क्या ठाकरे बंधु सिर्फ ‘परिवार बचाओ योजना’ पर चल रहे हैं?

सारांश
Key Takeaways
- परिवार बचाओ योजना पर चल रहे ठाकरे बंधु
- मराठी मानुस की अस्मिता की अनदेखी
- तहसीन पूनावाला के सख्त सवाल
- गठबंधन का राजनीतिक महत्व
- आर्थिक संकट का सामना करने वाले गरीबों की स्थिति
पुणे, 6 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने मुंबई में एक मंच साझा किया, जिससे राजनीतिक परिदृश्य में हलचल बढ़ गई है। इन दोनों नेताओं के एक साथ आने पर बॉस कौन बनेगा, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने कहा कि दोनों ‘परिवार बचाओ योजना’ पर केंद्रित हैं।
तहसीन पूनावाला ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि ठाकरे बंधु 'एमएम' यानी मराठी मानुस के लिए नहीं, बल्कि 'पीपी' यानी परिवार प्रथम के लिए काम कर रहे हैं। यह अत्यंत दुखद है। उन्होंने परिवार राज का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले बालासाहेब ठाकरे थे, फिर राज और उद्धव आए। इन दोनों के बीच पार्टी को लेकर संघर्ष हुआ, और अब उनके बेटे आएंगे। आप लोगों को क्या मिल रहा है? यहां तो केवल परिवार राज चल रहा है। यह केवल परिवार को बचाने की लड़ाई है। मराठी मानुस की अस्मिता क्या गरीबों को पीटना है? या फिर यह सुनिश्चित करना है कि सभी गरीबों को उचित उपचार मिले?
पूनावाला ने सवाल उठाया कि बीएमसी को उद्धव ठाकरे सालों से चला रहे हैं। जब उद्धव बीमार होते हैं, तो क्या वह बीएमसी हॉस्पिटल या निजी अस्पताल में जाते हैं? उनके बच्चे सड़क पर लड़ाई नहीं करेंगे, जबकि गरीब कार्यकर्ताओं के बच्चे लड़ाई के लिए मजबूर होंगे, क्या मराठी मानुस की अस्मिता यही है?
उन्होंने मराठी भाषा विवाद पर कहा कि यदि एलन मस्क की टीम महाराष्ट्र में व्यवसाय के लिए आती है, तो क्या राज ठाकरे उन्हें पीटेंगे, क्योंकि वे मराठी नहीं बोलते?
तहसीन पूनावाला ने कहा, "महाराष्ट्र में मराठी मानुस खुद सुरक्षित नहीं है। जब दुकानें बंद होती हैं और व्यवसायों पर हमले होते हैं, तो वहां कौन काम करता है? यह गरीब मराठी मानुस ही है। नौकरी खोने वाला भी यही होता है। क्या राज और उद्धव ठाकरे के बच्चों को कभी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा?"
कांग्रेस और एनसीपी के शिवसेना (यूबीटी) के साथ गठबंधन पर बात करते हुए उन्होंने कहा, "यह निश्चित है कि इस गठबंधन में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए, न ही किसी एक परिवार को प्रथम मानकर चलने की सोच होनी चाहिए। बात मराठी मानुस को प्राथमिकता देने की होनी चाहिए। क्या ये लोग इस पर सहमत होंगे?"