क्या झारखंड हाईकोर्ट ने बालू घाटों के आवंटन पर रोक हटाने का सरकार का आग्रह नामंजूर किया?

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क्या झारखंड हाईकोर्ट ने बालू घाटों के आवंटन पर रोक हटाने का सरकार का आग्रह नामंजूर किया?

सारांश

झारखंड हाईकोर्ट ने बालू घाटों के आवंटन पर राज्य सरकार के अनुरोध को नामंजूर कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक पेसा कानून को अधिसूचित नहीं किया जाता, तब तक इस पर रोक जारी रहेगी। जानिए इस महत्वपूर्ण फैसले के पीछे की कहानी।

Key Takeaways

  • बालू घाटों पर रोक जारी रहेगी जब तक पेसा कानून अधिसूचित नहीं होता।
  • हाईकोर्ट ने आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा की बात की है।
  • राज्य सरकार को 73वें संविधान संशोधन का पालन करना होगा।

रांची, 9 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य में बालू घाटों और लघु खनन क्षेत्रों के आवंटन पर लगाई गई रोक हटाने के लिए राज्य सरकार का अनुरोध अस्वीकृत कर दिया है। चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की बेंच ने इस मामले में दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि राज्य सरकार जब तक पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट), 1996 को अधिसूचित नहीं करती, तब तक कोर्ट इसकी अनुमति नहीं देगा।

राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल राजीव रंजन ने कोर्ट को बताया कि नियमावली लागू करने के लिए जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है, उस पर 17 विभागों से मंतव्य मांगा गया था। इनमें से पांच विभागों का मंतव्य अब तक नहीं मिला है। सभी विभागों का मंतव्य मिलने के बाद इसे कैबिनेट में भेजा जाएगा, और फिर कैबिनेट की मंजूरी के बाद पेसा नियमावली लागू की जाएगी।

महाधिवक्ता ने इसके लिए कोर्ट से समय देने का अनुरोध किया। इस पर पीठ ने बालू घाटों और लघु खनन क्षेत्रों के आवंटन पर रोक के अपने अंतरिम आदेश को बरकरार रखते हुए सुनवाई की अगली तारीख 30 अक्टूबर निर्धारित की है। सुनवाई के दौरान कोर्ट के आदेश पर पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव मनोज कुमार भी उपस्थित रहे।

9 सितंबर को इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य में पेसा कानून लागू होने तक बालू घाट सहित सभी प्रकार के लघु खनिजों के लीज आवंटन पर रोक लगा दी थी।

कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्य सरकार 73वें संविधान संशोधन की मंशा को कमजोर कर रही है। अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार स्थानीय निकायों को मिलने चाहिए, लेकिन सरकार नियमावली लागू करने में लगातार टालमटोल कर रही है।

हाईकोर्ट ने जुलाई, 2024 में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद झारखंड सरकार को दो माह के अंदर राज्य में पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया था।

कोर्ट ने कहा था कि संविधान के 73वें संशोधन के उद्देश्यों के अनुरूप तथा पेसा कानून के प्रावधान के अनुसार पेसा नियमावली बना कर लागू किया जाए। इस आदेश का अनुपालन अब तक न होने पर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने अवमानना याचिका दायर की है।

Point of View

बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय का भी है।
NationPress
09/10/2025

Frequently Asked Questions

झारखंड हाईकोर्ट ने क्यों राज्य सरकार का आग्रह अस्वीकार किया?
हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक पेसा कानून को अधिसूचित नहीं किया जाता, तब तक बालू घाटों और लघु खनन क्षेत्रों के आवंटन पर रोक जारी रहेगी।
पेसा कानून क्या है?
पेसा कानून, जो पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट के रूप में जाना जाता है, आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय निकायों को भूमि और संसाधनों पर अधिकार देता है।
अवमानना याचिका का क्या महत्व है?
अवमानना याचिका का उद्देश्य राज्य सरकार को न्यायालय के आदेशों का पालन न करने के लिए जवाबदेह ठहराना है।