क्या एनएचआरसी ने महिला प्रतिनिधियों के अधिकारों की रक्षा हेतु बड़ा कदम उठाया?
सारांश
Key Takeaways
- महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व अवैध है।
- एनएचआरसी ने 32 राज्यों को समन जारी किया है।
- यह निर्णय महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- आयोग का लक्ष्य लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को बढ़ाना है।
- महिला आरक्षण का उद्देश्य वास्तविक नेतृत्व है, न कि मात्र प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व।
नई दिल्ली, 14 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने पंचायत राज संस्थानों एवं शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर “प्रधान पति/प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व” की गंभीर समस्या पर एक निर्णायक कदम उठाया है। यह कदम हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा द्वारा दायर की गई शिकायत पर आधारित है।
वर्मा ने अपनी शिकायत में यह आरोप लगाया था कि देश के विभिन्न हिस्सों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति या अन्य पुरुष रिश्तेदार वास्तविक शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं, जो संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस प्रथा को असंवैधानिक करार दिया है।
एनएचआरसी की खंडपीठ ने अपनी जांच में पाया कि यह प्रथा अनुच्छेद 14, 15(3) और 21 के तहत प्रदत्त समानता, गरिमा और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करती है।
यह 73वें एवं 74वें संविधान संशोधनों की भावना के विपरीत है, जिनका उद्देश्य महिलाओं को वास्तविक सशक्तीकरण प्रदान करना है।
ऐसे कृत्य भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत आपराधिक दायित्व को भी जन्म दे सकते हैं। आयोग ने पूर्व में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पंचायती राज विभाग एवं शहरी स्थानीय निकाय विभाग के प्रमुख सचिवों से कार्यवाही रिपोर्ट (एटीआर) मांगी थी। हालांकि, आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों को छोड़कर अधिकांश राज्यों से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
इस गंभीर लापरवाही को देखते हुए एनएचआरसी ने 32 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के शहरी निकायों और पंचायती राज विभागों के प्रमुख सचिवों को 30 दिसंबर 2025 को आयोग के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने हेतु सशर्त समन जारी किए हैं।
यदि 22 दिसंबर 2025 तक विस्तृत कार्यवाही रिपोर्ट आयोग को प्राप्त हो जाती है, तो व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जा सकती है। अन्यथा अनुपालन न करने पर सीपीसी, 1908 के अंतर्गत कठोर कार्रवाई का प्रावधान भी लागू होगा।
आयोग ने स्पष्ट किया है कि महिला आरक्षण का उद्देश्य केवल प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि वास्तविक नेतृत्व और निर्णयकारी भूमिका सुनिश्चित करना है।
यह आदेश महिला सशक्तिकरण, संवैधानिक शासन और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की गरिमा की रक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
एनएचआरसी के सदस्य प्रियंक कानूनगो का बयान:
“एनएचआरसी का यह स्पष्ट मत है कि महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर किसी भी प्रकार का प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व, चाहे वह सरपंच पति या प्रधान पति के रूप में हो, संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। लोकतंत्र में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि ही अपने पद की वैधानिक, प्रशासनिक और निर्णयकारी अधिकारिता की वास्तविक धारक हैं।
“आयोग का दायित्व केवल अधिकारों का संरक्षण करना ही नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि संवैधानिक प्रावधानों का वास्तविक और प्रभावी क्रियान्वयन हो।”