क्या कुर्रतुलऐन हैदर की रचना 'आग का दरिया' ने उर्दू साहित्य को नई पहचान दिलाई?

सारांश
Key Takeaways
- कुर्रतुलऐन हैदर का साहित्यिक योगदान महत्वपूर्ण है।
- 'आग का दरिया' उर्दू साहित्य का मील का पत्थर है।
- उनकी रचनाओं में नारीवादी दृष्टिकोण की झलक है।
- कुर्रतुलऐन ने अपने लेखन में गंगा-जमुनी तहजीब को दर्शाया।
- उन्होंने उर्दू उपन्यास को एक नई दिशा दी।
नई दिल्ली, 20 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी भाषा जहां भारतीय संस्कृति और समाज को एक सूत्र में बांधती है, वहीं उर्दू भाषा अपनी शायरी, नफासत और जज्बातों के साथ दिलों को जोड़ने का कार्य करती है। हिंदी के बाद उर्दू एक ऐसी भाषा है, जिसने देश को अनगिनत रत्न दिए हैं। इन्हीं रत्नों में से एक हैं उर्दू साहित्य की अमर लेखिका कुर्रतुलऐन हैदर, जिन्होंने उर्दू भाषा की इस अद्वितीय शक्ति को अपनी रचनाओं में न केवल जीवंत किया, बल्कि उसे विश्व साहित्य के मंच पर एक नई पहचान भी दी।
कुर्रतुलऐन हैदर को प्यार से 'ऐनी आपा' भी कहा जाता था। उनकी लेखन शैली में इतिहास, दर्शन और मानवीय रिश्तों का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है, जो उन्हें आधुनिक उर्दू साहित्य की प्रमुख लेखिका बनाता है। इसका एक बड़ा उदाहरण उनकी कालजयी रचना 'आग का दरिया' है, जिसे उर्दू साहित्य के लिए मील का पत्थर माना जाता है।
20 जनवरी 1927 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मीं कुर्रतुलऐन हैदर के पिता सज्जाद हैदर उर्दू के प्रसिद्ध लेखक थे और मां नजर सज्जाद हैदर भी एक लेखिका थीं। परिवार में साहित्यिक वातावरण ने उनकी तकदीर का फैसला बचपन में ही कर दिया था। कुर्रतुलऐन ने बचपन से ही लिखना शुरू किया। कहा जाता है कि उनकी पहली कहानी 'बी चुहिया' छह साल की उम्र में बच्चों की पत्रिका 'फूल' में प्रकाशित हुई थी।
1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुर्रतुलऐन अपने भाई के साथ कुछ समय के लिए पाकिस्तान चली गई थीं, लेकिन 1956 में भारत लौट आईं और मुंबई में बस गईं। उन्होंने शादी नहीं की और अपना जीवन लेखन तथा पत्रकारिता को समर्पित कर दिया। उनकी रचनाओं में नारीवादी दृष्टिकोण और गंगा-जमुनी तहजीब का संगम देखने को मिलता है।
वह उर्दू साहित्य की एक ऐसी ट्रेंडसेटर थीं, जिन्होंने उस समय लिखना शुरू किया, जब उर्दू साहित्य की कविता-प्रधान दुनिया में उपन्यास को एक गंभीर और स्थापित विधा के रूप में अपनी जगह बनानी थी।
उन्होंने उर्दू उपन्यास में नई संवेदनशीलता और गहराई का समावेश किया। साथ ही विचारों और कल्पना की ऐसी अनछुई परतों को उजागर किया, जो उर्दू में अब तक अनछुई थीं। उनकी अद्वितीय लेखन शैली और गहन दृष्टिकोण ने उन्हें उर्दू साहित्य की 'महारानी' के रूप में स्थापित किया।
कुर्रतुलऐन हैदर का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास 'आग का दरिया' (1959) है, जिसे उर्दू साहित्य का मील का पत्थर माना जाता है। यह उपन्यास चंद्रगुप्त मौर्य के समय से लेकर भारत-पाकिस्तान विभाजन तक के भारतीय इतिहास, संस्कृति और दर्शन को समेटता है।
इसके अलावा, उन्होंने 'मेरे भी सनमखाने' (1945, उनका पहला उपन्यास, 19 वर्ष की आयु में प्रकाशित), 'शीशे का घर' (1945, कहानी संग्रह), 'सफीन-ए-गमे दिल', 'आखिरे-शब के हमसफर', 'कारे जहां दराज है' (आत्मकथा) और 'चांदनी बेगम' जैसी रचनाएं लिखी हैं।
1989 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है। उन्हें पद्म श्री (1984) और पद्म भूषण (2005) जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भी प्राप्त हुए। उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और विश्व स्तर पर सराहना मिली।
कुर्रतुलऐन हैदर का निधन 21 अगस्त 2007 को उत्तर प्रदेश के नोएडा में हुआ। हालांकि, उन्होंने उर्दू साहित्य में एक ऐसी छाप छोड़ी, जो आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन दर्शाती है। उनकी रचनाएं आज भी साहित्य प्रेमियों, शोधकर्ताओं और पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।