क्या बीजापुर में माओवादी इलाके में पहाड़ी पर नया सुरक्षा कैंप स्थापित हुआ?
सारांश
Key Takeaways
- बीजापुर में नया सुरक्षा कैंप स्थापित हुआ है।
- यह कैंप माओवादियों पर अंकुश लगाने में मदद करेगा।
- स्थानीय लोगों का सहयोग बढ़ा है।
- सरकार की विकास योजनाएं भी चल रही हैं।
- इस कैंप का निर्माण चुनौतीपूर्ण था।
बीजापुर (छत्तीसगढ़), 6 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के अति नक्सल प्रभावित उसूर थाना क्षेत्र में कर्रेगुट्टा पहाड़ी की ताड़पाला घाटी में दूसरा बड़ा सुरक्षा एवं जन-सुविधा कैंप 2 दिसंबर को सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। यह कैंप ऊंची पहाड़ी पर स्थित होने के कारण रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर माओवादियों की गतिविधियों पर कड़ा अंकुश लगाएगा।
कैंप का निर्माण बेहद चुनौतीपूर्ण था। यहाँ न तो सड़क है, न ही पानी का कोई स्रोत, और चारों ओर विस्फोटक एवं घात लगाने का खतरा बना रहता है। फिर भी, डीआरजी, एसटीएफ, कोबरा 205, कोबरा 210 और केरिपु 196 बटालियन की संयुक्त टीम ने अद्वितीय साहस का परिचय देते हुए यह कार्य मात्र एक महीने में पूरा कर लिया। पिछले नवंबर में इसी पहाड़ी पर ताड़पाला बेस कैंप स्थापित किया गया था, यह उसका विस्तार है। भविष्य में इस कैंप को जंगल युद्ध, फील्ड क्राफ्ट और उन्नत प्रशिक्षण का विशेष केंद्र बनाने की योजना है।
कैंप के निर्माण से अब छत्तीसगढ़ और तेलंगाना पुलिस मिलकर सीमा पार माओवादी ठिकानों पर और अधिक तेज़ी से हमले कर सकेंगी। इस कार्य में हेलीकॉप्टर से लगातार सहायता प्राप्त हुई और बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी., केरिपु सेक्टर के आईजी शालिन, दंतेवाड़ा रेंज के डीआईजी कमलोचन कश्यप, बीजापुर एसपी डॉ. जितेन्द्र यादव सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर मार्गदर्शन किया।
बीजापुर जिले में माओवादियों के खिलाफ तेज़ अभियान का असर स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। केवल 2024 से अब तक यहाँ 23 नए कैंप स्थापित हो चुके हैं। पिछले दो वर्षों (2023-24 और 2024-25) में कुल 45 कैंप स्थापित हुए हैं। इन अभियानों के परिणाम चौंकाने वाले हैं। 790 माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं, 219 मारे गए हैं और 1,049 गिरफ्तार हुए हैं। पूरे बस्तर संभाग में 210 माओवादियों ने हथियार डाल दिए हैं।
सरकार की “नियद नेल्ला नार” (बहुत अच्छी सुबह) योजना के तहत दूर-दराज के गांवों में सड़क, बिजली, स्कूल, अस्पताल जैसी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। सुरक्षा कैंप और विकास कार्य साथ-साथ चल रहे हैं, जिससे आम आदिवासी अब खुलकर पुलिस और प्रशासन का सहयोग कर रहा है।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि ताड़पाला घाटी कैंप से माओवादियों का एक बड़ा गढ़ टूट जाएगा और आने वाले दिनों में और आत्मसमर्पण की संख्या बढ़ेगी। स्थानीय लोगों ने भी नए कैंप का स्वागत किया है क्योंकि अब उन्हें इलाज, राशन और सुरक्षा के लिए लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी।