क्या 'ग्लोबल साउथ' की आवाज को मजबूत करने की पहल में जयशंकर की रणनीति कारगर होगी?

सारांश
Key Takeaways
- ग्लोबल साउथ के देशों को एकजुट होकर काम करना होगा।
- भारत की पहल से इन देशों की आवाज मजबूत हो सकती है।
- उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान देना आवश्यक है।
- सामूहिक कार्रवाई की शक्ति महत्वपूर्ण है।
- कूटनीतिक सुधारों पर काम करना होगा।
संयुक्त राष्ट्र, 24 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 'ग्लोबल साउथ' के देशों से अपनी क्षमताओं का सही उपयोग कर उभरती चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया है।
एस. जयशंकर न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 80वें सत्र में भाग ले रहे हैं।
उन्होंने समान विचारधारा वाले ग्लोबल साउथ देशों की उच्चस्तरीय बैठक में कहा कि इन देशों को राजनीति, कूटनीति, विकास और प्रौद्योगिकी के मुद्दों पर एकजुट होकर समाधान निकालना चाहिए।
इस बैठक में 18 देशों ने भाग लिया, जिनमें सिंगापुर, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, क्यूबा, चाड, जमैका, वियतनाम, मॉरीशस और मोरक्को शामिल थे।
यह मंच भारत की उस पहल का हिस्सा है, जिसके तहत वह 'ग्लोबल साउथ' की आवाज को मजबूती प्रदान कर रहा है।
मालदीव के विदेश मंत्री ने कहा, "ग्लोबल साउथ की शक्ति उसकी एकता और सामूहिक कार्रवाई में निहित है।" उन्होंने कहा कि मालदीव समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर समावेशी और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए कार्य करेगा।
एस. जयशंकर ने कहा कि ग्लोबल साउथ के देश एक-दूसरे के अनुभवों और उपलब्धियों का लाभ उठा सकते हैं।
उन्होंने टीकों (वैक्सीन), डिजिटल क्षमताओं, शिक्षा, कृषि और लघु एवं मध्यम उद्योग जैसे क्षेत्रों में सहयोग को आवश्यक बताया।
भविष्य की दिशा में संकेत करते हुए उन्होंने उभरती प्रौद्योगिकियों, विशेषकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की संभावनाओं पर ध्यान देने का सुझाव दिया।
कूटनीतिक और राजनीतिक मोर्चे पर, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षवाद में सुधार के लिए मिलकर काम करने का प्रस्ताव रखा।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि उन्हें एकजुटता के लिए मौजूदा मंचों का भी उपयोग करना चाहिए।