क्या मां सिद्धेश्वरी मंदिर का कुआं जीवन-मृत्यु की भविष्यवाणी करता है?
सारांश
Key Takeaways
- वाराणसी का मां सिद्धेश्वरी मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
- कुएं में प्रतिबिंब देखकर मृत्यु की भविष्यवाणी की जा सकती है।
- यह मंदिर मां सिद्धिदात्री को समर्पित है और इसकी पूजा विधि विशेष है।
- कुएं का निर्माण चंद्र देवता ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया था।
- भक्त विशेष अवसरों पर यहां आकर पूजा अर्चना करते हैं।
नई दिल्ली, 20 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। काशी, जिसे भगवान शिव की नगरी कहा जाता है, वहां मंदिरों की कोई कमी नहीं है। काशी में भगवान शिव के जितने मंदिर हैं, उतने ही मां पार्वती के विभिन्न रूपों के भी मंदिर हैं।
वाराणसी में एक अद्भुत मंदिर स्थित है, जहां केवल कुएं में झांकने से यह पता लगाया जा सकता है कि मृत्यु कब होगी। भक्त दूर-दूर से अपने प्रतिबिंब को देखने के लिए इस कुएं के पास आते हैं।
वाराणसी में प्राचीन मां सिद्धेश्वरी का मंदिर मौजूद है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। इसे चंद्रकूप मंदिर और चंदेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर विश्वनाथ गली के निकट, सिद्धेश्वरी मोहल्ले में स्थित है और इसकी उम्र 100 साल से अधिक बताई जाती है। यह मंदिर मां दुर्गा के नौवें रूप, मां सिद्धिदात्री, को समर्पित है। माना जाता है कि मां सिद्धियों की देवी हैं और उनकी मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी। गर्भगृह में मां के साथ चांदी का शिवलिंग भगवान सिद्धेश्वर महादेव भी स्थापित है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान विष्णु की मूर्ति और छोटे से परिसर में भगवान शिव का शिवलिंग भी स्थित है। यह मंदिर बहुत प्राचीन है और इसकी देखरेख की जा रही है। इसी मंदिर के परिसर में स्थित चंद्रकूप अन्य कुओं से भिन्न है।
कहा जाता है कि भक्तों को कुएं में झांककर अपने प्रतिबिंब को देखना चाहिए। यदि कुएं में उनका प्रतिबिंब दिखाई देता है, तो यह दीर्घायु का संकेत होता है, लेकिन यदि प्रतिबिंब नहीं दिखता, तो यह माना जाता है कि आने वाले 6 महीनों में मृत्यु निश्चित है।
भक्तों का मानना है कि यदि प्रतिबिंब नहीं दिखता है, तो उन्हें रोज़ कुएं के पास जाकर भगवान का नाम जप करना चाहिए, जिससे मृत्यु का भय कम होता है। भगवान चंदेश्वर भगवान शिव का रूप हैं, जो गर्भगृह में सिद्धेश्वरी के साथ विराजमान हैं।
कुएं को लेकर कई किंवदंतियां भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि चंद्र देवता ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस कुएं का निर्माण किया था और उनसे कुएं को विशेष गुण प्रदान करने की प्रार्थना की थी।
सोमवार, पूर्णिमा और अमावस्या के दिन भक्त इसी जल से भगवान चंदेश्वर की पूजा करते हैं और सभी दुखों और बीमारियों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।