क्या विधानमंडलों से जनमत को नीति का रूप दिया जाना चाहिए? : लोकसभा अध्यक्ष

Click to start listening
क्या विधानमंडलों से जनमत को नीति का रूप दिया जाना चाहिए? : लोकसभा अध्यक्ष

सारांश

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सभी राजनीतिक दलों से विधायी संस्थाओं के संचालन को सुनिश्चित करने की अपील की, यह कहते हुए कि लोकतंत्र नागरिकों को मुद्दों पर चर्चा करने और विचार साझा करने का अवसर प्रदान करता है। क्या विधानमंडल जनमत को नीति में बदलने में सहायक हो सकते हैं?

Key Takeaways

  • विधायकों को जनमत को नीति में बदलने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
  • लोकतंत्र में नागरिकों को सक्रिय भागीदारी का अवसर मिलना चाहिए।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही लोकतांत्रिक शासन का आधार हैं।
  • डिजिटल परिवर्तन विधायिकी को अधिक प्रभावी बनाता है।
  • जनभागीदारी से विकास और समावेशिता बढ़ती है।

कोहिमा, 10 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सोमवार को सभी राजनीतिक दलों से विधायी संस्थाओं के प्रभावी और संगठित संचालन को सुनिश्चित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र शांतिपूर्ण, सुनियोजित और सूचनाप्रद चर्चाओं के माध्यम से मुद्दों को उठाने, चिंताएं व्यक्त करने और बहस में शामिल होने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करता है।

कोहिमा में नागालैंड विधानसभा में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए), भारत क्षेत्र, जोन-III के वार्षिक सम्मेलन के दौरान मीडिया से बातचीत में उन्होंने चेतावनी दी कि सुनियोजित व्यवधान न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करते हैं, बल्कि नागरिकों को सार्थक विचार-विमर्श और जवाबदेही से भी वंचित करते हैं।

बिरला ने 1 दिसंबर 2025 से शुरू होने वाले संसद के आगामी शीतकालीन सत्र का उल्लेख करते हुए सभी राजनीतिक दलों से सदन की कार्यवाही का सुचारू संचालन सुनिश्चित करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि पारदर्शी शासन और कल्याणकारी नीति निर्माण के लिए विधानमंडलों को अधिक सक्रिय और रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए।

इस वर्ष के सम्मेलन का विषय है “नीति, प्रगति और नागरिक: परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में विधायिका”। बिरला ने आशा व्यक्त की कि सम्मेलन के दौरान सार्थक विचार-विमर्श से पूर्वोत्तर की विधायिकाओं को अधिक सशक्त, जवाबदेह और कुशल बनाने के उद्देश्य से ठोस कार्य योजनाएं तैयार होंगी।

बिरला ने राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र, जोन-III सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि विधानमंडलों को जनमत को नीति में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि विधानमंडलों का दायित्व मात्र कानून बनाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें लोगों की आकांक्षाओं और सरोकारों को कार्यान्वयन-योग्य नीतियों का रूप भी देना है। व्यापक विकास केवल सक्रिय जनभागीदारी से ही संभव है। सच्ची प्रगति तब होती है जब नागरिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में प्रत्यक्ष ढंग से शामिल होते हैं। जनप्रतिनिधियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नीति निर्माण में नागरिकों की आवाज सार्थक रूप से प्रतिबिंबित हो।

ओम बिरला ने लोकतंत्र को नागरिकों के निकट लाने में नई तकनीकों और नवाचारों के प्रभाव पर कहा कि अधिकांश विधानमंडल अब पेपरलेस बन गए हैं और डिजिटल प्रणालियों को अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के लोग ही लोकतंत्र की नींव हैं और हमारे संविधान-निर्माताओं ने इसी सिद्धांत को सर्वोपरि रखा।

उन्होंने यह भी कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेही लोकतांत्रिक शासन का आधार होना चाहिए। बिरला ने सभी विधायी निकायों से विधायी प्रक्रिया में व्यापक जन भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सदन की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने, नागरिक-अनुकूल डिजिटल प्लेटफॉर्म की सुविधा प्रदान करने और बेहतर पहुंच के लिए समुचित तंत्र विकसित करने जैसे उपायों को अपनाने का आग्रह किया।

उन्होंने आगे कहा कि जब किसी राज्य में जनमत नीति का आधार बनता है, तो वह राज्य निरंतर और सतत विकास प्राप्त करता है।

बिरला ने उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विधानमंडलों में हो रहे उल्लेखनीय डिजिटल परिवर्तन की सराहना की और इसे आधुनिक और पारदर्शी शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने विशेष रूप से नागालैंड विधान सभा के पूरी तरह से पेपरलेस बनने पर इसकी प्रशंसा की और इसे भारत में डिजिटल शासन का एक अग्रणी मॉडल बताया।

उन्होंने उभरती प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के गैर-जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग के बारे में सावधान करते हुए विधायकों से एआई को इस ढंग से अपनाने का आग्रह किया जिससे पारदर्शिता को बढ़ावा मिले, लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं मजबूत हों, और विधायी कार्यवाही में बाधा न आए।

केंद्र और राज्यों के संबंधों के बारे में अध्यक्ष ने कहा कि सरकार का प्रत्येक स्तर स्पष्ट रूप से परिभाषित संवैधानिक ढांचों के भीतर कार्य करता है, फिर भी ठोस परिणाम प्राप्त करने के लिए दोनों के बीच प्रभावी सहयोग अत्यंत आवश्यक है। केंद्र और राज्यों के बीच रचनात्मक संवाद न केवल शासन को मजबूत करता है, बल्कि इससे ऐसी नीतियों का निर्माण भी होता है जो अधिक उत्तरदायी, समावेशी और क्षेत्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप होती हैं। हाल के वर्षों में बेहतर सहयोग से उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में अवसंरचना, संपर्क और सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप पूर्वोत्तर को विकास के केंद्र के रूप में स्थापित करने तथा भारत की एक्ट ईस्ट नीति की धुरी बनाने के लिए ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने इस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों और जलवायु संबंधी चुनौतियों को ध्यान में रखने के महत्व पर प्रकाश डाला।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी कार्य योजना में प्राकृतिक आपदाओं सहित जलवायु संबंधी उभरते जोखिमों का विशेष रूप से समाधान किया जाना चाहिए, जिनका क्षेत्र की आजीविका और अवसंरचना पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास से जुड़ी रणनीतियों में दीर्घकालिक प्रगति सुनिश्चित करने के लिए जलवायु संबंधी रेजिलिएंस, हरित अवसंरचना और सक्रिय सामुदायिक भागीदारी को शामिल किया जाना चाहिए।

Point of View

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने हमें याद दिलाया है कि विधायकों की भूमिका केवल कानून बनाने तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उन्हें जनमत को नीति में रूपांतरित करना चाहिए, ताकि व्यापक जनभागीदारी और वास्तविक प्रगति हो सके। यह विचार न केवल लोकतंत्र के लिए आवश्यक है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।
NationPress
10/11/2025

Frequently Asked Questions

क्या विधानमंडल जनमत को नीति में बदल सकते हैं?
हाँ, विधानमंडल जनमत को नीति में बदलने की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिससे नागरिकों की आकांक्षाएं और सरोकार नीति निर्माण में शामिल हो सकें।
लोकतंत्र में पारदर्शिता क्यों आवश्यक है?
पारदर्शिता लोकतंत्र का आधार होती है, जिससे नागरिकों को जानकारी मिलती है और वे प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी कर सकते हैं।
डिजिटल परिवर्तन का विधायिकी पर क्या प्रभाव है?
डिजिटल परिवर्तन विधायिकी को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाता है, जिससे नागरिकों की भागीदारी में वृद्धि होती है।
क्या जन भागीदारी से विकास संभव है?
जी हाँ, जन भागीदारी से विकास संभव है, क्योंकि इससे नीतियों में वास्तविकता और समावेशिता बढ़ती है।
क्या सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होना चाहिए?
हां, सभी राजनीतिक दलों को विधायी संस्थाओं के सुचारू संचालन के लिए एकजुट होना चाहिए।