क्या ममता बनर्जी ने उमर अब्दुल्ला का समर्थन किया, अमित मालवीय ने क्या कहा?

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क्या ममता बनर्जी ने उमर अब्दुल्ला का समर्थन किया, अमित मालवीय ने क्या कहा?

सारांश

उमर अब्दुल्ला की कब्र पर फातिहा पढ़ने के बाद ममता बनर्जी का समर्थन। अमित मालवीय ने उनकी आलोचना की। जानें इस राजनीतिक विवाद के पीछे की सच्चाई और इतिहास।

Key Takeaways

  • उमर अब्दुल्ला का समर्थन ममता बनर्जी द्वारा किया गया।
  • अमित मालवीय की प्रतिक्रिया ने विवाद को और बढ़ाया।
  • 13 जुलाई का दंगा कश्मीर के इतिहास में महत्वपूर्ण है।
  • राजनीतिक बयानों का एक गहरा ऐतिहासिक संदर्भ है।
  • धार्मिक असहिष्णुता पर चर्चा आवश्यक है।

नई दिल्ली, 14 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को श्रीनगर के नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान में कब्रों पर फातिहा पढ़ने और फूल चढ़ाने का एक वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर साझा किया।

उन्होंने इसके माध्यम से यह दर्शाने का प्रयास किया कि उन्हें यहाँ पहुँचने से रोकने का प्रयास किया गया। उनके साथ हुई इस घटना को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित कई विपक्षी नेताओं ने उनके समर्थन में आवाज उठाई और केंद्र सरकार पर हमला बोला। ममता बनर्जी ने अपने सोशल मीडिया खाते पर लिखा, "शहीदों की कब्र पर जाने में क्या गलत है? यह न केवल दुखद है, बल्कि एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है। आज सुबह एक निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के साथ जो हुआ, वह अस्वीकार्य, चौंकाने वाला और शर्मनाक है।"

ममता के इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा, "ममता बनर्जी द्वारा उमर अब्दुल्ला द्वारा 13 जुलाई को 'शहीद दिवस' मनाने का समर्थन करना कोई स्मृति नहीं है। यह जानबूझकर तुष्टीकरण और ऐतिहासिक विकृतियों के लिए की गई राजनीति का परिणाम है।"

13 जुलाई को कश्मीर में पहला संगठित सांप्रदायिक दंगा हुआ, जो राज्य, उसकी संस्थाओं और निर्दोष हिंदुओं के खिलाफ एक हिंसक, इस्लामी विद्रोह था। यह भारत की अवधारणा पर एक हमला था।

इस दिन की शुरुआत श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर 7,000 से अधिक इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ के इकट्ठा होने से हुई, जहाँ एक मुस्लिम अलगाववादी आंदोलनकारी, अब्दुल कादिर पर विद्रोह भड़काने और हिंदुओं की हत्या का आह्वान करने का मुकदमा चल रहा था।

शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के बजाय, भीड़ हिंसक हो गई और "अल्लाह-हू-अकबर" और "इस्लाम ज़िंदाबाद" के नारे लगाने लगी। जब पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास किया, तो उन पर पत्थरों और अस्थायी हथियारों से हमला किया गया। भीड़ ने जेल पर धावा बोल दिया, सरकारी इमारतों में आग लगा दी और आग बुझाने के प्रयास कर रहे दमकल दस्तों पर हमला कर दिया। यह सब पूर्वनियोजित था।

अमित मालवीय ने आगे लिखा, "जेल में हुई हिंसा के तुरंत बाद, पूरा श्रीनगर शहर अराजकता में डूब गया: महाराजगंज, भूरीकादल, सफाकदल, नवाकदल और अन्य इलाकों में हिंदुओं की दुकानों और घरों को खास तौर पर निशाना बनाया गया। सैकड़ों हिंदुओं के घरों में तोड़फोड़ और लूटपाट की गई।"

300 दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन सांप्रदायिक नेताओं के दबाव में, 217 को तुरंत रिहा कर दिया गया। पूरे दंगे को "इस्लाम खतरे में है" के नारे ने हवा दी। इसका असली मकसद इस्लामी प्रभुत्व स्थापित करना और कश्मीर के नाज़ुक सांप्रदायिक संतुलन को बिगाड़ना था।

मालवीय ने कहा कि अब, ममता बनर्जी इस झूठे आख्यान को वैध ठहराने की कोशिश कर रही हैं, जो कि कोलकाता में 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस की याद दिलाता है। मुस्लिम लीग के नेता और बंगाल के मुख्यमंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी ने जिन्ना के अलग पाकिस्तान के आह्वान के बाद, सार्वजनिक अवकाश घोषित किया था।

अमित मालवीय ने कहा, "केवल 72 घंटों में 5,000 से अधिक हिंदुओं का कत्लेआम कर दिया गया था।" और अब ममता बनर्जी उसी विचारधारा के साथ खड़ी होने की हिम्मत कैसे कर रही हैं? यह इस्लामी हिंसा को छिपाने और वोट बैंक के लिए खेलने के बारे में है।

Point of View

बल्कि एक संपूर्ण समुदाय का है।
NationPress
03/09/2025

Frequently Asked Questions

उमर अब्दुल्ला ने कब और कहाँ फातिहा पढ़ी?
उमर अब्दुल्ला ने 14 जुलाई को श्रीनगर के नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान में फातिहा पढ़ी।
ममता बनर्जी ने इस घटना पर क्या कहा?
ममता बनर्जी ने कहा कि यह घटना एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है।
अमित मालवीय ने ममता के समर्थन पर क्या प्रतिक्रिया दी?
अमित मालवीय ने इसे तुष्टीकरण और ऐतिहासिक विकृतियों का परिणाम बताया।
13 जुलाई का दंगा किस बारे में था?
यह दंगा कश्मीर में पहले संगठित सांप्रदायिक दंगे का हिस्सा था जो हिंदुओं के खिलाफ था।
इस घटना का ऐतिहासिक संदर्भ क्या है?
यह घटना कश्मीर में कट्टरपंथी इस्लामी अलगाववाद का प्रारंभिक बिंदु रही है।