किसानों को पराली जलाने के नुकसान बताए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान?

सारांश
Key Takeaways
- पराली जलाने से नुकसान और प्रभावी प्रबंधन के लाभ समझें।
- किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के नए तरीके जानें।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए उपायों पर ध्यान केंद्रित करें।
- कृषि तकनीकों में नवाचार की आवश्यकता।
- स्थायी खेती के लाभ और महत्व को समझें।
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंगलवार को पंजाब के लुधियाना जिले के ग्राम नूरपुर बेट में किसानों के साथ चौपाल पर संवाद किया। इस दौरान उन्होंने कृषि यंत्रों का प्रदर्शन देखा और डोराहा गांव में 'समन्यु हनी' मधुमक्खी पालन केंद्र का अवलोकन किया।
कृषि मंत्री ने धान की कटाई के लिए एसएसएमएस फिटेड कंबाइन हार्वेस्टर और गेहूं की बुआई के लिए हैप्पी स्मार्ट सीडर मशीन का लाइव डेमो देखा।
उन्होंने मीडिया से कहा कि लुधियाना का नूरपुर बेट गांव एक उदाहरण है। यहां वर्षों से पराली नहीं जलाई जाती है। यहां के किसान भाइयों द्वारा स्मार्ट सीडर और एसएमएस सिस्टमयुक्त कंबाइन की मदद से पराली का प्रबंधन किया जाता है। इससे पराली को जलाने की बजाय खेत में समान रूप से फैला दिया जाता है, जिससे खेत तुरंत बुवाई के लिए तैयार हो जाता है। ना पराली जलाने की जरूरत, ना बखरनी करने की। स्मार्ट सीडर से बोनी के दौरान मिट्टी और दाने को कॉम्पेक्ट कर दिया जाता है। पराली मिट्टी पर ढक जाती है, जिससे नमी बनी रहती है और जड़ों को मजबूती मिलती है।
किसान भाइयों ने बताया कि जहां पहले खेत की तैयारी, पलेवा और बोनी में लगभग पांच हजार रुपए तक का खर्च आता था, वहीं अब केवल पंद्रह सौ रुपए में काम पूरा हो जाता है। पहले पराली जलाकर खेत तैयार किया जाता था, फिर बखरनी, और फिर पलेवा। लेकिन अब इस तकनीक से पलेवा की आवश्यकता ही नहीं है।
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को पराली न जलाने के फायदे बताएं और इसके साथ ही पराली प्रबंधन की अपील की। मंत्री ने कहा कि पराली जलाने से किसानों को उलटा नुकसान होता है, जबकि इसका प्रबंधन करने से उन्हें अप्रत्याशित लाभ होता है। खेत की नमी बनी रहती है और गेहूं की फसल की जड़ें गहरी और मजबूत होती हैं। ऐसे में न तो फसल आड़ी होती है, न ही दाना पतला पड़ता है। किसान भाइयों ने बताया कि उत्पादन में कोई कमी नहीं आई, बल्कि वृद्धि हुई है। यदि दो साल लगातार इस पद्धति से पराली का प्रबंधन किया जाए तो पराली खुद मिट्टी में मिलकर नाइट्रोजन बन जाती है। इससे यूरिया की आवश्यकता घटती है, मिट्टी की सेहत सुधरती है, और खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।
उन्होंने कहा कि किसान भाइयों और बहनों से मेरी अपील है कि पराली मत जलाइए। पराली का प्रबंधन कीजिए। मैं भी नूरपुर से प्रेरणा लेकर अपने खेत में डायरेक्ट सीडिंग का यह प्रयोग करूंगा।