क्या कटवा की दुर्गा पूजा में स्वर्ण जयंती का जश्न मनाया जा रहा है?

सारांश
Key Takeaways
- स्वर्ण जयंती समारोह एक ऐतिहासिक घटना है।
- इस वर्ष का थीम 'अंदरमहल' है जो पारंपरिक संस्कृति को दर्शाता है।
- पंडाल इको-फ्रेंडली सामग्रियों से बनाया गया है।
- सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
- समाज के कमजोर वर्गों की मदद की जाएगी।
कटवा, 26 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। पश्चिम बंगाल के कटवा शहर में आयोजित होने वाले प्रमुख दुर्गा पूजा समारोहों में से एक, कटवा गोउरांगापारा सर्वजनिन दुर्गा पूजा समिति, इस वर्ष अपने 50वें वर्ष का जश्न मना रही है। इस ऐतिहासिक स्वर्ण जयंती समारोह को विशेष बनाने के लिए आयोजकों ने इस साल का थीम 'अंदरमहल' चुना है, जो पारंपरिक बंगाली घरों के आंतरिक हिस्सों और वहां के जीवन की झलक प्रस्तुत करता है।
पंडाल का निर्माण स्थानीय कलाकारों और सज्जाकारों द्वारा किया गया है। उनकी कुशलता ने पंडाल को सांस्कृतिक स्मृतियों और पारंपरिक घरों के सौंदर्य का जीवंत दृश्य बना दिया है। इस अद्वितीय थीम ने न केवल पूजा के वातावरण को विशेष बनाया है, बल्कि आगंतुकों को पुराने समय की यादों में डुबोने का अनुभव भी दिया है। हजारों लोग दूर-दूर से इस पंडाल और मां दुर्गा की भव्य मूर्ति का दर्शन करने आते हैं।
इस वर्ष की पूजा का अनुमानित बजट लगभग 10 लाख रुपये है। हालांकि खर्च भव्यता में अधिक है, लेकिन आयोजक इस समारोह को केवल भव्यता तक सीमित नहीं रखना चाहते। पंडाल में प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें संगीत, नृत्य और नाट्य प्रस्तुतियां शामिल होंगी। इसके अलावा, समिति ने गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए वस्त्र वितरण की व्यवस्था की है और भक्तों को भोग और प्रसाद भी प्रदान किया जाएगा।
सबसे खास बात यह है कि इस वर्ष का थीम पूरी तरह से इको-फ्रेंडली रखा गया है। पंडाल बनाने में पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों का उपयोग किया गया है। पंडाल के डिज़ाइन में पारंपरिक बंगाली घरों के अंदरमहल में इस्तेमाल होने वाले रोजमर्रा के सामानों से प्रेरणा ली गई है, जैसे मिट्टी के बर्तन, लकड़ी के सामान और प्राकृतिक वस्तुएं। आयोजकों ने कहा कि यह पहल केवल पारंपरिक संस्कृति का सम्मान नहीं करती, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और जागरूकता को भी बढ़ावा देती है।
कटवा गोउरांगापारा दुर्गा पूजा समिति का उद्देश्य है कि धार्मिक उत्सव और सांस्कृतिक परंपराएं आधुनिक समाज में भी जीवित रहें, साथ ही समाज के कमजोर वर्गों की मदद और पर्यावरण की सुरक्षा को भी ध्यान में रखा जाए।