क्या हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया?

सारांश
Key Takeaways
- स्वामीनाथन का हरित क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान
- 'एवरग्रीन रिवॉल्यूशन' की अवधारणा
- भारत की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कार्य
- कृषि विज्ञान में उनकी उपलब्धियां
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित
नई दिल्ली, 6 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारत में हरित क्रांति के पिता मंकुबु संबाशिवन स्वामीनाथन, जिन्हें हम एमएस स्वामीनाथन के नाम से जानते हैं, ने बचपन से ही कृषि में गहरी रुचि दिखाई। उन्होंने 'एवरग्रीन रिवॉल्यूशन' की एक नई संकल्पना प्रस्तुत की, जो पर्यावरण के लिए अनुकूल और टिकाऊ कृषि के सिद्धांतों पर आधारित थी। कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, डॉ. एमके संबासिवन, एक सर्जन और महात्मा गांधी के अनुयायी थे, जिन्होंने स्वदेशी और मंदिर प्रवेश आंदोलनों में भाग लिया।
स्वामीनाथन का गहरा लगाव हमेशा से किसानों और खेती के प्रति रहा है। 1943 में बंगाल में हुए अकाल ने उन्हें गहरे से प्रभावित किया, जिसमें लाखों लोग भुखमरी के शिकार हुए थे। इस घटना ने उन्हें कृषि विज्ञान के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया। स्वामीनाथन ने त्रावणकोर विश्वविद्यालय से जूलॉजी में स्नातक और मद्रास विश्वविद्यालय से कृषि विज्ञान में डिग्री हासिल की।
इसके बाद, उन्होंने नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) से साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की।
1952 में, उन्होंने इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की, जहां उन्होंने आलू की प्रजातियों पर शोध किया। इसके बाद, वे नीदरलैंड और अमेरिका में शोध के लिए गए, जहां उन्होंने फसलों की कीट और ठंड प्रतिरोधी क्षमता पर कार्य किया।
1960 के दशक में, भारत में खाद्यान्न की भारी कमी थी। स्वामीनाथन ने अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग के सहयोग से उच्च उपज वाली गेहूं और चावल की किस्में विकसित कीं, जो भारत की हरित क्रांति की नींव बनीं।
स्वामीनाथन के नेतृत्व में, 1966 में मेक्सिको से भारत में 18,000 टन गेहूं के बीज आयात किए गए, जिसके परिणामस्वरूप देश की गेहूं उत्पादन क्षमता 1967 में 5 मिलियन टन से बढ़कर 1968 में 17 मिलियन टन हो गई। इस ऐतिहासिक उपलब्धि ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया।
स्वामीनाथन ने 1972-79 तक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक और 1979-80 में कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1982-88 तक अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के महानिदेशक के रूप में भी योगदान दिया। 1988 में, उन्होंने चेन्नई में 'एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन' की स्थापना की, जो टिकाऊ कृषि और ग्रामीण विकास पर केंद्रित है।
कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने स्वामीनाथन को तीनों पद्म पुरस्कार दिए। उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और 2024 में भारत रत्न जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से अलंकृत किया गया। स्वामीनाथन को 1987 में पहला विश्व खाद्य पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त, उन्हें एचके फिरोदिया, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय और इंदिरा गांधी पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
स्वामीनाथन ने 'एवरग्रीन रिवॉल्यूशन' का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देता है। 28 सितंबर 2023 को 98 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।