क्या आईआरसीटीसी घोटाले में राबड़ी देवी को राहत मिलेगी? 9 दिसंबर को अगली सुनवाई
सारांश
Key Takeaways
- राबड़ी देवी की ट्रांसफर याचिका पर 9 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी।
- जज विशाल गोंगने पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
- इस मामले में कुल 103 आरोपी हैं।
- सीबीआई ने जमानत रद्द करने की मांग की है।
- लालू परिवार को विशेष रूप से टारगेट किया जा रहा है।
नई दिल्ली, 6 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। आईआरसीटीसी घोटाले के मामले में बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी को शनिवार को दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली। राबड़ी देवी ने विशेष जज विशाल गोंगने (जो इस मामले की नियमित सुनवाई कर रहे हैं) को हटाकर किसी अन्य जज की बेंच में केस ट्रांसफर करने की मांग की थी।
इस मामले में राबड़ी देवी की मांग पर अदालत में सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। ऐसे में इस ट्रांसफर याचिका पर अगली सुनवाई अब 9 दिसंबर (मंगलवार) को होगी।
शनिवार को हुई सुनवाई के दौरान राबड़ी देवी के वकील ने जज विशाल गोंगने पर गंभीर आरोप लगाए। वकील का दावा था कि जज पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रहे हैं और जून 2026 तक जल्दबाजी में फैसला सुनाने का इरादा रखते हैं। उन्होंने कहा कि जज कई कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं कर रहे हैं।
वकील ने यह भी कहा कि आरोप तय करने के समय उनके मुवक्किल को चुनाव के बीच दिल्ली बुलाया गया, जिससे उन्हें भारी असुविधा हुई। जज द्वारा आरोप तय करने के आदेश के तरीके पर भी सवाल उठाए गए।
राबड़ी देवी के वकील ने दलील दी कि इस मामले में कुल 103 आरोपी हैं, जिनमें ज्यादातर पटना सहित दूर-दराज के इलाकों से हैं। इनकी परेशानियों पर कोर्ट ध्यान नहीं दे रहा। शुक्रवार को एक आरोपी कोर्ट नहीं आ सका तो सीबीआई ने तुरंत जमानत रद्द करने की मांग शुरू कर दी। वकील का कहना था कि लालू परिवार को विशेष रूप से टारगेट किया जा रहा है।
इस मामले के एक अन्य आरोपी, सुजाता होटल्स के मालिक विनय कोचर ने भी राबड़ी देवी की ट्रांसफर याचिका का समर्थन किया और सहमति जताई।
जांच एजेंसी के अनुसार, लालू यादव पर अपने पद का दुरुपयोग करते हुए आईआरसीटीसी के कई अधिकारियों की मिलीभगत से कोचर ब्रदर्स को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप है। इसके एवज में पटना स्थित एक कीमती भूमि को कोचर ब्रदर्स ने एक ऐसी कंपनी को बेच दिया जो लालू प्रसाद यादव के करीबी और राजद के राज्यसभा सदस्य प्रेमचंद गुप्ता से जुड़ी थी।
यह जमीन मेसर्स डिलाइट मार्केटिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड (डीएमसीपीएल) के नाम से खरीदी गई थी, जिसे बाद में लारा प्रोजेक्ट्स एलएलपी के नाम से परिवर्तित कर दिया गया। यह कंपनी लालू परिवार के हित में संचालित की जा रही थी और अंततः इस संपत्ति का नियंत्रण राबड़ी देवी और तेजस्वी प्रसाद यादव के हाथों में चला गया।