क्या त्रिपुंड और त्रिशूल से सजे बाबा महाकाल ने भक्तों को अद्भुत दर्शन दिए?
सारांश
Key Takeaways
- महाकालेश्वर मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
- भस्म आरती के दौरान विशेष नियमों का पालन करना होता है।
- बाबा महाकाल का त्रिपुंड और त्रिशूल से सजा स्वरूप भक्तों के लिए अद्भुत होता है।
- मंदिर में 6 आरतियाँ होती हैं throughout the day।
- भक्तों का उत्साह और आस्था इस मंदिर को विशेष बनाता है।
उज्जैन, 9 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में अगहन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बाबा महाकाल ने भस्म आरती के पश्चात भक्तों को दिव्य दर्शन प्रदान किए।
रविवार को भस्म आरती के बाद बाबा ने अपने माथे पर दिव्य त्रिशूल सजाकर भक्तों को मनमोहक दर्शन दिए। बाबा का त्रिशूल धारी रूप देखकर भक्तों ने मंदिर परिसर में जय महाकाल के जयकारे लगाए। श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए लंबी लाइनों में खड़े नजर आए।
अगहन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के अवसर पर बाबा का अद्भुत शृंगार किया गया। सुबह जल्दी मंदिर में बाबा वीरभद्र से आज्ञा लेकर कपाट खोले गए। इसके बाद घी, फलों के रस, दही, दूध और मिठाइयों से बाबा का अभिषेक किया गया। सुबह चार बजे हुई भस्म आरती में बाबा महाकाल के शिवलिंग पर महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भस्म अर्पित की गई और श्वेत वस्त्र बाबा को पहनाकर भस्म आरती की शुरुआत की गई।
भस्म आरती बहुत खास होती है, क्योंकि इस दौरान बाबा भोलेनाथ निराकार रूप में होते हैं। भक्तों को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। महिलाओं और पुरुषों को शालीन कपड़े पहनने होते हैं और सिर को वस्त्र से ढकना पड़ता है। भस्म आरती के बाद बाबा महाकाल को त्रिपुंड और त्रिशूल से सुसज्जित किया गया।
बाबा के माथे पर त्रिपुंड बनाकर त्रिशूल धारण कराया गया और मुकुट पहनाकर फूल-मालाओं से सजाया गया। बाबा के दिव्य स्वरूप के दर्शन के लिए भक्त देर रात से ही लाइन में लगे रहे और जय श्री महाकाल के जयघोष से पूरा मंदिर परिसर गूंजता रहा।
पुजारी पंडित महेश शर्मा के अनुसार, रात तीन बजे से ही भक्त मंदिर में पहुंचना शुरू कर देते हैं और लाइनों में लगकर बाबा के दर्शन का इंतजार करते हैं। बता दें कि बाबा महाकाल की पूरे दिन में 6 आरती होती हैं, जिसमें सबसे पहले सुबह की भस्म आरती होती है। इसके बाद अन्य आरतियाँ जैसे बालभोग आरती, भोग आरती, संध्या पूजन, संध्या आरती और शयन आरती की जाती हैं। इन सभी आरतियों में शामिल होने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं।