क्या मानसिक स्वास्थ्य हमारे समग्र कल्याण का एक मूलभूत अंग नहीं है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

सारांश
Key Takeaways
- मानसिक स्वास्थ्य हमारे समग्र कल्याण का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
- 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है।
- युवाओं में डिप्रेशन और एंग्जायटी के मामले बढ़ रहे हैं।
- सोशल मीडिया का दबाव मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
- समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति कलंक अभी भी बना हुआ है।
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हर वर्ष 10 अक्टूबर को संपूर्ण विश्व में ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ (वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे) का आयोजन किया जाता है। इस बार की थीम है ‘आपदा या आपातकाल की स्थिति में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच’। वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों को बधाई दी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि मानसिक स्वास्थ्य हमारे समग्र कल्याण का एक आवश्यक अंग है। इस तेज़-तर्रार दुनिया में, यह दिन दूसरों के प्रति करुणा दिखाने और उन्हें समर्थन देने के महत्व पर जोर देता है।
पीएम मोदी ने कहा कि आइए हम मिलकर ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास करें जहां मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा मुख्यधारा का हिस्सा बने। इस क्षेत्र में काम करने वाले और दूसरों को स्वस्थ और खुश रहने में सहायता प्रदान करने वाले सभी व्यक्तियों को मेरी ओर से शुभकामनाएं
हर साल 10 अक्टूबर को मनाए जाने वाले विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना है और यह बताना है कि मानसिक समस्याएं भी शारीरिक बीमारियों की तरह गंभीर होती हैं। चिंता का विषय यह है कि आज के युवा तेजी से डिप्रेशन, एंग्जायटी और स्ट्रेस जैसी मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
तेज रफ्तार जीवनशैली, सोशल मीडिया का दबाव, करियर की अनिश्चितता और रिश्तों में अस्थिरता, ये सभी युवा पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। आज का युवा लगातार अपनी तुलना दूसरों से करता है।
इंस्टाग्राम पर परफेक्ट लाइफ दिखाने की होड़ में वह अंदर से खालीपन महसूस करने लगता है। नौकरी का तनाव, पढ़ाई का दबाव, परिवार की अपेक्षाएं और असफलता का डर उसकी सोच को घेर लेते हैं। यही कारण है कि 16 से 30 वर्ष के युवाओं में डिप्रेशन के मामले सबसे अधिक बढ़ रहे हैं।
इसके अलावा, नींद की कमी, खराब खान-पान, शारीरिक गतिविधियों का अभाव और डिजिटल लत भी इस समस्या को बढ़ा देते हैं। दिनभर मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन में डूबे रहना न केवल आंखों बल्कि दिमाग को भी थका देता है।
हालांकि, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में अभी भी कलंक बना हुआ है। लोग मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास जाने से हिचकिचाते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है। यह ध्यान देने योग्य है कि भले ही कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ दिखे, यह जरूरी नहीं है कि वह मानसिक रूप से भी स्वस्थ हो।