
- जीएसटी सुधार से डिस्कॉम को लाभ होगा।
- टैरिफ वृद्धि जरूरी है।
- कोयले पर जीएसटी दर बढ़ाने से उत्पादन लागत घटेगी।
- सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है।
- उपभोक्ताओं को राहत मिल सकती है।
नई दिल्ली, 16 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जीएसटी सुधारों का राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को महत्वपूर्ण लाभ होने की संभावना है। यह जानकारी मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में दी गई।
रेटिंग एजेंसी आईसीआरए की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 में डिस्कॉम द्वारा लागू की गई 1.9 प्रतिशत की टैरिफ वृद्धि उनके कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन जीएसटी सुधारों से कुछ राहत जरूर मिलेगी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऑल-इंडिया एवरेज कॉस्ट ऑफ सप्लाई और एवरेज रेवेन्यू रियलाइज्ड के बीच का अंतर 46 पैसे प्रति यूनिट है, जिसके चलते इस अंतर को कम करने के लिए 4.5 प्रतिशत टैरिफ वृद्धि और एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल (एटीएंडसी) घाटे में कमी आवश्यक है।
रेटिंग एजेंसी ने बताया कि नियामक परिसंपत्तियां बकाया राशि या टैरिफ अंतर 3 लाख करोड़ रुपये के उच्च स्तर पर बनी हुई हैं।
आईसीआरए ने सुझाव दिया, "कोयले पर जीएसटी दरों को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत करने और 400 रुपये प्रति टन के क्षतिपूर्ति उपकर को हटाने से कोयला आधारित बिजली उत्पादकों की उत्पादन लागत में कमी आने की उम्मीद है।"
ऐसा होने से डिस्कॉम को अधिक लाभ मिलने की संभावना है और उनकी आपूर्ति लागत में लगभग 12 पैसे प्रति यूनिट की कमी आएगी, क्योंकि ऑल-इंडिया स्तर पर कुल उत्पादन में कोयला आधारित क्षमता का योगदान 70 प्रतिशत से अधिक है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य बिजली नियामक आयोगों (एसईआरसी) को निर्देश दिया है कि वे अपने पुराने नियामक संपत्तियों (आरए) को चार वर्षों के भीतर समाप्त करें और नए आरए के निर्माण को वार्षिक राजस्व आवश्यकता के 3 प्रतिशत तक सीमित रखें।
अदालत के निर्देश का पालन करने के लिए टैरिफ में वृद्धि और कुल एटीएंडसी घाटे को 15 प्रतिशत से कम करना आवश्यक है।
आईसीआरए के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और समूह प्रमुख (कॉर्पोरेट रेटिंग्स) गिरीशकुमार कदम ने कहा, "फ्यूल एंड पावर परचेस एडजस्टमेंट सरचार्ज (एफपीपीएएस) प्रणाली का कार्यान्वयन विभिन्न राज्यों में असंगत है, जिससे बढ़ती लागत का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंच पा रहा है।"
अपीलेट ट्रिब्यूनल फॉर इलेक्ट्रिसिटी (एपीटीईएल) को न्यायालय के आदेश के अनुपालन की निगरानी का दायित्व सौंपा गया है।