क्या है मां कूष्मांडा का रहस्यमयी मंदिर, जहां की पिंडी से रिसते जल से दूर होते हैं आंखों के रोग?

सारांश
Key Takeaways
- मां कूष्मांडा का मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है।
- पिंडी से रिसता जल आंखों के रोगों के लिए लाभकारी है।
- स्थानीय परंपरा में पूजा महिलाएं करती हैं।
- भक्त यहां स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं।
- नवरात्रि में विशेष पूजा का महत्व है।
कानपुर, २५ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। नवरात्रि का पर्व पूरे भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मां कूष्मांडा को ब्रह्मांड की रचना करने वाली देवी भी कहा जाता है। मान्यता है कि मां कूष्मांडा का विधिपूर्वक पूजन करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि शारीरिक रोग भी दूर होते हैं।
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित घाटमपुर कस्बे में मां कूष्मांडा देवी का एक विशेष मंदिर है, जो अपनी अद्वितीय पिंडी के लिए प्रसिद्ध है। यहां मां कूष्मांडा देवी चतुष्टय आकार में विराजमान हैं, जिनके दो मुख हैं और उनकी पिंडी जमीन पर लेटी हुई प्रतीत होती है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि यह विश्व की एकमात्र ऐसी मूर्ति है, जो चतुष्टय कोण में स्थित है। इस पिंडी से वर्षभर जल रिसता है, जिसकी उत्पत्ति आज भी रहस्य बनी हुई है। माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति छह महीने तक इस जल को अपनी आंखों में लगाता है तो आंखों से जुड़ी कई समस्याएं और दृष्टि दोष दूर हो सकते हैं।
घाटमपुर की यह अद्वितीय पिंडी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां आने वाले भक्तों के लिए आस्था और आश्चर्य का केंद्र भी बनी हुई है। श्रद्धालु यहां स्वास्थ्य, समृद्धि एवं सुरक्षा की कामना करते हैं।
यहां की पूजा परंपरा भी बेहद अनोखी है। अन्य मंदिरों में साधु-संत या पंडित पूजा करते हैं, लेकिन घाटमपुर में इस मंदिर में पूजा मलिन (फूल बांटने और श्रृंगार करने वाली महिलाएं) करती हैं। वही मां कूष्मांडा देवी का श्रृंगार करती हैं, उन्हें कपड़े पहनाती हैं और भोग अर्पित करती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और स्थानीय समाज में इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।
मां कूष्मांडा के स्वरूप की आराधना अन्य मां दुर्गा मंदिरों में भी की जाती है। उनके भक्त उन्हें सृष्टि की शक्ति, जीवन की ऊर्जा और रोगों से रक्षा करने वाली देवी मानते हैं। नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से चौथे दिन इस स्वरूप की पूजा करने से आत्मिक शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।