क्या तमिलनाडु में जातिवाद अपराधों पर सजा की दर घट रही है?

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क्या तमिलनाडु में जातिवाद अपराधों पर सजा की दर घट रही है?

सारांश

तमिलनाडु में जातिवादी अपराधों के मामलों में सजा की दर चिंताजनक रूप से कम है, जिससे न्याय व्यवस्था की विफलता उजागर होती है। क्या राज्य की सरकार को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है?

Key Takeaways

  • तमिलनाडु में जातिवादी अपराध बढ़ रहे हैं।
  • सजा की दर मात्र 12 प्रतिशत है।
  • लंबित मामलों की संख्या 7,912 हो गई है।
  • पुलिसिंग और न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।
  • बैकलॉग का असर दलित समुदाय पर पड़ रहा है।

चेन्नई, 20 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। तमिलनाडु में सत्ता में मौजूद डीएमके गठबंधन में तनाव बढ़ता दिखाई दे रहा है। गठबंधन के साथी दल वीसीके के नेता और विल्लुपुरम सांसद डी. रविकुमार ने राज्य सरकार पर तीखा हमला किया है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में जाति के नाम पर होने वाले अपराधों में दोषियों को सजा मिलने की दर अत्यंत कम है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि राज्य की पुलिस और न्याय व्यवस्था सही तरीके से कार्य करने में असफल हो रही है।

वीसीके राज्य की सत्ताधारी पार्टी डीएमके की सहयोगी है, जिसके पास चार विधायक और दो सांसद हैं। एक विस्तृत बयान में, रविकुमार ने कहा कि एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज) एक्ट के तहत दलितों द्वारा दायर किए गए मामले खतरनाक दर से खारिज हो रहे हैं। अधिकांश मामलों को बिना उचित जांच के 'झूठा' करार दिया जाता है।

उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसे नतीजे पुलिस द्वारा मामलों को ठीक से संभालने में विफलता और जातिगत अत्याचारों के पीड़ितों को न्याय दिलाने में एनफोर्समेंट अथॉरिटीज की गंभीरता की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं।

2023 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए, वीसीके नेता ने बताया कि तमिलनाडु में अनुसूचित जातियों के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। राज्य में 2023 में दलितों के खिलाफ अत्याचार के 1,921 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 में दर्ज 1,377 मामलों से काफी अधिक हैं।

रविकुमार ने पड़ोसी आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक से तुलना की, जहां इन सभी राज्यों ने इसी समय के दौरान एससी समुदाय के खिलाफ अपराध में कमी की रिपोर्ट दी है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति तमिलनाडु के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय ट्रेंड्स से 'चिंताजनक भटकाव' को दर्शाती है।

उन्होंने आगे कहा कि तमिलनाडु की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। 2023 तक, एससी समुदाय के खिलाफ अत्याचार से जुड़े कुल 6,410 मामले पहले से ही ट्रायल पर थे, और उस वर्ष 1,502 नए मामले जुड़े, जिससे लंबित मामलों की कुल संख्या 7,912 हो गई। उन्होंने चेतावनी दी कि इतने अधिक बैकलॉग का सीधा असर पिछड़े समुदायों को न्याय मिलने पर पड़ता है।

रविकुमार ने इन मामलों के नतीजों में एक चिंताजनक अंतर की ओर भी इशारा किया। 2023 में, सिर्फ 115 को सजा मिली, जबकि 830 मामलों में बरी किया गया, जिससे सजा की दर मात्र 12 प्रतिशत रह गई, जो राष्ट्रीय औसत 32 प्रतिशत से काफी कम है। उन्होंने इस खराब सजा की दर के लिए सिस्टम से जुड़ी समस्याओं को जिम्मेदार ठहराया, जिसमें मामलों को ठीक से फाइल न करना, कमजोर चार्जशीट, जांच में देरी और अभियोजन द्वारा उचित फॉलो-अप न करना शामिल है।

स्थिति को गंभीर बताते हुए, वीसीके के जनरल सेक्रेटरी ने कहा कि दलितों को न्याय दिलाने के लिए राज्य को अपनी पुलिसिंग और अभियोजन प्रणाली में तुरंत सुधार करना चाहिए।

उन्होंने सरकार से जांच प्रक्रिया को मजबूत करने, पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग में सुधार करने और यह सुनिश्चित करने की अपील की कि एससी/एसटी एक्ट के तहत मामलों को उतनी गंभीरता से संभाला जाए जितनी वे योग्य हैं।

Point of View

बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न्याय की सच्ची भावना को चुनौती देता है।
NationPress
20/11/2025

Frequently Asked Questions

तमिलनाडु में जातिवादी अपराधों की सजा की दर क्यों कम है?
जांच में देरी, कमजोर चार्जशीट और पुलिस की लापरवाही के कारण सजा की दर कम है।
वीसीके नेता ने इस मुद्दे पर क्या कहा?
डी. रविकुमार ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि जातिगत अपराधों में दोषियों को सजा मिलने की दर अत्यंत कम है।
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