क्या सरकार अरावली को बचाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है?: भूपेंद्र यादव (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)

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क्या सरकार अरावली को बचाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है?: भूपेंद्र यादव (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)

सारांश

अरावली पर्वत श्रृंखला के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को समझने के लिए भूपेंद्र यादव से खास बातचीत की गई। जानें, क्या हैं सरकार के कदम और क्या हैं सुप्रीम कोर्ट के निर्णय। जानें इस मुद्दे पर उनके विचार और भविष्य की योजनाएं।

Key Takeaways

  • अरावली का संरक्षण पर्यावरण और जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अवैध खनन को रोकने के लिए स्पष्ट निर्णय दिया है।
  • आईसीएफआरई को ठोस प्रबंधन योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
  • सभी हिस्सों को योजना में शामिल किया जाएगा।
  • सरकार पारदर्शिता के साथ कार्य कर रही है।

नई दिल्ली, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। अरावली पर्वत श्रृंखला के संदर्भ में उठ रही चिंताओं और देशभर में होने वाली चर्चाओं के बीच, सरकार का पक्ष जानना अत्यंत आवश्यक हो गया है। इसी संदर्भ में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने न्यूज एजेंसी राष्ट्र प्रेस से विशेष वार्ता की और अरावली से जुड़ी समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किए। इस बातचीत में उन्होंने सरकार की नीतियों, पर्यावरण संरक्षण के प्रति उठाए जा रहे कदमों और भविष्य की योजनाओं पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं इस विशेष बातचीत के महत्वपूर्ण अंश।

सवाल: अरावली को बचाने की बात अब पूरे देश में हो रही है। क्या यह केवल अरावली तक सीमित मुद्दा है?

जवाब: अरावली का संरक्षण केवल एक पर्वत श्रृंखला को बचाने का सवाल नहीं है। यह देश के पर्यावरण, जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी संतुलन से जुड़ा हुआ विषय है। सरकार अरावली के संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस दिशा में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्णय भी आ चुका है। खनन के उद्देश्य से अरावली और इसके पहाड़ियों की परिभाषा तय की गई है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगे। जब तक एक वैज्ञानिक और ठोस प्रबंधन योजना नहीं बन जाती, तब तक नए खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस योजना को तैयार करने का कार्य आईसीएफआरई को सौंपा गया है।

सवाल: क्या सुप्रीम कोर्ट ने अरावली में किसी तरह की छूट दी है?

जवाब: नहीं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कोई छूट नहीं मिली है। कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण बातें कही हैं। पहली, पर्यावरण मंत्रालय के 'ग्रीन अरावली प्रोजेक्ट' को मान्यता दी गई है। दूसरी, आईसीएफआरआई को यह जिम्मेदारी दी गई है कि जब तक पूरी वैज्ञानिक योजना नहीं बन जाती, तब तक कोई नया खनन नहीं होगा। इस योजना में अरावली पहाड़ियों और पूरे अरावली क्षेत्र की पहचान की जाएगी, उनकी इको-सेंसिटिविटी तय की जाएगी और उसके बाद ही आगे कोई निर्णय लिया जाएगा। यह फैसला अवैध खनन को रोकने और भविष्य में केवल सस्टेनेबल तरीके से खनन की अनुमति देने के लिए है।

सवाल: कहा जा रहा है कि पहली बार अरावली में 100 मीटर ऊंची पहाड़ियों तक खनन की अनुमति दी जाएगी। क्या यह सच है?

जवाब: यह बात पूरी तरह गलत है। 100 मीटर ऊंचाई की कोई अलग से अनुमति नहीं दी गई है। दरअसल, अरावली पहाड़ी की पहचान की जा रही है। यह ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर का सवाल नहीं है, बल्कि धरातल से जुड़े वैज्ञानिक मानकों का मामला है। अगर कोई पहाड़ी 200 मीटर ऊंची है, तो उसके आसपास का 500 मीटर का इलाका भी अरावली रेंज का हिस्सा माना जाएगा। जहां तक संरक्षित क्षेत्रों की बात है, वे पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। खेती योग्य भूमि का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा खनन क्षेत्र से बाहर रहेगा।

सवाल: इसे 100 मीटर के रूप में कैसे परिभाषित किया जाएगा, ऊपर से या नीचे से?

जवाब: इसे ऊपर या नीचे से नहीं, बल्कि उस जिले की भौगोलिक संरचना के आधार पर तय किया जाएगा। यानी सबसे निचले जमीनी स्तर से ऊपर तक की पूरी संरचना को ध्यान में रखकर परिभाषा तय होगी।

सवाल: सुप्रीम कोर्ट में पर्यावरण मंत्रालय का रुख क्या नया है या यह पहले से चला आ रहा है?

जवाब: अवैध खनन को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एफएसआई, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सीईसी के साथ मिलकर एक संयुक्त समिति बनाई थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी, जिसके आधार पर यह फैसला आया। यह कोई नया रुख नहीं है, बल्कि लंबे समय से चल रही प्रक्रिया का नतीजा है।

सवाल: कांग्रेस सरकार के समय अरावली में खनन की स्थिति क्या थी?

जवाब: उस समय बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा था। इसी वजह से लोग अदालत गए थे और यह याचिका भी उसी दौर की है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खनन को सतत, वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और सीमित तरीके से लागू किया जाएगा ताकि अरावली को बचाया जा सके।

सवाल: आपने 2018 में कहा था कि खनन की वजह से 31 पहाड़ पूरी तरह खत्म हो गए। अगर खनन से पहाड़ खत्म होंगे तो क्या होगा?

जवाब: इसी कारण हर जिले के लिए अलग-अलग मैनेजमेंट प्लान बनाया जाएगा। बिना वैज्ञानिक योजना के किसी भी तरह की गतिविधि की अनुमति नहीं दी जाएगी। उद्देश्य पहाड़ों और पर्यावरण को बचाना है।

सवाल: कहा जा रहा है कि चित्तौड़गढ़ और माधोपुर को नए मैनेजमेंट प्लान से बाहर रखा गया है। इसमें कितनी सच्चाई है?

जवाब: यह पूरी तरह गलत है। अरावली के सभी हिस्सों को इस योजना में शामिल किया जाएगा। किसी भी जिले या क्षेत्र को बाहर नहीं रखा जा रहा है।

सवाल: आप कह रहे हैं कि अरावली को लेकर एक तरह का भ्रम फैलाया जा रहा है। क्या इसके पीछे विदेशी फंडिंग का हाथ है?

जवाब: जो लोग झूठ फैला रहे हैं, वे अपनी मर्जी से ऐसा कर रहे हैं। लेकिन वे सफल नहीं हो रहे हैं। अब जनता को सच्चाई समझ में आ गई है।

सवाल: क्या यह वही स्थिति है जैसी कभी नर्मदा परियोजना को लेकर गुजरात में बनाई गई थी?

जवाब: यह कांग्रेस के राजनीतिक माहौल में फैलाया गया एक और झूठ है। लेकिन अब लोग सच्चाई पहचान चुके हैं।

सवाल: एक समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कुडनकुलम प्लांट के विरोध में एनजीओ सिस्टम की बात की थी और विदेशी एजेंसियों का जिक्र किया था। क्या अरावली के मामले में भी ऐसा कुछ है?

जवाब: अरावली को लेकर राजनीतिक विरोधी भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनका यह भ्रम पूरी तरह नाकाम हो गया है। सरकार पूरी पारदर्शिता और वैज्ञानिक सोच के साथ अरावली के संरक्षण के लिए कार्य कर रही है।

Point of View

मुझे यह कहना है कि अरावली पर्वत श्रृंखला का संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आवश्यक है। सरकार के प्रयासों की दिशा में यह आवश्यक है कि हम सभी मिलकर इसे सहेजें।
NationPress
23/12/2025

Frequently Asked Questions

क्या अरावली को बचाने के लिए सरकार के पास कोई ठोस योजना है?
हाँ, सरकार ने आईसीएफआरई को ठोस प्रबंधन योजना तैयार करने की जिम्मेदारी दी है।
क्या सुप्रीम कोर्ट ने अरावली में खनन की अनुमति दी है?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने खनन पर कोई छूट नहीं दी है।
क्या चित्तौड़गढ़ और माधोपुर को योजना से बाहर रखा गया है?
नहीं, सभी हिस्सों को इस योजना में शामिल किया जाएगा।
क्या अरावली में खनन के कारण पर्यावरण पर खतरा है?
हाँ, अवैध खनन से पर्यावरण को बड़ा खतरा है, जिसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।
क्या सरकार विदेशी फंडिंग के प्रभाव में है?
सरकार पूरी पारदर्शिता के साथ काम कर रही है और किसी प्रकार की विदेशी फंडिंग का सवाल नहीं है।
Nation Press