क्या हिंदी भाषा विवाद ने महाराष्ट्र में राजनीतिक भूचाल ला दिया?

सारांश
Key Takeaways
- हिंदी और मराठी भाषाओं के बीच राजनीतिक तनाव।
- विपक्ष ने सरकार के निर्णय को अपनी जीत बताया।
- जनता की एकता महत्वपूर्ण है।
- राजनीतिक नेताओं का शिष्टाचार और सम्मान।
- भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि पहचान का प्रतीक।
मुंबई, 30 जून (राष्ट्र प्रेस)। महाराष्ट्र में 'हिंदी' पर राजनीति का दौर तेजी से जारी है। सरकार ने विपक्ष के तीखे विरोध के बीच रविवार को प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का निर्णय वापस ले लिया। विपक्ष इसे अपनी जीत मान रहा है। एनसीपी (एसपी) के विधायक रोहित पवार ने कहा कि जब भी मराठी भाषा के खिलाफ कुछ किया जाता है, तो लोग उसे स्वीकार नहीं करते।
रोहित पवार ने कहा, "जैसा कि सभी ने देखा, अगर महाराष्ट्र में मराठी के खिलाफ कुछ लाया जाता है तो लोग उसे नहीं सहन करते। जब ठाकरे परिवार ने एकजुट होकर अन्य दलों का समर्थन प्राप्त किया, तो इसका व्यापक प्रभाव पड़ा। जनता का समर्थन उनके साथ था, जिससे सरकार को डर लगने लगा। यह स्पष्ट है कि मराठी भाषा के मुद्दे पर जनता एकजुट होती है।"
हिंदी को लेकर सरकार के हालिया निर्णय के बाद एनसीपी-एसपी और शिवसेना-उद्धव गुट के नेताओं ने जश्न मनाया। रोहित पवार और आदित्य ठाकरे की अगुवाई में कुछ नेताओं ने विधानभवन में छत्रपति शिवाजी महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित की।
सोशल मीडिया पर रोहित पवार ने लिखा, "हिंदी को अनिवार्य बनाने के निर्णय के खिलाफ मराठी लोगों की एकता के चलते राज्य सरकार पीछे हट गई। इस जीत का जश्न मनाने के लिए हमने 'मी मराठी' टोपी पहनकर विधानभवन में स्थित श्री छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा को श्रद्धांजलि दी।"
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले को जन्मदिन की बधाई देने पर रोहित पवार ने इसे साधारण शिष्टाचार बताया। उन्होंने कहा, "अमित शाह सभी को फोन करके बधाई देते हैं, यह एक अच्छी बात है। सुप्रिया सुले सभी दलों के नेताओं को शुभकामनाएं देती हैं, इसमें कुछ गलत नहीं। यह भारतीय राजनीति में परस्पर सम्मान का हिस्सा है।"