क्या मंगल देव की कृपा से रंक को राजा बनाया जा सकता है? भारत के ये मंदिर हैं खास

सारांश
Key Takeaways
- मंगल ग्रह का महत्व व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक है।
- मंगल दोष से मुक्ति के लिए विशेष पूजा आवश्यक है।
- भारत के कई मंदिरों में मंगल दोष का निवारण किया जाता है।
- मंगल ग्रह की स्थिति से व्यक्ति की विवाह और संतान की प्राप्ति पर प्रभाव पड़ता है।
- ज्योतिष में मंगल का सौम्य, मध्यम और कड़क स्वभाव होता है।
नई दिल्ली, 21 जून (राष्ट्र प्रेस)। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में मौजूद नव ग्रहों में से मंगल को ग्रहों का सेनापति माना गया है। इसे भूमिपुत्र भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति अत्यधिक गर्म होती है, और इसका सीधा संबंध व्यक्ति के रक्त से है। मंगल ग्रह को साहस, ऊर्जा और आत्मविश्वास का प्रतीक माना जाता है, और यह भूमि का भी कारक है। मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है, जबकि मकर राशि में इसे उच्च और कर्क राशि में नीच माना गया है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मंगल ग्रह को एक क्रूर और उग्र ग्रह माना गया है। यदि जातक की कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में मंगल उपस्थित हो, तो वह जातक मांगलिक कहलाता है। यदि कुंडली में मंगल दोष हो, तो विवाह में समस्याएँ आ सकती हैं और संतान प्राप्ति में भी देरी हो सकती है।
कुंडली के पहले भाव से व्यक्ति के स्वभाव, सेहत और व्यक्तित्व का संबंध होता है, चतुर्थ भाव से माता, घर, संपत्ति और सुख का संबंध होता है। सप्तम भाव से विवाह और जीवनसाथी का संबंध होता है, अष्टम भाव से मृत्यु और विरासत का संबंध होता है, जबकि बारहवें भाव से खर्च और विदेश यात्रा का संबंध होता है।
वैदिक ज्योतिष में मंगल का स्वभाव उसकी कुंडली में स्थान के अनुसार तीन प्रकार का होता है: सौम्य, मध्यम और कड़क। ज्योतिषाचार्य अर्जुन शर्मा के अनुसार, यदि सौम्य मंगल जातक की कुंडली में हो, तो कोई दोष नहीं होता। मध्यम मंगल का दोष 28 वर्षों में समाप्त हो जाता है, जबकि कड़क मंगल का दोष शांत करना आवश्यक होता है।
ज्योतिषाचार्य अर्जुन शर्मा बताते हैं कि यदि कुंडली में मंगल किसी शुभ ग्रह के साथ हो या उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तो वह सौम्य होता है। लेकिन यदि मंगल अशुभ ग्रहों के साथ हो और उन पर अशुभ ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो, तो यह उच्च मांगलिक दोष बनाता है।
देवाधिदेव महादेव और हनुमान जी की पूजा करने से मंगल दोष को शांत किया जा सकता है।
इस संदर्भ में, हम आपको भारत के कुछ खास मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां मंगल दोष से मुक्ति के लिए पूजा की जाती है। इन मंदिरों में दर्शन-पूजन करने से जातकों के जीवन से मंगल दोष के दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। मंगल के बारे में वैदिक ज्योतिष में कहा गया है कि जब यह कुंडली में उच्च स्थिति में होता है, तो यह जातक को रंक से राजा बना सकता है।
उज्जैन, मध्य प्रदेश को महाकाल का नगर माना जाता है और यहाँ क्षिप्रा नदी के किनारे मंगलनाथ का मंदिर है। इसे अंगारेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव मंगलनाथ के रूप में स्थित हैं। उज्जैन के 84 महादेव मंदिरों में इस मंदिर का जिक्र 43वें नंबर पर है और इसे विश्व का एकमात्र मंगल ग्रह का मंदिर माना जाता है। यहाँ मंगल ग्रह की किरणें सीधे पड़ती हैं। यह वही स्थान है जहां से कर्क रेखा गुजरती है और सूर्य की किरणें मंगल ग्रह के प्रतीक शिवलिंग पर पड़ती हैं। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण के अवंती खंड में मिलता है। यहाँ भात पूजा के माध्यम से मंगल दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
महाराष्ट्र के जलगांव के पास अ Amalner में भी मंगल देव का मंदिर है जहां उनकी स्वयंभू और जागृत मूर्ति है। यहाँ मंगल देव माता भूमि और पंचमुखी हनुमान जी के साथ विराजमान हैं।
ग्वालियर के निकट घासमंडी में भी एक प्राचीन शिव मंदिर है। यहां भगवान शिव के दर्शन से ही मंगल दोष समाप्त हो जाता है। मंगलेश्वर महादेव मंदिर लगभग छह सौ साल पुराना है, और यह शिवलिंग स्वयंभू है। यहाँ का मानना है कि भगवान शिव का दर्शन करने से मंगल दोष दूर होता है।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में मंगलागौरीमंगल दोष की समस्या समाप्त हो जाती है। यहाँ की मंगलागौरी की मूर्ति रहस्यमयी है।
इसके अतिरिक्त, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में भगवान हनुमान जीमंगल दोष से मुक्ति मिलती है। इस प्रसिद्ध मंदिर में, पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम मुद्रा में स्वयंभू हनुमान जी विराजित हैं। यहाँ मंगलवार को हनुमान जी को चोला और लाल रंग का लंगोटा भेंट किया जाता है, साथ ही झंडा भी लगाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से मंगल दोष से मुक्ति मिलती है।