क्या नवरात्रि में महाष्टमी पर मां दुर्गा की षोडशोपचार पूजा और कुंवारी पूजन का विशेष महत्व है?

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क्या नवरात्रि में महाष्टमी पर मां दुर्गा की षोडशोपचार पूजा और कुंवारी पूजन का विशेष महत्व है?

सारांश

महाष्टमी पर मां दुर्गा की षोडशोपचार पूजा और कुंवारी पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन भक्त मां के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। जानें इस पावन अवसर पर कैसे करें पूजा और क्या है इसके पीछे की मान्यता।

Key Takeaways

  • महाष्टमी पर मां दुर्गा की विशेष पूजा का महत्व है।
  • कुंवारी कन्या पूजन का विशेष महत्व है।
  • संधि पूजा अष्टमी और नवमी के बीच होती है।
  • पवित्रता
  • मां दुर्गा का आशीर्वाद जीवन में सुख और समृद्धि लाता है।

नई दिल्ली, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि मंगलवार को है। इस दिन दुर्गा अष्टमी और संधि पूजा का आयोजन किया जाएगा। इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा धनु राशि में विराजमान रहेंगे।

द्रिक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजे 47 मिनट से शुरू होकर 12 बजे 35 मिनट तक रहेगा, जबकि राहुकाल का समय 3 बजे 9 मिनट से 4 बजे 39 मिनट तक रहेगा।

महाष्टमी के दिन मां दुर्गा की आराधना का आरंभ महास्नान और षोडशोपचार पूजा से किया जाता है। यह पूजा महासप्तमी के समान होती है, लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा केवल महासप्तमी को की जाती है।

महाष्टमी पर नौ छोटे कलशों में मां दुर्गा के नौ शक्ति स्वरूपों का आह्वान किया जाता है। इन नौ रूपों की पूजा करके भक्त माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, इस दिन कुंवारी कन्या पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन अविवाहित कन्याओं को मां दुर्गा का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। कुंवारी पूजा नवरात्रि उत्सव का अभिन्न हिस्सा है और महाष्टमी पर इसे विशेष रूप से एक दिवसीय पूजा के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन माता की आराधना करने के लिए घर के मंदिर में गाय के गोबर के उपले पर पान, लौंग, कपूर, इलायची, गूगल और कुछ मीठा डालकर धुनी देना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से माता सभी कष्टों का निवारण करती हैं। साथ ही मां भवानी के मंदिर में पान का बीड़ा चढ़ाएं, जिसमें कत्था, गुलकंद, सौंफ, खोपरे का बूरा और लौंग का जोड़ा हो, लेकिन सुपारी और चूना न डालें।

नवरात्रि उत्सव के दौरान संधि पूजा का विशेष महत्व है, जो अष्टमी तिथि के अंत और नवमी तिथि के आरंभ के समय की जाती है।

मान्यताओं के अनुसार, इसी समय देवी चामुंडा चण्ड और मुण्ड नामक राक्षसों का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। संधि पूजा लगभग 48 मिनट तक चलती है और इसका मुहूर्त दिन में किसी भी समय पड़ सकता है। यह पूजा केवल इसी निर्धारित समय पर संपन्न की जाती है और इसका अपना विशेष महत्व है।

महाष्टमी और संधि पूजा का यह पावन दिन भक्तों के लिए मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने का सुनहरा अवसर है। इन उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।

Point of View

बल्कि समाज में एकता और सहयोग की भावना को भी प्रोत्साहित करता है।
NationPress
29/09/2025

Frequently Asked Questions

महाष्टमी पर कब पूजा करनी चाहिए?
महाष्टमी पर पूजा का सही समय अभिजीत मुहूर्त के दौरान होता है, जो सुबह 11:47 से 12:35 तक रहता है।
कुंवारी कन्या पूजन का महत्व क्या है?
कुंवारी कन्या पूजन का महत्व इस बात में है कि इसे मां दुर्गा का स्वरूप मानकर किया जाता है, जो नवरात्रि उत्सव का अभिन्न हिस्सा है।
संधि पूजा कब की जाती है?
संधि पूजा अष्टमी तिथि के अंत और नवमी तिथि के आरंभ के समय की जाती है।
महाष्टमी के दिन क्या खास करना चाहिए?
महाष्टमी के दिन मां दुर्गा की आराधना के लिए गाय के गोबर के उपले पर पान, लौंग, कपूर आदि चढ़ाना शुभ माना जाता है।
महाष्टमी का पर्व क्यों मनाया जाता है?
महाष्टमी का पर्व देवी चामुंडा द्वारा राक्षसों के वध की स्मृति में मनाया जाता है।