क्या मजाज लखनवी की इश्क़भरी गज़लें डिजिटल युग में भी दिलों को छूती हैं?

सारांश
Key Takeaways
- मजाज लखनवी की गज़लें आज भी दिलों को छूती हैं।
- सच्चा प्रेम कभी पुराना नहीं पड़ता।
- डिजिटल युग में भी इश्क का एहसास महत्वपूर्ण है।
- उनकी शायरी भावनाओं की नाजुकता को दर्शाती है।
- मजाज की रचनाएं युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। इश्क वह अद्भुत एहसास है जो न दिन देखता है, न रात, और न ही किसी प्रकार की बंदिश मानता है। जब सच्चा इश्क होता है, तो जिंदगी को जैसे सातवें आसमान पर ले जाता है, जहां हर पल रंगीन और हर सांस में खुशबू होती है। लेकिन आज के डिजिटल युग में, जहां प्यार सोशल मीडिया ऐप्स की स्वाइप्स और चैट्स तक सीमित हो गया है, सच्ची मोहब्बत की तलाश एक सपना सा प्रतीत होती है। ऐसे में उर्दू शायरी के बेताज बादशाह, मजाज लखनवी की गज़ल "जुनून-ए-शौक अब भी कम नहीं है" प्रेम की उस गहराई को बयां करती है, जो सीमाओं से परे है और आज भी दिलों को झकझोर देती है।
मजाज लखनवी, जिनका असली नाम असरार-उल-हक था, 20वीं सदी के उन शायरों में से थे जिन्होंने प्रेम को न केवल दिल की गहराइयों में उतारा, बल्कि समाज की सच्चाइयों को भी अपनी शायरी का हिस्सा बनाया। उनकी यह प्रसिद्ध गज़ल प्रेम के जुनून और प्रिय की बेरुखी को इस तरह व्यक्त करती है।
जुनून-ए-शौक अब भी कम नहीं है, लेकिन वो आज भी मुझसे नाराज है। इस गज़ल के जरिए वो बता रहे हैं कि मेरे दिल में प्रेम का जुनून आज भी वैसा ही है, मगर प्रिय अब भी मुझे समझती नहीं।
मजाज उस एकतरफा मोहब्बत की तड़प को बयां कर रहे हैं, जहां प्रेमी का जज्बा तो बुलंद है, लेकिन प्रिय का रूठना उसकी राह में कांटों-सा बिछा है।
आज के दौर में, जब प्यार अक्सर सतही और स्क्रीन तक सीमित हो गया है, उनकी गज़लें यह बताती हैं कि इश्क सच्चा होना चाहिए, जहां किसी भी प्रकार की कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए।
19 अक्टूबर 1911 को जन्मे मजाज लखनवी उर्दू साहित्य के एक प्रमुख शायर थे, जिनकी गज़लें और नज़्में प्रेम, विद्रोह और सामाजिक चेतना का अनूठा संगम हैं। इस दिग्गज ने अपने दौर में कई गज़ल और शायरी से दुनिया को रूबरू करवाया।
वह प्रगतिशील लेखकों फैज अहमद फैज, साहिर लुधियानवी, मखदूम मोहीउद्दीन और सरदार जाफरी के घनिष्ठ मित्र थे।
मजाज को साहित्य और सूफी परंपरा परिवार से विरासत में मिली। उन्होंने यूपी से अपनी प्रारंभिक शिक्षा हासिल की।
मजाज के बारे में बताया जाता है कि उनकी रोमांटिक शायरी पर लड़कियां दीवानी हो जाती थीं। उनकी शायरी आज भी लोगों की जुबान पर सुनाई पड़ती है।
साहित्य से जुड़े लोगों का कहना है कि मजाज लखनऊ के हजरतगंज कॉफी हाउस के नियमित मेहमान थे, जहां साहित्यिक और वैचारिक चर्चाएं होती थीं।
दौर बदल गया। इस डिजिटल युग में आज शायरी और कविताएं मोबाइल तक सीमित रह गई हैं, लेकिन जब भी महफिल शायरी और गज़लों की होती है, मजाज की शायरी आज भी गूंजती है।
उनकी पंक्तियां "शराब पीता हूं, लेकिन दिल को मत तोड़ना" प्रेम और भावनाओं की नाजुकिता को दर्शाती हैं। उनकी रचनाएं न केवल साहित्यिक धरोहर हैं, बल्कि आज के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी हैं।
उनकी गज़लें और नज़्में हमें सिखाती हैं कि सच्चा प्रेम और विचार कभी पुराने नहीं पड़ते।
5 दिसंबर 1955 को उनकी मृत्यु भले ही दुखद थी, लेकिन उनकी शायरी अमर है।