क्या विपक्ष को नजरअंदाज करना लोकतंत्र के लिए सही है?: शरण प्रकाश पाटिल
सारांश
Key Takeaways
- विपक्ष की आवाज़ लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
- विदेशी नेताओं से मिलने की परंपरा को बनाए रखना चाहिए।
- जनता को जानने का अधिकार है कि विपक्ष का नेतृत्व क्या है।
कलबुर्गी, 5 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस विधायक शरण प्रकाश पाटिल ने सरकार पर विदेशी मेहमानों के विपक्ष से मिलने की परंपरा को समाप्त करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में हमेशा से एक प्रथा रही है कि जब कोई विदेश से बड़ा अधिकारी या नेता आता है, चाहे वह किसी देश का प्रधानमंत्री हो, राष्ट्रपति, या कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता, तो सबसे पहले वे प्रधानमंत्री से मिलते हैं। इसके साथ ही उनके लिए विपक्ष के नेता से भी मिलने का रिवाज रहा है।
उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेताओं से मिलने का मतलब यह जानना होता है कि उनकी सोच क्या है, उनके विचार क्या हैं और उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं, क्योंकि अगर भविष्य में सरकार बदलती है तो उनके पास प्रधानमंत्री बनने का अवसर होता है।
शरण प्रकाश पाटिल ने कहा कि जब से पीएम मोदी की सरकार सत्ता में आई है, यह रिवाज बंद कर दिया गया है। उनका कहना है कि इसे संकुचित मनोभाव की वजह से रोका गया है। यह लोकतंत्र के लिए भी अच्छा नहीं है, क्योंकि विपक्ष के नेताओं को 'शैडो प्रधानमंत्री' माना जाता है। जनता को यह जानने का अधिकार है कि अगर सरकार बदलती है तो विपक्ष के पास किस तरह का नेतृत्व तैयार है।
पाटिल ने आगे कहा कि जब भी कोई महत्वपूर्ण विदेशी डेलीगेट भारत आता है तो यह औपचारिक मुलाकात होती है। इसका मतलब यह नहीं कि विपक्ष और सरकार में टकराव है, बल्कि यह लोकतंत्र की प्रक्रिया का हिस्सा है। यह जानना जरूरी है कि विपक्ष के नेता की सोच क्या है, उनकी नीतियां क्या हैं और उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं। अगर यह प्रथा नहीं चली तो जनता के सामने पूरी तस्वीर नहीं आती और लोकतंत्र की पारदर्शिता प्रभावित होती है।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में इस तरह के रिवाज और औपचारिक मुलाकातें बहुत जरूरी हैं। यह देश और जनता के लिए फायदेमंद होता है, क्योंकि इससे अलग-अलग विचारों को समझने का मौका मिलता है। विपक्ष को नजरअंदाज करना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है.