क्या हैं 'मधुशाला' के बच्चन: किराए का घर और 'उस पार जाने' को व्याकुल नर, जो कुछ कर न सका?
सारांश
Key Takeaways
- हरिवंश राय 'बच्चन' ने कविता के माध्यम से जीवन की सच्चाइयों को उजागर किया।
- उनकी रचनाएं आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
- 'मधुशाला' ने उन्हें विश्वभर में पहचान दिलाई।
- उन्होंने जीवन के उतार-चढ़ाव को कविता में पिरोया।
- उनकी कविताएं समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य करती हैं।
नई दिल्ली, 26 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी कविता में हरिवंश राय 'बच्चन' की सोच और दृष्टिकोण ने सभी को प्रभावित किया है। उन्होंने कविता के माध्यम से न केवल भावनाओं को बल्कि जीवन की सच्चाई को भी उजागर किया। उनका परिचय इतना ही है, 'मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षणभर जीवन मेरा परिचय।'
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में हुआ था। उनके परिवार वाले उन्हें प्यार से 'बच्चन' कहते थे। उन्होंने अपनी काव्य रचना 'मधुशाला' में अपने बचपन के बारे में लिखा था, 'मैं कायस्थ कुलोदभव, मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है, पचहत्तर प्रतिशत हाला, पुश्तैनी अधिकार मुझे है, मदिरालय के आंगन पर, मेरे दादों-परदादों के हाथ, बिकी थी मधुशाला।'
अपने लेखन के माध्यम से, वह जल्दी ही विश्वभर में प्रसिद्ध हो गए थे। इलाहाबाद में रहते हुए उनकी कविताओं में मानवीय संवेदनाएं झलकीं। उन्होंने अपनी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा किराए के मकान में बिताया और इसी अनुभव को उन्होंने अपनी कविताओं में बखूबी उतारा। 1929 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से स्नातक के बाद, एमए में दाखिला लिया, लेकिन 1930 के असहयोग आंदोलन के कारण पढ़ाई छोड़ दी। 1938 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए।
पढ़ाई के दौरान उनकी शादी श्यामा से हुई, लेकिन यह साथ लंबे समय तक नहीं चला। श्यामा के निधन के बाद, बच्चन दुखी रहने लगे। उनकी एक प्रसिद्ध कविता, 'रात आधी खींचकर मेरी हथेली, एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।' ने उन्हें खूब पहचान दिलाई।
'मधुशाला' ने भी उनकी लोकप्रियता को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 24 जनवरी 1942 को, हरिवंश राय 'बच्चन' ने दूसरी बार तेजी सूरी से विवाह किया।
बच्चन 1941 से 1952 के बीच इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे और ऑल इंडिया रेडियो से भी जुड़े रहे। वे भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में भी कार्यरत रहे।
हरिवंश राय 'बच्चन' ने अपनी हिंदी पर गहरी पकड़ बनाई और हमेशा अपने जीवन के उतार-चढ़ावों को कविता में शामिल किया। उन्होंने लिखा, 'बीता अवसर क्या आएगा, मन जीवनभर पछताएगा, मरना तो होगा ही मुझको, जब मरना था तब मर न सका, मैं जीवन में कुछ न कर सका।'
उनकी रचनाएं 'क्या भूलूं क्या याद करूं', 'नीड़ का निर्माण फिर', 'बसेरे से दूर' और 'दशद्वार से सोपान तक' में अद्भुत लेखनी का परिचय मिलता है। हरिवंश राय 'बच्चन' को 1935 में 'मधुशाला' के प्रकाशन के बाद सबसे बड़ी प्रसिद्धि मिली। उन्हें 1966 में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया और 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं 1976 में पद्म भूषण प्राप्त हुआ। उन्होंने 18 जनवरी 2003 को मुंबई में अंतिम सांस ली। उनके पुत्र अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं।
अपनी मृत्यु से पहले, हरिवंश राय 'बच्चन' ने कविताओं के माध्यम से युवाओं को प्रेरित किया और प्रेम कविता की नई शैली विकसित की। कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने उनसे पूछा था कि वे 'मधुशाला' के जरिए लोगों को शराबी बनाने पर क्यों तुले हैं? जब महात्मा गांधी ने 'मधुशाला' पढ़ी, तो उनका डर समाप्त हो गया।
उन्होंने हताश युवाओं को प्रेरित करने के लिए एक कविता में लिखा, 'जीवन में एक सितारा था, माना वह बेहद प्यारा था, वह डूब गया तो डूब गया, अंबर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे, जो छूट गए फिर कहां मिले, पर बोलो टूटे तारों पर, कब अंबर शोक मनाता है, जो बीत गई सो बात गई।'
'मधुशाला', 'मधुबाला' और 'मधुकलश' के माध्यम से हरिवंश राय 'बच्चन' ने समाज में एक नई जागरूकता फैलाई। 'मधुशाला' में समाज को गहरा संदेश दिया गया था। 'मधुशाला' की कुछ पंक्तियां हैं, 'मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला, एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला, दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मंदिर में जाते, बैर बढ़ाते मस्जिद मंदिर, मेल कराती मधुशाला।'
उन्होंने 'इस पार, उस पार' कविता में जीवन की सच्चाई का उल्लेख करते हुए लिखा है, 'मैं आज चला तुम आओगी, कल, परसों, सब संगी साथी, दुनिया रोती-धोती रहती, जिसको जाना है, जाता है। मेरा तो होता मन डगमग, तट पर ही के हलकोरों से। जब मैं एकाकी पहुंचूंगा, मंझधार न जाने क्या होगा। इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा।'